मणिपुर की राजधानी इंफाल से चूराचांदपुर तक की 120 किलोमीटर का सफर सिर्फ दूरी नहीं, बल्कि दो अलग-अलग सच, दो टूटे हुए विश्वास और दो अलग समुदायों के भविष्य की मांगों के बीच से गुजरना है। पत्रिका की यह यात्रा दिखाती है कि कैसे एक ही राज्य के मैतेई और कुकी समुदाय के लोग एक-दूसरे से भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से मीलों दूर हो चुके हैं। जले हुए घर, वीरान बाजार और कदम-कदम पर तैनात सुरक्षाकर्मी और कमांडो फोर्स उस हिंसा की खामोश गवाही देते हैं, जिसने इस खूबसूरत धरती को गहरे जख्म दिए हैं।
ऐसे में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इंफाल और चूराचांदपुर दौरे की पूरी तैयारी है, तो सवाल सिर्फ शांति की उम्मीद का नहीं, बल्कि यह है कि क्या यह दौरा उस खाई को पाट पाएगा जो अब राहत पैकेज से कहीं आगे बढ़कर कुकी समुदाय के 'अलग प्रशासन' की ठोस मांग तक पहुंच चुकी है? आज के ग्राउंड रिपोर्ट में हम कुकी बाहुल्य इलाके चुराचांदपुर की हकीकत बता रहे हैं।
चुराचांदपुर के रेबर्न कॉलेज में पोस्टग्रेजुएट की छात्रा रिचल कहती हैं, “इस संघर्ष का सबसे बड़ा खामियाजा युवा पीढ़ी भुगत रही है। चूराचांदपुर के छात्रों के लिए इंफाल जाकर यूनिवर्सिटी से एक सर्टिफिकेट लाना भी जान जोखिम में डालने जैसा है। उन्हें पंगल और नेपाल के दोस्तों के भरोसे भारी रकम देकर अपना काम करवाना पड़ता है, जिसमें महीनों लग जाते हैं। उन्होंने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा, "आवेदन पर 5 दिन लिखा होता है, लेकिन सर्टिफिकेट हाथ में आते-आते 3 महीने बीत जाते हैं। हमारा भविष्य दांव पर है।" छात्रों को पीएम से बहुत उम्मीदें हैं। वे चाहते हैं कि कम से कम शिक्षा के लिए एक रीजनल सेंटर कुकी बाहुल्य इलाके में बनाया जाए ताकि इंफाल पर निर्भरता कम हो सके। उनका भविष्य इस जातीय संघर्ष की भेंट न चढ़े।। उनका साफ कहना है - "हम ही मणिपुर का भविष्य हैं, हमें पढ़ने-लिखने का अधिकार चाहिए।"
सूरज पांडेय मूल रूप से नेपाली हैं और रेबर्न कॉलेज में पोस्टग्रेजुएट छात्र हैं। उनकी दो पीढ़ी चुराचांदपुर में ही जन्मी है। वह बताते हैं कि मुझे एक दूसरे के इलाके लिए कोई रोक टोक नहीं है। इसलिए मुझे दोनों लोगों की बात सुननी पड़ती है। मैंने पूछा कि यह अविश्वास की खायी कैसे और कबतक पटेगी युवाओं के बिच? इसपर वह कहते हैं कि नफरत की दिवार खड़ा करने में सबसे बड़ा हाथ सोशल मीडिया और फेसबुक ग्रुप्स का है। लोग भूलना चाहते हैं लेकिन ग्रुप में सर्कुलेट होते पुराने वीडियो और भड़काउ पोस्ट आग में घी डालने का काम करते हैं। इससे लोगों के जख्म ताजे हो जाते हैं। इससे युवा और पीस दोनों खतरा पैदा हो जाता है। यह दोनों समुदायों में हैं। बहुत से ऐसे वीडियो और ऑडियो होते हैं जो हिंसा के दौरान के नहीं भी होते हैं।
हिंसा ने सिर्फ दिलों को नहीं बांटा, बल्कि आम आदमी की कमर भी तोड़ दी है। चुराचांदपुर में इसा असर साफ देखा जा सकता है। एक स्थानीय कुकी युवा ने बताया कि अंडरग्राउंड संगठनों द्वारा की जाने वाली वसूली के कारण सामानों की कीमतें आसमान छू रही हैं। वहीं, ड्रग्स का कारोबार इस संघर्ष का एक और पहलू है। पहाड़ी इलाकों में होने वाली पॉपी की खेती और म्यांमार-चीन से जुड़े इसके तार, दोनों समुदायों के बीच नफरत को और बढ़ाते हैं। हालांकि अफीम के खिलाफ कुकी लोगों ने खुद अभियान चलाया है, लेकिन जब तक राजनीतिक स्थिरता नहीं आती, इस मकड़जाल को तोड़ना मुश्किल है।
कुकी-जो क्षेत्र चुराचांदपुर में बहरी संख्या में लड़के- लड़कियां और हर एज ग्रुप के लोग पीएम के सभा वाली जगह और मुख्य सड़क को झंडे से सजा रहे हैं। बातचीत के दौरान अधिकतर लोगों एक ही बात कहते हैं कि प्रधानमंत्री हमारे अभिवावक की तरह हैं। उनसे हमें उम्मीदें हैं। वह घटना के बाद पहली बार आ रहे हैं। इस वजह से हम उनका सम्मानपूर्वक वेलकम करना चाहते हैं। इलाके में भारी सुरक्षाबलों की तैनाती की जा रही है। पैरामिलिट्री और कमांडो फोर्स को बाहर से मणिपुर बुलाया गया है। सभा की तैयारी का जायजा लेने बीजेपी के नेता संबित पात्रा खुद मौके पर मौजूद दिखे।
Updated on:
12 Sept 2025 08:00 am
Published on:
11 Sept 2025 07:52 pm