
Nagar nigam katni
कटनी. नगर निगम परिषद की बैठक शुक्रवार को नगर निगम अध्यक्ष मनीष पाठक की अध्यक्षता में एक बार फिर आयोजित हुई। दरअसल 11 नवंबर को आयोजित हुआ सम्मिलन पूरा नहीं हो पाया था। स्थगित बैठक के चलते 28 नवंबर को सम्मिलन बुलाया गया, जहां पर प्रस्तावों पर चर्चा हुई। बैठक में महापौर प्रीति सूरी, विधायक संदीप जायसवाल, आयुक्त तपस्या परिहार, उपायुक्त शैलेष गुप्ता सहित एमआइसी सदस्य व पार्षद मौजूद रहे। एक बार फिर अफसरों की कारगुजारी, आधी-अधूरी जानकारी के साथ बैठक में जानकारी देना सुर्खियों में रहा। नगर सरकार को विपक्ष ने जहां जमकर घेरा तो सत्तापक्ष के पार्षदों ने भी सवाल खड़े किए। इस दौरान बैठक में स्टेशन चौराहा में बना राजीव गांधी शॉपिंग कॉम्पलेक्स चर्चाओं में रहा, जहां पर विपक्ष ने तो अफसरों को कटघरे में खड़ा करते हुए जमकर हंगामा मचाया। अफसरों पर गंभीर आरोप मढ़े। साथ ही सत्तापक्ष के विधायक संदीप जायसवाल ने भी अधिकारियों को आड़े हाथों लेते हुए सभी को मिलकर इस विषय में काम करने कहा, ताकि ननि को राहत मिल सके। जैसे ही बैठक में कॉम्पलेक्स में चर्चा कराए जाने को लेकर संक्षेपिका पर चर्चा शुरू की गई, तो पार्षद मौसूफ अहमद ने सवाल खड़े किए। कहा कि 64 बिंदुओं की जानकारी बगैर किसी ठोस आधार के दी गई। बैठक में अफसरों की कार्यप्रणाली, एमआइसी के निर्णय पर भी जमकर हल्ला मचा।
वरिष्ठ कांग्रेस पार्षद मिथलेश जैन ने कहा कि नगर निगम की बिल्डिंग, एफडीआर कुर्क की स्थिति आ गई है, यह बड़ा गंभीर विषय है। शहर की जनता के हित में काम होने चाहिए। 1999-2000 से इस केस प्रकरण की शुरुआत हुई। ठेकेदार ने क्लेम किया तो ननि के अधिवक्ता प्रतिरक्षा के लिए मजबूती से अपना पक्ष नहीं रख पाए, जिसका परिणाम कि आर्बिटेशन में हार गए। 2012 में 5 सदस्यीय जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट दी थी वह इस फाइल से गायब है। तत्कालीन आयुक्तों का जानकारी भी दी गई, बावजूद इसके अब संक्षेपिका में रिपोर्ट को शामिल नहीं किया गया। नगर निगम में खेत को बाड़ ही खा रही है। दोषियों पर जवाबदारी तय नहीं हुई। इस पूरे मामले में परिषद को विश्वास में नहीं रखा गया। इस मामले में अब हम लोकायुक्त में भी जाएंगे। ठेकेदार से प्रीमियम की राशि वसूलने नगर निगम ने कुछ नहीं किया। नगर निगम सर्वोच्च न्यायालय तक गया और केस हार गए। पार्षद ने महापौर को भी कहा कि आपने ध्यान नहीं दिया। पार्षद ने यह भी कहा कि तीन माह पहले न्यायालय से फैसला आया। उसमें मध्यस्थता की बात लिखी गई, लेकिन कोई निर्णय अबतक नहीं लिया गया। जब यदि सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है तो परिषद में क्या निर्णय होगा।
पार्षद मिथलेश जैन ने यह भी कहा कि कानूनी प्रक्रिया, अधिकार के साथ क्यों नहीं इस मामले का हल निकालने प्रयास हो रहा। नगर निगम के तृतीय वर्ग के कर्मचारी की टीप में सभी ने हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन अपनी राय किसी ने नहीं दी। यह गंभीर विषय है, यदि इस पर समुद्र मंथन होता है तो इससे जो अमृत निकले व नगर निगम रखे और जो जहर वह दोषियों के पाले में जाए। उन्होंने सदन में सवाल रखा कि खुशीराम एंड कंपनी ने क्या बगैर विकास अनुज्ञा के काम कर दिया तो अधिकारी जवाब नहीं दे पाए। क्या बगैर स्वीकृति के ही कंपनी को ठेका दिया गया तो इसका भी जवाब अफसर व नगर सरकार नहीं दे पाई। मिथलेश जैन ने कहा कि प्रमोटर ने सिर्फ 85 लाख रुपए जमा किए हैं, शेष प्रीमियम की राशि नहीं जमा हुई, जो ब्याज सहित जमा होनी चाहिए।
इस पर जब नगर निगम अध्यक्ष ने काम्पलेक्स के विषय में आयुक्त को जानकारी देने कहा तो आयुक्त तपस्या परिहार ने कहा कि एमआइसी में प्रस्ताव पारित कर परिषद में रखा गया था। इस विषय पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में बात रखने के लिए 4 दिसंबर की डेट मिली है। आगे इस पर क्या करना है वह निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले की वे डिटेल नहीं बता पाएंगे। आगे सभी बिंदुओं पर चर्चा करेंगे। इस दौरान पार्षद बिट्टू ने कहा कि संक्षेपिका में एमआइसी का कोई उल्लेख नहीं है। परिषद में रखने की क्या वजह है मंशा स्पष्ट की जाए, तो इस पर महापौर ने कहा कि इसके लिए आगे अच्छा रास्ता निकाला जाएगा। विधायक भी हमारे साथ हैं।
