Kirtivardhan Singh Baradari Election: लखनऊ की सफेद बारादरी में सोमवार की सुबह का माहौल थोड़ा बदला-बदला सा था। सुबह की खिली धूप और शाम तक हुई हल्की बारिश ने दिन को और यादगार बना दिया। यह अवसर था अवध बारादरी के अध्यक्ष पद के चुनाव का, जिसमें केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री और गोंडा से भाजपा सांसद कीर्तिवर्धन सिंह और बलरामपुर के राजा जयेंद्र प्रताप सिंह आमने-सामने थे। सुबह 9 बजे से शुरू होकर शाम 4 बजे तक चली मतदान प्रक्रिया में अंततः कीर्तिवर्धन सिंह को 183 मत मिले, जबकि जयेंद्र प्रताप सिंह केवल 53 मत ही प्राप्त कर सके।
इस प्रकार केंद्रीय मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने 130 मतों के बड़े अंतर से अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की। यह पद उनके पिता, पूर्व सांसद और काबीना मंत्री कुंवर आनंद सिंह के निधन के बाद रिक्त हुआ था। कुंवर आनंद सिंह 28 वर्षों तक इस संस्था के अध्यक्ष रहे और उनके नेतृत्व में अवध बारादरी ने सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्र में कई अहम पहल की।
अवध बारादरी, जिसे पहले ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन और अब अंजुमन-ए-हिंद के नाम से जाना जाता है, लगभग 165 वर्ष पुरानी संस्था है। इसका गठन 1860 में हुआ था और यह अवध क्षेत्र के 14 जिलों के महाराजा और तालुकेदारों का प्रतिनिधित्व करती है।इस संस्था का अध्यक्ष पद केवल सामाजिक और सांस्कृतिक नेतृत्व का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह संस्थागत निर्णय, राजनीति और पारंपरिक वर्चस्व का भी प्रतीक माना जाता है। संस्था के मतदाता कुल 322 पूर्व राजपरिवार और तालुकेदार हैं। अवध बारादरी का ऐतिहासिक महत्व सिर्फ इस क्षेत्र तक सीमित नहीं है। यह संस्था लखनऊ के प्रतिष्ठित कॉल्विन तालुकेदार कॉलेज की प्रबंध समिति भी तय करती है। इसके अध्यक्ष का चुनाव इस कॉलेज और स्थानीय परंपराओं पर भी गहरा प्रभाव डालता है।
चुनाव लखनऊ के कैसरबाग स्थित सफेद बारादरी में सुबह 9 बजे से शुरू हुआ और शाम 4 बजे तक चला। मतदान में राजनीतिक और पारिवारिक हस्तियां मौजूद थीं। प्रमुख मतदाताओं में शामिल थे।
प्रतापगढ़ के कुंडा से राजा रघुराज प्रताप सिंह मतदान के लिए उपस्थित नहीं हुए। मतदान सूची में ब्राह्मण, कायस्थ और मुस्लिम राजा और तालुकेदार शामिल थे, जिससे यह चुनाव सभी वर्गों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाला साबित हुआ।
इस साल 6 जुलाई को मनकापुर राजपरिवार के मुखिया आनंद सिंह के निधन के बाद अध्यक्ष पद रिक्त हो गया। शुरुआत में पद के लिए आम सहमति की बात उठी, ताकि कोई संघर्ष न हो। लेकिन निर्विरोध किसी के नाम पर सहमति नहीं बन सकी। इसके बाद कीर्तिवर्धन सिंह ने आधिकारिक रूप से नामांकन दाखिल किया, और अंततः उन्होंने जीत हासिल की। केंद्रीय मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह के पिता कुंवर आनंद सिंह ने 28 वर्षों तक अध्यक्ष पद संभाला। उनके कार्यकाल में संस्था ने कई सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक पहलें की। उनके निधन के बाद अब कीर्तिवर्धन सिंह अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाएंगे।
विश्लेषकों के अनुसार कीर्तिवर्धन सिंह की जीत का मुख्य कारण उनकी राजनीतिक और सामाजिक पहचान रही।
विशेषज्ञों के अनुसार यह चुनाव केवल अध्यक्ष पद की लड़ाई नहीं था, बल्कि यह राजनीतिक और पारंपरिक शक्ति का संगम भी साबित हुआ। चुनाव में राजनीतिक हस्तियों की उपस्थिति, पुराने राजपरिवारों का प्रतिनिधित्व और सामाजिक प्रतिष्ठा की लड़ाई ने इसे और महत्वपूर्ण बना दिया। यह चुनाव यह भी दर्शाता है कि परंपरा और राजनीति का तालमेल अब सिर्फ सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक सीमित नहीं है, बल्कि निर्णय प्रक्रिया और नेतृत्व चयन में भी अहम भूमिका निभाता है।
मतदान के दौरान सुरक्षा और शांतिपूर्ण वातावरण का पूरा ध्यान रखा गया। मतदाता और उम्मीदवार दोनों ही संपूर्ण प्रक्रिया में अनुशासित और संयमित दिखाई दिए।
विशेषज्ञ मानते हैं कि कीर्तिवर्धन सिंह की राजनीतिक समझ और पारिवारिक अनुभव उन्हें इन चुनौतियों से निपटने में मदद करेंगे।
चुनाव में सबसे रोचक पहलू यह रहा कि राजा भैया (कीर्तिवर्धन सिंह) ने स्वयं मतदान नहीं किया, जबकि उनका समर्थन पर्याप्त रहा। मतदाता सूची में विभिन्न जाति और समुदाय के राजा और तालुकेदार शामिल थे। यह चुनाव स्पष्ट रूप से समावेशी और पारंपरिक सम्मान के आधार पर आयोजित हुआ।
Published on:
07 Oct 2025 11:57 am