Patrika Logo
Switch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

प्लस

प्लस

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

इंसास हटेगी.. अब जवानों के कंधे पर सवार होगा स्वदेशी ‘शेर’

अब सीमाओं पर तैनात जवानों को स्वदेशी च्शेर' यानी ए-के-203 असॉल्ट राइफल मिलने जा रही है।

मरुस्थल की तपती रेत, सीमांत चौकियों की कठोर परिस्थितियां और पाकिस्तान से सटा बॉर्डर—इन सभी वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए भारतीय सुरक्षा बलों के हथियारों में बड़ा बदलाव शुरू हो गया है। अब सीमाओं पर तैनात जवानों को स्वदेशी च्शेर' यानी ए-के-203 असॉल्ट राइफल मिलने जा रही है। यह राइफल उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के कोरवा में बनी है, लेकिन इसका निर्णायक परीक्षण राजस्थान के बॉर्डर इलाकों में पिछले सप्ताह पूरा हुआ, जहां अत्यधिक गर्मी, धूलभरी हवाओं और लंबी दूरी की दृश्य-सीमा जैसी परिस्थितियां किसी भी हथियार की वास्तविक क्षमता का परीक्षण करती हैं। सेना ने ट्रायल रिपोर्ट को उत्कृष्ट पाया और च्शेरज् को मंजूरी दे दी। इसके बाद दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक जवानों को इसका पहला बड़ा बैच सौंपे जाने की तैयारी है।

यह राइफल लंबे समय से उपयोग में आ रही इंसास प्रणाली का स्थान लेगी, जिसे चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है। सेना की ओर से जारी वीडियो फुटेज में च्शेरज् को असेंबली लाइन से निकलते हुए और रेगिस्तानी वातावरण में लगातार फायरिंग करते हुए दिखाया गया है। पहले यह राइफल मात्र 5 प्रतिशत स्थानीय सामग्री पर आधारित थी, जबकि वर्तमान में यह 70 प्रतिशत से अधिक भारतीय स्टील और स्वदेशी कलपुर्जों से निर्मित हो रही है। सैन्य सूत्रों के अनुसार यह परिवर्तन न केवल हथियार की मजबूती बढ़ाएगा, बल्कि सीमावर्ती इलाकों में इसके रखर-खाव में भी सहुलियत रहेगी। च्शेर' ए-के-203की प्रमुख विशेषताएं इसे विश्व की घातक राइफलों की श्रेणी में लाती हैं। इसकी फायरिंग गति लगभग 700 राउंड प्रति मिनट है और प्रभावी दूरी 800 मीटर तक मानी गई है। हिमालय की ऊंचाई, रेगिस्तानी विशिष्ट तापमान, थार सीमा के दुरूह टीलों या घने सीमा क्षेत्रों—हर भू-वातावरण में इसे विश्वसनीय पाया गया है।

हकीकत यह भी

इसका सबसे महत्वपूर्ण आयाम सीमावर्ती सुरक्षा से जुड़ा है। बताया जा रहा है कि पिछले सप्ताह जिस रेंज पर इसका ट्रायल हुआ, वह पाकिस्तान बॉर्डर से बेहद निकट है, जहां बदलते हालात के अनुरूप तेज प्रतिक्रिया क्षमता जरूरी मानी जाती है। अब सेना के साथ बीएसएफ को भी च्शेरज् उपलब्ध कराने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इंडो-रूसी राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड यानी आइआरआरपीएल इस पूरे उत्पादन केंद्र का संचालन कर रही है। 8.5 एकड़ क्षेत्र में स्थापित इस इकाई में भारत की हिस्सेदारी पचास दशमलव 5 प्रतिशत है। आइआरआरपीएल ने घोषणा की है कि दिसंबर 2025 तक च्शेरज् को 100 प्रतिशत स्वदेशी संसाधनों से बनाने का लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा।

उत्पादन क्षमता बढ़ाकर वर्ष में लगभग डेढ़ लाख यूनिट तक पहुंचाने की योजना पर भी कार्य चल रहा है। दिसंबर माह अंत तक लगभग 75 हजार राइफलें सेना को सौंपने का लक्ष्य है। परियोजना की अनुमानित लागत लगभग 5200 करोड़ आंकी गई है। सूत्रों के अनुसार मरुस्थलीय बॉर्डर क्षेत्रों में लंबे समय से एक ऐसी राइफल की जरूरत महसूस की जा रही थी, जो अत्यधिक तापमान, तेज हवा, महीन रेत और कठिन गश्त-पहियों में भी निर्बाध प्रदर्शन दे सके। च्शेर ए-के-203 के शामिल होने के बाद यह कमी पूरी मानी जा रही है। हथियार की अदला-बदली भी सीमांत सुरक्षा व्यवस्था में निर्णायक उन्नयन माना जा रहा है।
फोटो कैप्शन- अब सेना को मिलेगा स्वेदशी 'शेर' एके-203 राइफल का साथ।