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1971 के समुद्री शेर: दुश्मन को कंपा देने वाले भारतीय नौ सैनिकों की वीरगाथा, यूपी के बेटों ने रचा इतिहास

1971 युद्ध में भारतीय नौसेना के वो बहादुर सिपाही, जिन्होंने समुद्र की लहरों पर मौत से खेलकर भारत की जीत सुनिश्चित की। दुश्मन जिनके नाम से कांपता था और आज भी उन्हें “सी लॉयन” यानी समुद्री शेर कहकर याद करता है। यूपी के इन वीरों की साहस गाथा आज भी प्रेरणा देती है।

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लखनऊ

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Ritesh Singh

Dec 04, 2025

समुद्र के सिपाही: 1971 के वो योद्धा, जिन्हें दुश्मन आज भी ‘समुद्री शेर’ कहकर याद करता है (फोटो सोर्स :Facebook News Group)

समुद्र के सिपाही: 1971 के वो योद्धा, जिन्हें दुश्मन आज भी ‘समुद्री शेर’ कहकर याद करता है (फोटो सोर्स :Facebook News Group)

Indian Navy Day: भारत–पाकिस्तान के 1971 युद्ध को आज़ादी के बाद से सबसे निर्णायक लड़ाइयों में गिना जाता है। यह सिर्फ एक जंग नहीं थी, बल्कि यह भारतीय सेनाओं के साहस, रणनीति और बलिदान की ऐसी मिसाल थी, जो आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देती रहेगी। ज़मीन पर सेना, हवा में वायुसेना और समुद्र में नौसेना-तीनों ने मिलकर दुश्मन पर ऐसी चोट की कि आज तक युद्धक रणनीति पढ़ाने वाली दुनिया की सेनाएँ उसके उदाहरण देती हैं।

लेकिन इस युद्ध की कहानी समुद्र में लड़ने वाले उन "समुद्री शेरों" के बिना अधूरी है, जिनके साहस ने पाकिस्तान की नौसेना की कमर तोड़ दी थी। दिलचस्प बात यह है कि इन योद्धाओं में एक बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश से आई थी,ऐसे नौसैनिक, जो वीर सपूत भले ही भूमिगत क्षेत्र से आते थे, पर दिल में समुद्र की लहरें और देशभक्ति की आग रखते थे।

समुद्र के सिपाही-जिन्होंने जीवन दांव पर लगाया

भारतीय नौसेना का हर जवान जानता था कि 1971 का युद्ध आसान नहीं होगा। समुद्र हमेशा शांत नहीं होता, लेकिन उस समय उससे भी अधिक खतरनाक था वह दुश्मन, जो हर मोर्चे पर कमजोर पड़ रहा था और समुद्र में आखिरी दांव खेलने की कोशिश कर रहा था।

युद्ध शुरू होते ही नौसेना के जवानों को आदेश मिला-'अरब सागर का हर इंच भारत की सुरक्षा का प्रतीक है। पीछे नहीं हटना है। इन योद्धाओं ने आदेश सुना, सलामी दी और फिर अपने प्राणों की परवाह किए बिना दुश्मन के ठिकानों की ओर बढ़ गए। यही वो क्षण थे, जब पाकिस्तान के कमांडरों ने भारतीय नौसेना के जवानों को "सी वुल्फ", "सी लॉयन", यानी “समुद्री शेर” कहकर संबोधित किया। दुश्मन के लिए यह शब्द एक डर का प्रतीक थे-जो रात में आते, हमला करते और समुद्र में ऐसे ओझल हो जाते जैसे गर्जता हुआ शेर अंधेरे जंगल में गुम हो जाए।

ऑपरेशन ट्राइडेंट-जहाज डूबे, इतिहास बना

4 दिसंबर 1971 की रात इतिहास में सोने अक्षरों में दर्ज है। भारतीय नौसेना के मिसाइल बोट बेड़े ने कराची पोर्ट पर ऐसी वार किया कि पाकिस्तान का PNS Khyber नष्ट, PNS Muhafiz ध्वस्त,कराची हार्बर में भीषण आग,तेल डिपो में विस्फोट यह विश्व इतिहास के सबसे सफल नौसैनिक हमलों में से एक माना गया। इस ऑपरेशन में शामिल कई नौसैनिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, अवध और पूर्वांचल के गांवों से आते थे। वे साधारण परिवारों के बेटे थे, लेकिन उस रात उन्होंने असाधारण साहस दिखाकर भारत की समुद्री ताकत को दुनिया में स्थापित किया।

