जैसलमेर जिले के जैसलमेर और पोकरण शहरी क्षेत्रों में एक तरफ शहरी सेवा शिविर संबंधी शिविरों में अच्छी संख्या में लोग अपना कामकाज करवाने के लिए पहुंच रहे हैं तो दूसरी ओर ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर आयोजित हो रहे अधिकांश ग्रामीण सेवा शिविरों का बहिष्कार किए जाने से ये शिविर रस्म अदायगी भर बन कर रह गए हैं। बीते दिनों के दौरान सोनू, खींया, राघवा, रूपसी, पूनमनगर, तेजरावा, बईया आदि गांवों में जहां ग्रामीणों ने शिविरों का मोटे तौर पर बहिष्कार किया, वहीं शनिवार को भी मोहनगढ़, सत्याया आदि में भी ग्रामीण विरोध में उतरे। शिविरों में सरकारी कर्मचारी और अधिकारी तो पहुंच रहे हैं लेकिन ग्रामीण लगभग नदारद हैं। वे शिविर स्थल पर पहुंचते हैं और शासन-प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए अपनी मांगों से संबंधित ज्ञापन सौंपते हैं। फिर बहिष्कार कर लौट जाते हैं। आंदोलन का समर्थन कर रहे ग्रामीण अन्य लोगों को भी शिविर में भाग नहीं लेने के लिए मना रहे हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से प्रशासन व सरकार पर जिले में ओरण व गोचर को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करने के लिए दबाव बढ़ेगा।
ओरण व गोचर को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करवाने के लिए गत 5 दिनों से जिला मुख्यालय पर चल रहे धरना एवं विरोध प्रदर्शन जारी हैं। पर्यावरण प्रेमियों की मुख्य मांग के अलावा अन्य कुछ मांगें भी हैं। जिनमें जिले में स्थापित होने वाली औद्योगिक इकाइयों को नियम-कायदों से संचालित करवाने, जिले के पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाली कम्पनियों पर अंकुश लगाने आदि से संबंधित मांगें भी शामिल हैं। ग्रामीण सेवा शिविरों के बहिष्कार के चलते जिले में पर्यावरण प्रेमियों का आंदोलन गति पकडऩे के साथ उसका दायरा भी फैल रहा है। ऐसे में निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी उनके बीच पहुंच गए हैं और उनकी मांगों के प्रति समर्थन भी जता चुके हैं। यही कारण है कि आंदोलन की शुरुआत जहां विशाल पदयात्रा से हुई, वहीं शुक्रवार देर शाम निकाले गए मौन जुलूस में भी बड़ी तादाद में ग्रामीणों के साथ शहरी जन भी शामिल हुए।
जहां तक जैसलमेर नगरपरिषद क्षेत्र में चल रहे शिविरों का सवाल है, इनमें लोग तो जुट रहे हैं लेकिन वहां होने वाले कार्यों में सरकार की तरफ से दी जाने वाली रियायतों के बारे में पुख्ता जानकारी नहीं मिल रही है। मसलन, नगरपरिषद और नगर विकास न्यास से जुड़े कार्यों में सरकार ने निर्धारित शुल्क में कई रियायतों का प्रावधान किया है। इसके बावजूद ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। साथ ही शिविरों में होने वाले कामकाज के बारे में भी विस्तार से बैनर लगा कर जानकारी कराए जाने की भी जरूरत नजर आ रही है।
Published on:
20 Sept 2025 08:55 pm