
भारत के संविधान को 75 साल पूरे (Patrika Graphic)
75th Indian Constitution Day: आज 26 नवंबर 2025 है और पूरा देश संविधान दिवस धूमधाम से मना रहा है। इस बार खास मौका है- हमारे संविधान को अपनाए हुए पूरे 75 साल हो गए, यानी प्लेटिनम जुबिली। लेकिन एक सवाल अक्सर पूछा जाता है- संविधान बना कहां था? इसका जवाब है संसद भवन (पुराना वाला) का कांस्टीट्यूशन हॉल। यहीं संविधान की सबसे अधिक बैठकें हुईं। इसे आगे चलकर सेंट्रल हॉल भी कहा जाने लगा। यही वह पवित्र जगह है जहां 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई थी और यहीं 26 नवंबर 1949 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान को औपचारिक रूप से अपनाया था। भारतीय संविधान सभा में कुल 11 सत्र हुए और 165 दिन तक बहसें चलीं।
भारत का संविधान बनाने का काम करीब 3 साल (1946–1949) तक चला और गर्मी, बारिश, ठंड- हर मौसम में बैठकें होती रहीं। दिल्ली की भीषण गर्मी में, जब एसी (AC) नहीं थे, संविधान सभा की अधिकतर मीटिंग कांस्टीट्यूशन हॉल में होती थीं। कुछ समितियों की बैठकें अन्य कमरों और स्थानों पर भी होती थीं।
सबसे पहली बैठकों का दौर 9 से 23 दिसंबर 1946 तक चला। ये बैठकें संसद भवन के कांस्टीट्यूशन हॉल (तब इसे लाइब्रेरी हॉल या काउंसिल चैंबर भी कहा जाता था) में हुईं। संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा थे और बाद में अध्यक्ष के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद चुने गए।
संविधान की मसौदा समिति (Drafting Committee) की बैठकें डॉ. भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता में होती थीं। ये बैठकें कांस्टीट्यूशन हॉल के छोटे कमरों या काउंसिल हाउस (अब संसद भवन) के अन्य कक्षों में होती थीं। बाबा साहेब के निकट सहयोगी होती लाल ने इस लेखक को 1999 में बताया था कि डॉ. साहेब अपने 22 पृथ्वीराज रोड के आवास पर भी काम करते थे और वहां भी कुछ ड्राफ्टिंग होती थी।
महत्वपूर्ण है कि 14 अगस्त से 31 अगस्त 1947 तक संविधान सभा का एक खास सत्र बंबई के काउंसिल हॉल (अब विधान सभा) में हुआ था। इसकी वजह दिल्ली की गर्मी और विभाजन के बाद के तनावपूर्ण हालात थे।
भारत के संविधान के लिए सबसे ऐतिहासिक दिन 26 नवंबर 1949 था- ठीक 76 साल पहले इसी दिन संविधान को अंतिम रूप से अपनाया गया। स्थान फिर वही- कांस्टीट्यूशन हॉल, संसद भवन। और ठीक दो माह बाद, 26 जनवरी 1950 को यह संविधान लागू हुआ।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि संविधान में होने वाली बहसें सिर्फ कानूनी नहीं थीं, बल्कि गहरे वैचारिक, सामाजिक और राजनीतिक टकरावों से भरी थीं।
देश की राजभाषा को लेकर भारी विवाद हुआ। हिन्दी के कट्टर समर्थक पुरुषोत्तम दास टंडन, सेठ गोविंद दास, आर.वी. धुलेकर हिन्दी को राजभाषा बनाने की मांग कर रहे थे। वहीं दक्षिण भारतीय सदस्य टी.टी. कृष्णमाचारी और टी.ए. रामलिंगम चेट्टी अंग्रेजी को राजभाषा बनाए रखने की वकालत कर रहे थे। 10–12 सितंबर 1949 की बहस इतनी तीखी हो गई थी कि अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को कई बार हस्तक्षेप करना पड़ा।
संविधान सभा के सदस्यों शांति नारायण हजारी और महावीर त्यागी ने प्रस्ताव रखा कि गाँवों को स्वायत्त गणराज्य बनाया जाए। डॉ. आंबेडकर ने इसे खारिज करते हुए प्रसिद्ध कथन दिया- “I am glad that the Draft Constitution has discarded the village and adopted the individual as its unit.”
समान नागरिक संहिता पर मुस्लिम सदस्य मोहम्मद इस्माइल, नजीरुद्दीन अहमद और महबूब अली बेग ने जोरदार विरोध किया। डॉ. आंबेडकर और के.एम. मुंशी इसके पक्ष में थे।
अनुच्छेद 15 (बाद में 22) पर भी तीखी आलोचना हुई। कई सदस्यों ने इसे “काला कानून” कहा, जबकि सरदार पटेल ने इसे कानून-व्यवस्था के लिए आवश्यक बताया। अंततः यह प्रावधान पारित हुआ। संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया जाए या नहीं- इस पर भी बड़ा विवाद हुआ। यह शुरू में ड्राफ्ट में मौलिक अधिकार था, पर नेहरू-पटेल की जोड़ी ने इसे नीति-निर्देशक तत्त्वों (अनुच्छेद 31) में बदलवा दिया ताकि जमींदारी उन्मूलन में बाधा न आए। इन सभी बहसों से यह स्पष्ट होता है कि भारत का संविधान किसी एक विचारधारा का दस्तावेज नहीं, बल्कि केंद्रीकरण बनाम प्रांतीय स्वायत्तता, गांधीवाद बनाम आंबेडकरवाद, धर्मनिरपेक्षता बनाम धार्मिक पहचान, समाजवाद बनाम व्यक्तिगत अधिकारों के बीच गहन समझौतों का परिणाम था।
Updated on:
26 Nov 2025 11:23 am
Published on:
26 Nov 2025 11:16 am
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