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हिंदू परंपरा: प्रकृति संग रिश्तों की नई मिसाल, इमली-दुल्हन और कुआं-दूल्हा बने अद्भुत विवाह के साक्षी ग्रामीण

Unique Tradition: लखीमपुर खीरी के भेरमपुर गांव में सदियों पुरानी अनोखी परंपरा फिर जी उठी, जब ग्रामीणों ने इमली के पौधे को दुल्हन और कुएं को दूल्हा बनाकर धूमधाम से विवाह कराया। वैदिक मंत्रोच्चार, बरात, नृत्य और भोज के साथ पूरा गांव इस अद्भुत लोक रीति के उत्सव में शामिल हुआ।

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धूमधाम से निकाली बारात, ग्रामीणों ने किया अनोखा विवाह (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group)

धूमधाम से निकाली बारात, ग्रामीणों ने किया अनोखा विवाह (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group)

Hindu Tradition: लखीमपुर खीरी जिले के बेलरायां क्षेत्र के गांव भेरमपुर में रविवार को ऐसी अनोखी और आकर्षक परंपरा निभाई गई, जिसने न सिर्फ ग्रामीणों को उत्साहित किया बल्कि पूरे इलाके में चर्चा का विषय भी बना दिया। यहां इमली के पौधे को वधू और गांव के कुएं को वर मानकर परंपरागत वैदिक विधि-विधान से शादी कराई गई। गांव में डीजे की धुन पर नाचते बराती, द्वारा चार, वैदिक मंत्रोच्चार, भोज,सब कुछ वैसा ही जैसे किसी साधारण विवाह समारोह में होता है। लेकिन खास बात यह रही कि यह विवाह मानव नहीं, बल्कि प्रकृति और जल संरक्षण की लोक मान्यता को सम्मान देने की अनूठी परंपरा का प्रतीक था।

बारात निकली पूरे गांव में, ग्रामीणों ने नाचते-गाते मनाई खुशियां

रविवार सुबह से ही गांव भेरमपुर में शादी की तैयारियां जोरों पर थीं। कुएं को वर का स्वरूप देने के लिए स्थानीय पंडित कृपा शंकर ने आम की लकड़ी से दूल्हे का प्रतीकात्मक पुतला बनाया। उसे वस्त्र, माला, पगड़ी और धागे से सजाया गया। यह धागा लगभग 400 मीटर दूर स्थित आम के बाग में उस जगह तक बढ़ता था, जहां इमली का पौधा वधू के रूप में सजा था। दोपहर होते-होते कुएं पक्ष (घराती) के घर से धूमधाम के साथ बारात निकाली गई। डीजे साउंड पर बाराती जमकर नाचे। ग्रामीणों ने इस अनोखी परंपरा को खुशी का उत्सव बनाकर पूरे गांव में शहनाई और मंजीरे की धुन गूंजा दी। बारात  में ग्रामीणों ने न सिर्फ उत्साह दिखाया बल्कि उत्सव के भाव से पूरे आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग,सभी इस अनोखे विवाह समारोह के साक्षी बने।

वधू इमली को पहनाए गए गहने, सुहाग की रस्म भी निभाई

इमली के पौधे को वधू के रूप में पारंपरिक रीति से सजाया गया। ग्रामीण महिलाओं ने इमली को सुहाग देने की परंपरा निभाते हुए सोने का नाक फूल, टॉप्स, चांदी की पायल, मंगलसूत्र, चूड़ियां, चुनरी और साड़ी पहनाई। आमतौर पर यह रस्म ग्रामीण समाज में किसी विवाहित महिला के सुहाग की दीर्घायु के लिए की जाती है। इमली के पौधे और कुएं का यह विवाह ग्रामीण समाज में पेड़-पौधों और पानी के स्त्रोत के प्रति सम्मान का प्रतीक माना जाता है। इस आयोजन में महिलाओं ने पारंपरिक गीत गाकर माहौल को और भी आध्यात्मिक व सांस्कृतिक बना दिया।

