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Cyber ​​slavery : ठगी के लिए दबाव बनाया, मना किया तो डेढ़ महीने तक एक कमरे में बंधक रखा

छह महीने पहले, ये युवक सोशल मीडिया के माध्यम से थाईलैंड में आकर्षक नौकरी के झांसे में आ गए। भर्ती प्रक्रिया के तहत उन्हें फ्लाइट टिकट दी गई और वे दिल्ली से थाईलैंड रवाना हो गए। लेकिन वहां पहुंचने के बाद, उन्हें म्यांमार-थाईलैंड सीमा पर ले जाकर जबरन साइबर ठगी और अन्य अवैध गतिविधियों में शामिल कर लिया गया।

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भारत सरकार ने हाल ही में म्यांमार-थाईलैंड सीमा के पास संचालित साइबर ठगी केंद्रों से 549 भारतीयों को छुड़ाया था। इनमें राजस्थान के 31 युवकों में झुंझुनूं जिले के सुलताना के सत्यवीर, मो. साजिद, नयूम, विनोद कुमार, झुंझुनूं शहर का मो. अशरफ, श्यामपुरा का संदीप, पौंख का जितेंद्र कुमार, किशोरपुरा का रमाकांत व बासड़ी का हिमांशु शामिल है। करीब छह महीने पहले, ये युवक सोशल मीडिया के माध्यम से थाईलैंड में आकर्षक नौकरी के झांसे में आ गए। भर्ती प्रक्रिया के तहत उन्हें फ्लाइट टिकट दी गई और वे दिल्ली से थाईलैंड रवाना हो गए। लेकिन वहां पहुंचने के बाद, उन्हें म्यांमार-थाईलैंड सीमा पर ले जाकर जबरन साइबर ठगी और अन्य अवैध गतिविधियों में शामिल कर लिया गया।

साइबर गुलामी में फंसे पीडि़त ने पत्रिका से सांझा किया अपना दर्द

साइबर गुलामी में फंसे झुंझुनूं शहर के वार्ड नंबर 32 निवासी अशरफ ने अपना दर्द साझा करते हुए बताया कि अगस्त 2024 में सोशल मीडिया के माध्यम से वे एक कंपनी के संपर्क में आए और ऑनलाइन आवेदन किया। जल्द ही उन्हें थाईलैंड जाने के लिए टिकट भेज दी गई। वहां पहुंचने पर, कंपनी ने जॉइनिंग दी और उनसे अंग्रेज़ी भाषा की जानकारी पूछी। जब उन्होंने असमर्थता जताई, तो उन्हें प्रशिक्षण दिया गया और फिर विभिन्न देशों के नागरिकों को ऑनलाइन ठगने के काम में लगा दिया गया। लगभग छह महीने तक अशरफ और उनके साथी इस मजबूरी में फंसे रहे। जब उन्होंने काम करने से इनकार किया, तो उन्हें एक छोटे कमरे में बंद कर दिया गया। डेढ़ महीने तक वे एक कमरे में फंसे रहे और किसी तरह भारतीय दूतावास से संपर्क किया। शिकायत के बाद, भारतीय दूतावास ने मामले को गंभीरता से लिया और इन युवाओं को छुड़ाने की प्रक्रिया शुरू की। आखिरकार, भारत सरकार की कोशिशों से सभी पीड़ितों को फ्लाइट के ज़रिए दिल्ली लाया गया, जहाँ से वे अपने-अपने घर पहुंचे।

कोई छुट्टी नहीं, परिजनों से बात करने की भी मनाही

अशरफ ने बताया कि उन्हें घंटों ऑनलाइन चैटिंग कर लोगों को ठगने के लिए मजबूर किया जाता था। काम से इनकार करने पर प्रताड़ित किया जाता, लेकिन कोई छुट्टी नहीं दी जाती थी। यहां तक कि मोबाइल का इस्तेमाल भी सीमित कर दिया गया था। परिजनों से केवल दुआ-सलाम की अनुमति थी, लेकिन विस्तृत चर्चा की मनाही थी। भोजन के नाम पर सिर्फ सीमित चीनी व्यंजन दिए जाते थे और मानसिक उत्पीड़न किया जाता था।


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