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स्त्री : देह से आगे पर चर्चा: मां देह में ही विद्यमान है, बाहर कोई परिभाषा नहीं- पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी

Stree Deh Se Aage: ‘स्त्री: देह से आगे’ विषय पर आज (20 सितंबर, शनिवार) पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी (Editor in Chief Patrika Group Gulab Kothari) ने संवाद किया।

लखनऊ

Harshul Mehra

Sep 20, 2025

Stree Deh Se Aage
मां देह में ही विद्यमान है, बाहर कोई परिभाषा नहीं: पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी। फोटो सोर्स- पत्रिका न्यूज

Stree: Deh Se Aage: "पेड़ खुद जिस पर फल लग रहे हैं, ये पेड़ देह है। धरती और धरती से लेकर पूरे पेड़ तक का जो स्वरूप है वह मां है। उस के ऊपर जो फल लगेंगे वह फल पिता का परिणाम लेकर आएगा। उसके अंदर सभी में बीज है। उनके अंदर नई पीढ़ी को तैयार करने की क्षमता है।'' ये बात पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉक्टर गुलाब कोठारी ने लखनऊ में आयोजित 'स्त्री: देह से आगे' विषय पर संवाद के दौरान कही।

शरीर ही मां है- डॉक्टर गुलाब कोठारी

राजस्थान पत्रिका (Rajasthan Patrika) समूह के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में लखनऊ के भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय में कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस दौरान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉक्टर गुलाब कोठारी ने कहा, ''मेरा शरीर ही मेरी मां है। उसके बाहर मां की कोई परिभाषा नहीं है। लड़का हो या लड़की हो दोनों के शरीर मां निर्माण कर रहे हैं। एक ही माटी है। जिससे मां का शरीर बना है, उसी से वह संतान का शरीर बना रही है। जिस अन्न से वह बड़ी हुई, उसी अन्न से संतान का शरीर बनाया है। अपने ही अंश से…तो निश्चित रूप से देह में स्वयं मां ही है। इसके अलावा दूसरा कोई रूप मां का नहीं होता है।''

लखनऊ में स्त्री: देह से आगे विषय पर आयोजित कार्यक्रम का दीप प्रज्वलन कर शुभारंभ करते जस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी।

शरीर मां, भीतर जो प्राण चल रहे वह पिता: कोठारी

डॉक्टर कोठारी ने कहा,'' जिन पिताजी का जन्म शताब्दी वर्ष के कार्यक्रम लेकर चल रहे हैं, वह इस शरीर में प्रवाहित हैं। वही इन कार्यक्रमों को करवा रहे हैं। वही बोल रहे हैं, इसलिए हमारे लिए कार्यक्रमों का बड़ा महत्व है। अहम् ब्रह्मास्मि अगर मैं बोलता हूं तो पिताजी को भी अहम् ब्रह्मास्मि मानना पड़ेगा, नहीं तो मैं कैसे उनका अंश ब्रह्मास्मि हो सकता हूं। शरीर मां है…भीतर जो प्राण चल रहे हैं वह पिता है और जो ब्रह्म का ज्ञान है, वह माता-पिता नहीं देते। माता-पिता जीवन का ज्ञान देते हैं। व्यवहार का ज्ञान देते हैं। जीवन के दर्शन समझाते हैं, लेकिन ब्रह्म का, आत्मा का जो ज्ञान है वह सिर्फ आचार्य देता है।"

'विज्ञान में ब्रह्मांड के दो तर्क माने गए'

स्त्री देह पर बोलते हुए उन्होंने कहा, '' हम बात करेंगे स्त्री की, उस देह की जिसके भीतर हम जीवित रहते हैं। विज्ञान में ब्रह्मांड के दो तर्क माने गए हैं। एक को एनर्जी कहते हैं, दूसरे को मैटर। विज्ञान मानता है कि दोनों एक-दूसरे में बदल जाते हैं। नष्ट नहीं होते।'' भारतीय धरातल की बात करते हुए डॉक्टर कोठारी ने कहा कि भाषा अपने-अपने देश की अलग है। हम उनको ब्रह्म और माया भी कहते हैं। पुरुष और प्रकृति भी कहते हैं। अग्नि और सोम भी कहते हैं। अर्धनारीश्वर भी कहते हैं।

लखनऊ में स्त्री: देह से आगे विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम को संबोधित करते राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी।

'हर व्यक्ति आधा पुरुष, आधी स्त्री है'