वैदिक मंत्रोच्चार के साथ द्वारा चार, पूरा हुआ फेरे का संस्कार

बरात आम बाग में पहुंची तो वधू पक्ष ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ द्वारा चार की रस्म अदा की। पंडित कृपा शंकर ने कुएं के दूल्हे और इमली की दुल्हन के बीच प्रतीकात्मक फेरे कराए। इस दौरान मंत्रोच्चार और पूजा-पाठ से पूरा वातावरण पवित्र हो उठा। फेरे पूरे होते ही ग्रामीणों ने तालियां बजाकर विवाह की बधाई दी और परंपरा को संरक्षित करने का संकल्प भी दोहराया।

बारातियों और ग्रामीणों के लिए भोज, उत्सव में शामिल हुआ पूरा गांव

द्वारा चार के बाद वधू पक्ष ने बारातियों को चाय, नमकीन और लड्डू का नाश्ता कराया। इसके बाद सभी के लिए भव्य विवाह भोज की व्यवस्था की गई, जिसमें दाल-चावल, सब्जी, पूड़ी और मीठा परोसा गया। भोज में ग्रामीणों ने बड़े उत्साह के साथ हिस्सा लिया और इसे एक सामूहिक उत्सव की तरह मनाया। गांव के लोग बताते हैं कि इस परंपरा से समाज में आपसी एकता बढ़ती है और प्रकृति के इस पवित्र बंधन को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने का मौका मिलता है।

परंपरा की जड़ 1960 से: पहले भी हो चुका है ऐसा विवाह

भेरमपुर निवासी जगन्नाथ प्रसाद यादव बताते हैं कि इस अनोखी परंपरा की शुरुआत वर्ष 1960 में हुई थी, जब गांव के निवासी खुशी राम यादव के कुएं का विवाह इमली के पेड़ से किया गया था। इसके बाद 1995 में पुनः यह परंपरा निभाई गई।
खुशी राम यादव के पुत्रों में संपत्ति के बंटवारे के दौरान कुआं एक पुत्र के हिस्से में आया और बाग में लगी इमली दीमक की वजह से नष्ट हो गई। चूंकि परंपरा के अनुसार ग्रामीणों को उसी कुएं और उसी इमली के पेड़ का पूजन करना होता था, इसलिए नए पौधे की आवश्यकता महसूस हुई। इसी के बाद वर्ष 2024 में आम के बाग में नई इमली लगाकर परंपरा को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया गया।

महिलाओं ने निभाई पारंपरिक रस्में: छेई, रातिजगा और तेल पूजन

  • विवाह से पहले गांव की महिलाओं ने तीन दिवसीय परंपरागत रस्में निभाईं-
  • बुधवार: छेई – विवाह आरंभ की घोषणा
  • गुरुवार: रातिजगा – रात भर गीत-संगीत
  • शुक्रवार: तेल पूजन – शुभ विवाह की तैयारी

इन रस्मों के बाद रविवार को इमली और कुएं का प्रतीकात्मक विवाह सम्पन्न किया गया।

ग्रामीणों ने परंपरा को बताया प्रकृति संरक्षण का संदेश

ग्रामीण बताते हैं कि इस विवाह का मुख्य उद्देश्य प्रकृति और जल संरक्षण के महत्व को रेखांकित करना है। कुआं जीवन का आधार है और इमली प्रकृति की देन,इसलिए दोनों का संघ ग्रामीण समाज में पवित्र माना जाता है। यह मात्र एक अनोखा आयोजन नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का सांस्कृतिक रूप है। गांव के वरिष्ठ लोग कहते हैं कि पेड़-पौधों और जल स्रोतों को विवाह और पूजा से जोड़कर उनका संरक्षण स्वाभाविक बन जाता है। बच्चे भी इन परंपराओं से जुड़ते हैं और प्रकृति के प्रति सम्मान सीखते हैं।

सैकड़ों ग्रामीण बने साक्षी

इस अनूठे आयोजन में वीरेंद्र कुमार यादव, अवधेश कुमार यादव, राकेश यदुवंशी, परमानंद कश्यप, कुलदीप कुमार, गोपाल, रोहन कश्यप सहित सैकड़ों ग्रामीण मौजूद रहे। सभी ने इसे एक ऐतिहासिक और यादगार पल बताया, जिसे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी संरक्षित किया जाएगा।


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