
Fast Fashion Pollution Crisis: फैशन की दुनिया जितनी रंगीन दिखती है, उतनी ही गहरी इसके पीछे की सच्चाई है। हर साल अरबों लीटर पानी बर्बाद होता है, करोड़ों टन कचरा बनता है और हमारे शरीर तक माइक्रोफाइबर पहुंच जाता है। अब समय है कि भारत 'फास्ट फैशन' के बजाय 'सस्टेनेबल फैशन' की ओर कदम बढ़ाए।
कभी फैशन को नई सोच और खुद को अच्छा दिखाने का तरीका माना जाता था, अब वही फैशन धरती पर बढ़ते प्रदूषण की वजह बन गया है। हर सीजन बदलते ट्रेंड्स ने फैशन को सस्ता और एक बार इस्तेमाल करने लायक बना दिया है, यही है फास्ट फैशन। कपड़े बनाने की प्रक्रिया हमारी नदियों को जहरीला कर रही है, हवा को दूषित कर रही है और एक - एक धागे को बनाने में पर्यावरण को बोझ झेलना पड़ रहा है। अब फैशन सिर्फ स्टाइल का मामला नहीं रहा, बल्कि यह धरती, पानी और मानव जीवन से जुड़ा एक गंभीर वैश्विक मुद्दा बन चुका है। भारत को अब 'मेक इन इंडिया' के साथ 'ग्रीन इन इंडिया' पर भी फोकस करना चाहिए।
दुनिया भर में फैशन उद्योग हर साल 79 अरब घन मीटर पानी का उपयोग करता है। एक टी-शर्ट बनाने में लगभग 2,700 लीटर और 1 जोड़ी जीन्स तैयार करने में करीब 7,500 लीटर पानी लगता है। यह उद्योग वैश्विक औद्योगिक जल प्रदूषण का 20%, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 8-10% और 92 मिलियन टन कपड़ा-कचरा हर साल उत्पन्न करता है।
वहीं भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा वस्त्र निर्यातक है। वस्त्र उद्योग देश की GDP में 2% योगदान देता है और 3.5 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार भी देता है। लेकिन इन उपलब्धियों के बीच कैमिकल कलर, डाई और सिंथेटिक कपड़े हमारे जलस्रोतों और मिट्टी को प्रदूषित कर रहे हैं।
फैशन का प्रदूषण कपड़े खरीदने तक ही सीमित नहीं है बल्कि सिंथेटिक कपड़े धोने पर निकलने वाले माइक्रोफाइबर नदियों और समुद्रों में पहुंचकर समुद्री जीवन और मानव जीवन को नुकसान पहुंचा रहे हैं। अब माइक्रोफाइबर नमक, पीने के पानी के साथ घुलकर हमारे रक्त और फेफड़ों तक पहुंच रहा है। विशेषज्ञों का कहना हैं कि इससे हार्मोनल असंतुलन, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ सकती हैं।
भारत इस समस्या को हल में बदल सकता है। अगर फैशन उद्योग रीसाइक्लिंग, टिकाऊ फाइबर, प्राकृतिक रंग और पानी बचाने वाली तकनीक अपनाए, तो प्रदूषण काफी कम किया जा सकता है। 2050 तक फैशन उद्योग के 75% कारखाने पानी की कमी वाले इलाकों में हो सकते हैं, जिनमें भारत, चीन और पाकिस्तान शामिल हैं। इसलिए अब समय है कि हम उपभोक्ता भी समझदारी दिखाएं कम खरीदें और बेहतर चीजें चुनें।
1. लंदन में कैटवॉक प्रोटेस्ट
2019 में लंदन के ऑक्सफोर्ड सर्कस में पर्यावरण समूह एक्स्टिंक्शन रेबेलियन ने एक अनोखा विरोध किया, उन्होंने सड़क पर पिंक कैटवॉक लगाकर 'डिस्पोजेबल फैशन' के खिलाफ प्रदर्शन किया। उनका संदेश था, “कम खरीदें, ज्यादा संभालें”।
2. ग्रीनपीस का बर्लिन प्रदर्शन
फरवरी 2024 में ग्रीनपीस ने बर्लिन के ब्रांडेनबर्ग गेट के सामने फैशन ब्रांड्स द्वारा अफ्रीका में कपड़ा-कचरा फेंके जाने के विरोध में विशाल ढेर लगाकर प्रदर्शन किया। उन्होंने दिखाया कि कैसे यूरोपीय देश अपने पुराने कपड़े अफ्रीकी देशों में 'रीसायक्लिंग' के नाम पर फेंक रहे हैं।
3. इटली में श्रमिकों का प्रदर्शन
अक्टूबर 2024 में इटली में चमड़ा उद्योग के श्रमिकों ने बेहतर कार्य परिस्थितियों और उचित वेतन की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। यह आंदोलन दिखाता है कि फैशन उद्योग का संकट पर्यावरण तक सीमित नहीं, वह मानव श्रम और सामाजिक न्याय से भी जुड़ा है।
Updated on:
13 Nov 2025 03:41 pm
Published on:
13 Nov 2025 03:15 pm