कोठारी ने कहा, '' शरीर में चेतना नहीं है। यह भीतर की चेतना से चल रहा है। दुख भीतर है। आज हम अगर कोई रोग भी देख रहे हैं तो भीतर से आ रहा है। दिखाई दे रहा है यहां। चिकित्सा हम यहां करेंगे तो नहीं होगी, क्योंकि रोग और कहीं से उठ रहा है। यहां दिखाई देता है। इस सिद्धांत से हम आगे बढ़ेंगे तो हम देख रहे हैं कि हर व्यक्ति आधा पुरुष, आधी स्त्री है।

'जीवन के दोनों हिस्से पूर्ण होने पर होगा सुखद जीवन'

उन्होंने कहा कि अच्छा सुखद जीवन तब होगा, जब जीवन के दोनों हिस्से पूर्ण होंगे। स्वस्थ होंगे। संतुलित होंगे। क्या हमारे समाज में, हमारे घरों में ऐसा होता है? उस पर थोड़ी सी नजर डालने की जरूरत है। जब लड़का बड़ा होता है। मां-बाप का ध्यान कहां रहता है? इसको गंभीरता से सोचना पड़ेगा, क्योंकि उसकी ग्रोथ में केवल शिक्षा है। लड़का कुछ भी कर रहा है तो एक ही जवाब है- चलो लड़का है, करने दो…. करने दो। इतना बड़ा भेद हुआ तब उसका जो आधा भाग स्त्री का है, उसका पोषण नहीं हुआ।

लड़की कैसे बड़ी हो रही हमारे घरों में?

इस बात को हम नहीं समझेंगे, तब वो कैसे समझेगा स्त्री क्या है, उसका स्वरूप क्या है? समझ लीजिए ज्यादा से ज्यादा अगर उसने देखा तो मां को देखा। तो उसके बाद बाकी स्त्री वाला जो आधा हिस्सा है वो पूरा शून्य में खड़ा है। उसके बाद वो अपने उस आधे पौरुष के साथ जी रहा है, बड़ा हो रहा है। जो कुछ भी नया जुड़ रहा है वो उसी में जुड़ रहा है। वह बुद्धि के क्षेत्र में बढ़ते जा रहा है। बुद्धि गर्म है। सूर्य से आती है। बुद्धि में अहंकार है, क्योंकि अहंकार से बुद्धि होती है। दूसरी तरफ देखें हम लड़की कैसे बड़ी हो रही है घरों में। हमारे यहां तो कन्या पूजन का भी एक विधान है। पर वो बड़ी कैसे हो रही है हम जब उसको देखेंगे तो ये बात समझ में आएगी।''

कैसे बनती है लड़की की व्यक्तित्व की मूर्ति और स्वभाव

डॉक्टर गुलाब कोठारी ने कहा कि मां की छाया, चार-पांच-छह साल की बच्ची में दिखाई देने लगती है। वह अपने छोटे भाई-बहनों को खिलाती-पिलाती है। उनका हर तरह से ध्यान रखती है। हर त्यौहार पर वह भी पूजा में शामिल रहती है। ईश्वर से कहती है... अच्छा वर मांगती है, अच्छा घर मांग रही है। मेरा वर होगा तो कैसा होना चाहिए...वो भी कल्पना करके बड़ी होती है। मेरा घर कैसा होगा, मेरी संतान कैसी होगी...उन सब की कल्पना के साथ एक मूर्ति गढ़ती लड़की बड़ी हो रही है। देखिए और उसकी देह के रंग में उसकी वह कल्पना, वह मूर्ति और उसका स्वभाव भरते चले जा रहे हैं।

लखनऊ में स्त्री: देह से आगे विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम को संबोधित करते राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी।

देह और देह से जुड़ी सब क्रियाएं दिखाई दे रही हैं, पर सूक्ष्म भाव, सूक्ष्म प्राण शरीर दिखाई नहीं दे रहा, लेकिन हमारा जीवन वहीं चल रहा है, क्योंकि हमारा जीवात्मा प्राण रूप है। वह स्कूल में दिखाई नहीं दे रहा। इसको मूल में समझना पड़ेगा और उसमें देखिए कितनी चीजें पिता के शरीर में उस बीज के साथ आ रही हैं। तो उसका संचालन कहां हो रहा है, आज की तारीख में शून्य है। पिता को यह शायद अनुभव भी नहीं है कि वह बीज का धारक है, उस बीज में ब्रह्मा ब्रह्म खुद बैठा हुआ है। इसलिए वो आने वाले जीवन की सारी संपदाएं साथ लेकर आगे बढ़ रहा है।

