
कार और बाइक की आमने-सामने जोरदार भिड़ंत (Photo Patrika)
कटनी. जिले में सडक़ सुरक्षा की हकीकत किसी चेतावनी से कम नहीं है। वर्ष 2025 के जनवरी से अक्टूबर तक जिले में सडक़ हादसों के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे जिले की सडक़ व्यवस्था, ट्रैफिक मैनेजमेंट और सुरक्षा उपायों पर प्रश्नचिह्न खड़े करते हैं। मात्र 10 महीनों में 916 सडक़ दुर्घटनाएं, 1142 सामान्य घायल, 61 गंभीर घायल और 242 लोगों की मौतें हुई हैं। यह स्थिति सिर्फ चिंताजनक नहीं, बल्कि बेहद भयावह है। ये आंकड़े बताते हैं कि जिले की सडक़ें मौत का जाल बन चुकी हैं और प्रशासनिक उदासीनता इस खतरनाक ट्रेंड को और भी बढ़ावा दे रही है। इन आंकड़ों के पीछे सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि टूटे हुए परिवार, रोते हुए बच्चे और जिंदगीभर का दर्द है। हर मौत इस बात के लिए चेतावनी है कि सडक़ सुरक्षा कोई प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि जिंदगी की रक्षा का विषय है। फिर भी हालात यह हैं कि जिले में रोड सेफ्टी ऑडिट, ब्लैक स्पॉट चिन्हांकन, सख्त ट्रैफिक नियम, स्पीड कंट्रोल सब केवल कागजों में चलता दिख रहा है।
जिले के हाईवे और मुख्य सडक़ों पर स्पीड लिमिट सिर्फ बोर्ड पर लिखी है, पालन कहीं नहीं दिखता। अवैध पार्किंग और सडक़ किनारे दुकानें मनमाने तरीके से लगी हैं। कई जगहों पर हाइवे किनारे अतिक्रमण और मनमानी पार्किंग इतनी बढ़ गई है कि वाहन का निकलना मुश्किल हो जाता है। ओवरलोड वाहन और बिना फिटनेस ट्रकों का संचालन भी हो रहा है। भारी वाहनों की अनियंत्रित आवाजाही दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण है।
जिले में ट्रैफिक पुलिस का अमला पर्याप्त नहीं। जहां जरूरत है, वहां तैनाती नहीं होती। कटनी-शहडोल हाईवे पर बनी हाईवे सुरक्षा चौकी पर ताला लटकता रहता है। यहां पूर्व में एक सूबेदार सहित अन्य तैनात थे। हादसों के दौरान घायलों को त्वरित मदद मिलती थी लेकिन अब सिर्फ एक प्रधान आरक्षक यहां तैनात है।
कई मामलों में घायल समय पर उपचार नहीं मिलने से दम तोड़ देते हैं। यह आंकड़े गंभीर घायलों और मृतकों के बीच अंतर में साफ देखा जा सकता है। आलम यह है कि सरकारी अस्पताल गंभीर घायलों का सिर्फ प्राथमिक उपचार कर रहे हैं और मरीजों को जबलपुर रेफर किया जा रहा है। विशेषज्ञों की कमी है। सरकारी राहवीर योजना चला रही है, जिससे घायलों को समय पर उपचार मिल सके लेकिन जिले में इस योजना के तहत अबतक किसी को पुरस्कृत नहीं किया गया है।
जनवरी से अक्टूबर तक हर महीने मौतों का तांडव
जनवरी: 107 दुर्घटनाएं, 27 मौतें
वर्ष 2025 में साल की शुरुआत ही खौफनाक रही। जनवरी में 118 लोग घायल हुए और 14 गंभीर रूप से जख्मी। 27 परिवारों ने अपनों को खो दिया। यह संकेत था कि साल कठिन होने वाला है।
फरवरी में सामान्य घायलों का आंकड़ा 176 तक पहुंच गया। 8 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। लेकिन सबसे भयावह रहा 33 मौतों का आंकड़ा, जिसने जिले को हिला दिया।
मार्च में हादसों में थोड़ी कमी दिखी, लेकिन मौतों का ग्राफ फिर 27 पर आकर रुक गया। यह संकेत है कि सडक़ से लेकर अस्पताल तक कहीं ना कहीं व्यवस्था फेल होती दिखी।
अप्रैल में हादसे तो कम हुए, लेकिन 139 घायल हुए और 5 गंभीर रूप से जख्मी। मौतें 23। सवाल यही कि इतने कम हादसों में भी मौत का आंकड़ा इतना बड़ा क्यों?
मई: 36 मौतें, दूसरा सबसे खतरनाक महीना
मई ने जिले की सडक़ सुरक्षा की पोल खोल दी। 163 सामान्य घायल, 6 गंभीर घायल और 36 मौतें। गर्मियों में हाइवे पर तेज रफ्तार और भारी वाहनों के दबाव ने स्थिति को और खतरनाक बना दिया।
जून: 96 दुर्घटनाएं, 29 मौतें
जून में भी ट्रेंड खतरनाक रहा। हादसों की संख्या 100 से कम, लेकिन लगभग 30 मौतें। यह समझना मुश्किल नहीं कि समस्या सिर्फ दुर्घटना संख्या नहीं, बल्कि दुर्घटनाओं के बाद बचाव व्यवस्था की कमजोरी भी है।
बारिश की शुरुआत के साथ हादसों में कमी दिखी, लेकिन 22 मौतें फिर भी बताती हैं कि सडक़ें बरसात में और भी खतरनाक हो जाती हैं।
अगस्त में घायलों की संख्या 77 दर्ज हुई, यह महीना अपेक्षाकृत शांत दिखा लेकिन फिर भी 18 मौतें किसी भी तरह से कम नहीं हैं।
सितंबर में मौतों में कमी दिखी, लेकिन 107 घायलों का आंकड़ा बताता है कि सडक़ें सुरक्षित नहीं हुईं। गंभीर घायलों का आंकड़ा भी 3 रहा।
अक्टूबर में हादसों की संख्या सबसे कम रही, फिर भी 16 मौतें हुईं। यानी कम दुर्घटनाएं लेकिन ज्यादा मौतें।
साल के अंतिम दो महीनों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन यदि ट्रेंड को देखते हुए अनुमान लगाया जाए तो वर्ष 2025 के अंत तक हादसों की संख्या 1000 से ऊपर पहुंचने की आशंका है और मृतकों का आंकड़ा 300 के आसपास जा सकता है।
ये होना चाहिए
Published on:
28 Nov 2025 09:50 pm
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