विधायक संदीप जायसवाल ने कहा कि इस मामले की जब 4 दिसंबर की न्यायालय में डेट मिली है तो यह पहले चर्चा कर तय कर लें। ठोस आधार पर न्यायालय में बात करें। मध्यास्थता विषय पर क्या काम किया गया। विधायक ने कहा कि 22 करोड़ 60 लाख रुपए की रिकवरी है, ब्याज जोडकऱ तो यह 60 करोड़ के ऊपर जा रही है। यदि इसमें नगर निगम के खिलाफ निर्णय हो गया तो 100 से 200 साल तक लोग याद रखेंगे। विधायक ने कहा कि अधिकारी इस पूरे मामले में जानकारी देने से क्यों बच रहे हैं जबकि वे शुरू से यहां पदस्थ हैं व मामले को देख रहे हैं। विधायक ने पूछा कि कितनी दुकानें बनी हैं व कितनी चालू हैं, पार्किंग में दुकानें कैसे चल रही हैं, आपकी दुकानों में सिकमी किरायेदार कैसे हैं, आपने क्या पलटवार किया, सरकारी दुकान शराब दुकान कैसे, बार कैसे। सबकी जांच करोगे तो 90 करोड़ की रिकवरी निकाल दोगे। एमपीइबी, जीएसटी लाइसेंस आदि की जानकारी लें, शॉप एक्ट में कितने लाइसेंस है, कितनी रजिस्ट्री हुई हैं, किराया कितना आया, टैक्स कितना जमा हुआ, अतिक्रमण हटाने क्या अभियान चला, यहां तो दो-दो हजार लेकर दुकानें लगवाई जा रही हैं। विधायक ने कहा कि हम बहुत विकट स्थितियों में खड़े हैं, यदि ठेकेदार कह रहा है कि एग्रीमेंट अनुसार पूरा एरिया नहीं दिया गया तो कहीं और भी तो देने कहा गया था, जब ड्राइंग और डिजाइन नहीं थी तो फिर बगैर अनुमति निर्माण क्या ठेकेदार ने किया, इन सब विषयों को रिकॉर्ड कर क्यों नहीं प्रमोटर पर ब्याज सहित वसूली निकाली जा रही।
बैठक शुरू होते ही अधिकारी-कर्मचारियों को 300 से बढकऱ एक हजार रुपए किये जाने वाले चिकित्सा भत्ता पर चर्चा की गई। इस दौरान पार्षद मिथलेश जैन व मौसूफ अहमद ने हितों को ध्यान में रखते हुए 3 हजार रुपए तक करने कहा। पार्षदों ने कहा कि एक हजार में तो जांच भी नहीं होती, इस पर महापौर ने माली हालत खराब होने की बात कही। महापौर ने यह भी कहा कि हमें भी कर्मचारियों की चिंता है लेकिन क्या करें बजट का भी तो ध्यान रखना है। चिकित्सा भत्ता बढ़ाने के लिए उन्होंने सागर आदि निगमों से भी जानकारी लेने की बात की। नगर निगम अध्यक्ष ने कहा कि चिंता की गई है तभी तो 300 से बढ़ाकर राशि एक हजार हो गई। पार्षद ओमी रजक ने आउटसोर्स सहित अन्य कर्मचारियों को भी चिकित्सा भत्ता दिए जाने की पैरवी की। पार्षद मिथलेश जैन ने पार्षदों का भी बीमा कराए जाने बात कही। वहीं पार्षदों ने बजट प्रावधान में शामिल न किए जाने पर सवाल किए तो अफसर जवाब नहीं दे पाए। पार्षद अवकाश जायसवाल ने कहा कि नगर निगम की आय बढ़ाने के लिए कोई चिंता नहीं दिख रही।
जैसे ही मप्र नगरपालिका तरणतालों का विनियमन आदर्श उपविधि 2011 को अंगीकार करने के प्रस्ताव पर चर्चा हुई तो स्वीमिंग पूल में की गई मनमानी को विपक्ष ने आड़े हाथों लिया। मौसूफ अहमद ने कहा कि इसमें बिजली कनेक्शन ठेकेदार ने क्यों नहीं लिया, 12 रुपए प्रति हजार लीटर पानी का पैसा लेना तो वह क्यों नहीं लिया गया, स्वीमिंग पूल नहाने योग्य है, पानी सही है कि नहीं आदि की टेस्टेड रिपोर्ट है क्या तो अधिकारी जवाब नहीं दे पाए। बिट्टू ने कहा कि नगर निगम से नोटिस तो जारी हुआ, लेकिन ठेकेदार तक नहीं पहुंचा। प्रभारी कार्यपालन यंत्री अंशुमान सिंह ने जानकारी देना शुरू किया तो अध्यक्ष ने पूछा कि आप कौन हैं तो उन्होंने अपने आप को इइ बताया। इस पर पार्षर्दों ने कहा कि यदि अधिकारी की पदस्थापना हुई है तो महत्वपूर्ण जानकारी पार्षदों को देना क्यों उचित नहीं समझा गया। हालांकि अंशुमान सिंह कोई जानकारी नहीं दे पाए। इस पर अध्यक्ष ने तल्खी दिखाई और चर्चा को रोकते हुए कहा कि आधी अधूरी जानकारी के साथ काम नहीं चलेगा।
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Published on:
29 Nov 2025 08:35 pm
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