
शृंगारित खींवज माता की प्रतिमा। पत्रिका
पोकरण कस्बे से 3 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में बाड़मेर रोड स्थित पठार पर स्थित खींवज मातेश्वरी का मंदिर कस्बे सहित आसपास के लोगों के लिए श्रद्धा का केन्द्र है। मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालुओं का आवागमन रहता है। कस्बे के प्रसिद्ध व पौराणिक मंदिरों में से एक खींवज मैया के मंदिर में शारदीय नवरात्रा के मौके पर सुबह शाम भीड़ उमड़ रही है। अपने अतीत में ऐतिहासिक गौरव को समेटे मंदिर की स्थापना विक्रम संवत 1028 वैशाख सुदी 13 को हुई थी, जो कस्बे के आबाद होने से भी 500 वर्ष पूर्व बताई जाती है। माहेश्वरी समाज के भूतड़ा जाति व राजपूत समाज के सोलंकी जाति की कुलदेवी के रूप में मानी जाने वाली देवी मां के स्थानीय मंदिर की देखरेख एवं व्यवस्थाएं माहेश्वरी भूतड़ा समाज की ओर से की जाती है, लेकिन हिंदू समाज के सभी वर्ग व जातियों के लिए यह मंदिर श्रद्धा का केन्द्र है। ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार मातेश्वरी का प्राकट्य रुद्राणी के रूप में हुआ था। मंदिर के पास ही एक 400 साल पुराना तालाब स्थित है, जिसकी गहराई हाथी के कद के बराबर है और भरे हुए तालाब में यदि हाथी घुस जाए तो वह भी डूब जाए। इसलिए इसे हाथीनाडे के नाम से जाना जाता है।
मंदिर में गत कई वर्षों से अखण्ड ज्योत जल रही है और वर्ष में दो बार यहां चैत्र व आसोज नवरात्रा में दिन रात दर्शनार्थियों की खासी भीड़ रहती है। इन दिनों में प्रदेश के विभिन्न जिलों गुजरात, महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश प्रांत में निवास कर रहे माहेश्वरी भूतड़ा, राजपूत सोलंकी व अन्य समाजों के सैकड़ों श्रद्धालु यहां प्रतिदिन पहुंचकर पूजा-अर्चना कर रहे है।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 16वीं शताब्दी में जब कुछ बाहरी आक्रांताओं व मुगलशासकों की ओर से देश के विभिन्न आस्था केन्द्रों के साथ तोडफ़ोड़ की गई, उस दौरान वे यहां भी पहुंचे थे। निज मंदिर में स्थित देवी प्रतिमाओं को तोडऩे के कई प्रयास किए गए थे। बताया जाता है कि आक्रांता इन प्रतिमाओं को नुकसान नहीं पहुंचा सके।
मंदिर की पूजा-अर्चना यहां के पुजारी महेश शर्मा व उनका परिवार कई पीढिय़ों से कर रहा है। मंदिर के जीर्णोद्धार व नवनिर्माण का कार्य गत कई वर्षों से जारी है। दक्षिणी भारत के मंदिरों की तरह सफेद संगमरमर से मंदिर के ऊपर कलात्मक गुंबद का निर्माण करवाया गया और मंदिर का तोरण द्वार स्वर्ण नगरी के पीले पत्थरों से बनाया गया है। जाली झरोखें व गोखड़े यहां की बेजोड़ स्थापत्यकला को जीवंत कर रहे है। मंदिर के पास ही एक धर्मशाला का भी निर्माण कार्य करवाया गया है। कस्बे के लोगों के लिए बारिश के दिनों में यह एक रमणीक स्थल है। जहां कस्बे के लोग आकर सुकून महसूस करते है।
Published on:
22 Sept 2025 11:23 pm
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