इंसान को पुनः भगवान तक ले जाती है भारतीय संस्कृति

ये भारतीय संस्कृति के वो आयाम हैं, जो इंसान का निर्माण ही नहीं करते, इंसान को पुनः भगवान तक ले जाने का काम कर रहे हैं और हम अनभिज्ञ हैं! जानते नहीं हैं, क्या हो रहा है! हमारी शादी भी आज दो शरीरों के बीच में हो रही है और हम जानते हैं हम शरीर नहीं हैं। आज तो कांट्रैक्ट मैरिज हो रही हैं, हम कहां तक आ गए यह भी हमें ही सोचना होगा? बल्कि अब तो इस समस्या का एक समाधान है कि हम शादी करना ही नहीं चाहते। इस देश में...।

आत्मा से आत्मा के मिलन का नाम है विवाह

डॉक्टर कोठारी ने कहा कि ये हमारी दृष्टि है, हमारी दृष्टि में जो विवाह हो रहे हैं वो आत्मा से आत्मा के हो रहे हैं। बहुत बड़ा भेद है और यही वो कारण है जो हमें 7 जन्म की बात कहता है कि विवाह सात जन्म का होता है, क्योंकि पिता के निज में सात पीढ़ी की पित्र हो रहे हैं, जिसको आप जींस कह रहे हैं। साइंस भी आज जींस कह रही है, साइंस भी मान रही है कि हमारे पास इतनी पीढ़ियों की जींस है। स्त्री भी उस पुरुष के साथ जुड़ी, तो वो जींस का आदान-प्रदान हुआ, तब वो संबंध सात पीढ़ी से स्वतः जुड़ गया।

लखनऊ में 'स्त्री: देह से आगे' विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के साथ मंच पर मौजूद महिलांए।

एक काम और होता है हमारे देश के विवाह फंक्शन में, जो मेरे ख्याल से अब तो देश के बाहर कहीं नहीं बचा, दिखाई भी नहीं देता। और आज इस देश में भी उस परंपरा का सम्मान नहीं है, हम उस परंपरा को अपमानित ही कर रहे हैं। वो परंपरा मेरी है-कन्यादान। आज कोई भी पढ़ी हुई महिला, बच्ची इस बात को सुन के खुश नहीं होती कि कन्या को क्या मान रखा है? सामग्री है क्या? उसका दान कर रहे हो! तो क्या हमारे महर्षि लोग इतने अज्ञानी थे कि वो इंसान को पदार्थ की श्रेणी में रखकर कोई बात कर रहे थे? क्या होता है कन्यादान में? मेरी शादी सात फेरों में हो रही है, मंत्रों से हो रही है। शरीर काम कर रहा है, लेकिन शादी मंत्रों से, आत्मा से हो रही है। योग हम आत्मा का कर रहे हैं।

लखनऊ में 'स्त्री: देह से आगे' विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में मौजूद श्रोतागण।

जो हिस्सा पुत्री का था उसका क्या हुआ? वो अभी पिता के पास रखा है। इस कन्यादान में वो पुत्री का हिस्सा, वो अपने दामाद के हृदय में वापस प्रतिष्ठित कर रहा है, क्योंकि वो बीज, बीज से ही जाके जुड़ेगा। और ये जो कन्या का हिस्सा है, जो पिता दान कर रहा है, मंत्रों की सहायता से—इस आदान-प्रदान को हम कन्यादान कहते हैं। उसके बाद आप नोट करके देखना, स्त्री कभी पीर में जाकर रहने को तैयार नहीं रहती। उसकी आत्मा शिफ्ट हो गई, खाली शरीर नहीं गया वहां। पीहर में वो शरीर से जी रही थी, ससुराल में शरीर से जीना भूल जाएगी, वो आत्मा से जिएगी।

मां के पास दिव्य अनुभव प्राप्त करने की क्षमता

डॉक्टर कोठारी ने कहा, ''मां को सबसे पहले यह एहसास होता है कि एक नया मेहमान उसके भीतर आ रहा है, जबकि बाकी किसी को इसका पता नहीं चलता। यह अनुभव बेहद सूक्ष्म और दिव्य होता है, जिसे कोई वैज्ञानिक उपकरण नहीं पकड़ सकता। मां अपने शरीर और मन में आने वाले बदलावों जैसे आदतों, सपनों और भावनाओं से समझ लेती है कि यह आत्मा कहां से आई है। वह न केवल बच्चे का शरीर बनाती और उसे सुरक्षित रखती है, बल्कि उसके पुराने संस्कारों को शुद्ध करके उसमें परिवार के नए संस्कार और जीवन-मूल्य भी भरती है। यही कारण है कि मातृत्व को 'मातृ देवो भव' कहा गया है।''

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