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फडणवीस सरकार के एक साल पूरे: सहयोगियों से टकराव, विवादों ने घेरा, 2 बड़े वादे भी अधूरे

Fadnavis 3.0: भाजपा नीत महायुति गठबंधन सरकार को शुक्रवार को महाराष्ट्र की बागडोर संभाले हुए एक वर्ष पूरा हो गया।

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मुंबई

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Dinesh Dubey

Dec 05, 2025

Maharashtra Cabinet minister Mahayuti

महाराष्ट्र में फडणवीस सरकार के एक साल पूरे (Photo: IANS)

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) के नेतृत्व वाली महायुति सरकार का एक साल पूरा हो गया है। महायुति सरकार में शामिल भाजपा, शिवसेना (एकनाथ शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) ने नवंबर 2024 में 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में 235 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जिसके बाद देवेंद्र फडणवीस ने 5 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। हालांकि फडणवीस सरकार का पहला साल उतार-चढ़ाव, विवादों और आंतरिक कलह से भरा रहा है। हाई-प्रोफाइल हत्याओं से लेकर गठबंधन के भीतर बार-बार के तनाव और मराठा आंदोलन तक ने महायुति सरकार का सिरदर्द बढ़ाया। हालांकि इस एक साल की अवधि में विकास की भी खूब बयार बही, नए एयरपोर्ट से लेकर मेट्रो और हाईवे तक कई सौगातें दी।

महायुति में ‘शीत युद्ध’

पूरे साल भाजपा-शिंदे सेना का आंतरिक तनाव देखने को मिला। मुख्यमंत्री पद फिर न मिलने से एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की कथित नाराजगी और फिर विभागों के आवंटन को लेकर खींचतान से इसकी शुरुआत हुई। नवंबर में शिंदे सेना के मंत्रियों द्वारा कैबिनेट बैठकों का बहिष्कार करना तनाव का चरम बिंदु था। शिंदे गुट के नेताओं ने भाजपा पर निकाय चुनावों से पहले शिवसेना नेताओं को तोड़ने का आरोप लगाया। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष रविंद्र चव्हाण पर भी निशाना साधा।

संरक्षक मंत्री पद को लेकर विवाद

नासिक और रायगढ़ जिले के संरक्षक मंत्री (Guardian Minister) की नियुक्तियों को लेकर खींचतान अभी भी जारी है। साल की शुरुआत में दोनों जिलों के संरक्षक मंत्री बनाए गए थे, लेकिन बाद में यह आदेश वापस ले लिया गया।

स्थानीय निकाय चुनावों के प्रचार के दौरान फडणवीस और शिंदे की एक ही जिलों में अलग-अलग रैलियों ने मतभेद को उजागर किया। इसके बाद शिंदे का रावण का अहंकार वाला बयान भी भाजपा से ही जोड़ा गया। जिसका बाद में सीएम फडणवीस ने जवाब दिया और कहा कि वह तो राम भक्त हैं।

हत्याकांड के बाद मंत्री का इस्तीफा

पद संभालने के कुछ ही दिन बाद फडणवीस सरकार को पहली बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। 9 दिसंबर 2024 को बीड जिले में सरपंच संतोष देशमुख (Santosh Deshmukh Murder) की अपहरण के बाद नृशंस हत्या कर दी गई, जिसका वीडियो वायरल हुआ और इस घटना ने जातिगत रंग ले लिया। जांच में मंत्री धनंजय मुंडे के सहयोगी वाल्मीक कराड का नाम सामने आया। इस दबाव के चलते एनसीपी नेता धनंजय मुंडे (Dhananjay Munde) को 4 मार्च को पद से इस्तीफा देना पड़ा।

फरवरी में विधानसभा सत्र में ऑनलाइन गेम खेलने का वीडियो सामने आने के बाद पूर्व कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे का विभाग बदला गया।

मार्च में नागपुर समेत कई जिलों में सांप्रदायिक झड़पें भड़क उठीं। नागपुर (Nagpur Communal Clashes) में पथराव, वाहन जलाने और आगजनी की घटनाएं हुईं, जिसके बाद कर्फ्यू लगाना पड़ा। पुलिस ने 65 से अधिक दंगाईयों को गिरफ्तार किया।

मई में शिक्षकों के भर्ती से जुड़ा शालार्थ घोटाला सामने आया। इसमें हजारों टीचर्स की फर्जी नियुक्तियों का पर्दाफाश हुआ। मराठवाड़ा, विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र में करोड़ों रुपये की हेराफेरी सामने आई। इस मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित की गई है।

जून में तीन-भाषा नीति फडणवीस सरकार के लिए मुसीबत बनी, तब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने हिंदी लादने का आरोप लगाकर इस फैसले का कड़ा विरोध किया। जिसके बाद प्राथमिक स्कूलों में तीन-भाषा नीति (Three-language policy) का फैसला वापस लिया गया। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने वर्षों बाद एक मंच साझा किया। भारी दबाव के बाद सरकार को न केवल अपना फैसला वापस लेना पड़ा, बल्कि इस मुद्दे पर कमेटी भी बनानी पड़ी।

जुलाई में सत्तारूढ़ दल के विधायकों का दुर्व्यवहार फडणवीस सरकार का सिरदर्द बना। पहले भाजपा विधायक गोपीचंद पडलकर और एनसीपी (शरद पवार) विधायक जितेंद्र आव्हाड के समर्थकों में विधान भवन में मारपीट हुई। इसके बाद एकनाथ शिंदे की शिवसेना के विधायक संजय गायकवाड़ ने खराब खाने को लेकर आकाशवाणी कैंटीन के स्टाफ को बुरी तरह पीट दिया। उधर मंत्री योगेश कदम के परिवार से जुड़े डांस बार विवाद ने सरकार को कटघरे में ला खड़ा किया।

अगस्त में मराठा आंदोलन के चलते महायुति सरकार की किरकिरी हुई। मनोज जरांगे पाटिल (Manoj Jarange Patil) के नेतृत्व में मुंबई में मराठा आरक्षण आंदोलन हुआ, जिसने पांच दिनों तक शहर की रफ्तार रोक दी। इसके लिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा प्रदर्शनकारियों को फटकार लगाई।

नवंबर में पुणे जमीन सौदा सुर्ख़ियों में रहा, जिसने सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया। पुणे में 40 एकड़ 'महार वतन' भूमि अजित पवार के बेटे पार्थ पवार से जुड़ी फर्म को कथित रूप से बाजार मूल्य से कम कीमत पर बेचा गया, जिससे बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हुआ। हालांकि इस सौदे को रद्द कर दिया गया है और पार्थ पवार के पार्टनर को पुलिस ने गिरफ्तार किया है।

दो बड़े चुनावी वादे अधूरे!

इन सबके बीच विपक्ष लगातार सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाता रहा। विधानसभा चुनावों से पहले किया हुआ किसानों की कर्जमाफी, लाडकी बहीन योजना की किश्त 1500 से बढ़ाकर 2100 रुपये करने का वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ है। इसके अलावा कई कल्याणकारी योजनाओं का बजट रोकने पर भी विपक्ष ने भाजपा नीत सरकार को घेरा है।