ऑपरेशन पाइथन--समुद्र का दुश्मन दूसरा झटका सह नहीं पाया

8 दिसंबर को भारतीय नौसेना फिर लौटी और इस बार और भी घातक रूप में। पाकिस्तान के बचा-खुचा नौसैनिक बेड़ा और कराची की आपूर्ति लाइनें, दोनों इस हमले में तहस-नहस हो गईं। युद्ध विश्लेषकों का कहना है कि इन दो ऑपरेशनों ने पाकिस्तान की समुद्री क्षमता को लगभग निष्क्रिय बना दिया था। इन अभियानों में शामिल कई नाविक और अधिकारी आज उत्तर प्रदेश के गांवों में शांत जीवन जी रहे हैं। कुछ वृद्ध, कुछ बीमार, पर उनकी आँखों में आज भी वही चमक है-
देश के लिए कुछ कर गुजरने की चमक।

UP के नौ सैनिकों की कहानी-समुद्र में शेर, ज़मीन पर साधारण बेटे

उत्तर प्रदेश भले ही समुद्र से हजारों किलोमीटर दूर हो, लेकिन भारतीय नौसेना में उसकी भागीदारी गर्व से भरी है। 1971 में UP के सैकड़ों नौसैनिक सक्रिय मोर्चे पर थे। इनमें से कई रायबरेली, उन्नाव, बहराइच, बलिया, गाज़ीपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, जालौन, झांसी, फतेहपुर और शाहजहांपुर से थे। इनमें एक सामान्य बात देखी जाती है-वे कभी अपने शौर्य की कहानियाँ खुद नहीं बताते।लेकिन गाँव वाले कहते हैं कि दुश्मन उन्हें ‘समुद्री शेर’ कहकर बुलाता था।
यह सम्मान दुश्मन के मुँह से निकलना, उनकी बहादुरी का सबसे बड़ा प्रमाण है।

समुद्री युद्ध-जहाँ हर सेकंड मौत की परछाई

समुद्री युद्ध भूमि युद्ध से अलग होता है।
यहाँ-

  • हर निर्णय सेकंडों में होता है
  • हर हमला जहाज में मौजूद पूरे दल की जान जोखिम में डाल सकता है
  • हर गलती सैकड़ों जानें डुबो सकती है
  • और हर सफलता दुश्मन के मनोबल को चकनाचूर कर देती है
  • 1971 में भारतीय नौसेना के दिए गए मिशनों में जोखिम सबसे ऊँचे स्तर का था।

मिसाइल बोटों की रेंज सीमित थी, उन्हें ईंधन भरने के लिए बीच समुद्र में टैंकरों की शरण लेनी पड़ती थी। राडार पकड़ में आने का खतरा लगातार बना रहता था।

  • फिर भी जवान आगे बढ़े-क्योंकि लक्ष्य सिर्फ एक था-भारत की विजय।
  • इन वीरों के घर में युद्ध की आवाज़ें आज भी गूंजती हैं

UP के कई गाँवों में आज भी 1971 की यादें जीवित हैं। किसी घर की दीवार पर एक जर्जर ट्रंक रखा है, जिसमें पुरानी वर्दी और एक मेडल रखा हुआ है। कहीं धुंधली तस्वीरें हैं,जहाज पर खड़े नौ सैनिकों की।
कहीं माँ की आँखों में गर्व के आँसू हैं,जो कहती हैं:
“समुद्र तो कभी देखा नहीं…
पर मेरा बेटा समुंदर का शेर था।”

आज की पीढ़ी को उनके शौर्य से सीखनी चाहिए

1971 के नौ सैनिकों की कहानियाँ सिर्फ इतिहास नहीं हैं, ये आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने दिखाया कि देशभक्ति भौगोलिक दूरी नहीं देखती,वीरता पद या रैंक नहीं देखती। बलिदान परिवार की स्थिति नहीं देखता और शौर्य, सिर्फ दिल में बसे राष्ट्र-प्रेम की आवाज़ सुनता है

वयोवृद्ध नौ सैनिकों का सम्मान-अब समय और संवेदनशीलता दोनों जरूरी

  • इनमें से कई वीर आज वृद्ध हो चुके हैं।
  • कुछ पेंशन पर जी रहे हैं, कुछ बीमारी से लड़ रहे हैं।
  • देश को चाहिए कि इनके अनुभव को, उनकी कहानियों को, उनके जीवन संघर्षों को संरक्षित करे।
  • क्योंकि अगर इनकी गाथाए खो जाएगी, तो इतिहास अधूरा रह जाएगा।