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Rajasthan Private Bus: राजस्थान में क्यों दौड़ती हैं नागालैंड और अरुणाचल नंबर की बसें ? वजह जानकर चौंक जाएंगे आप

Rajasthan private Sleeper Bus: राजस्थान की सड़कों पर दौड़ती कई निजी स्लीपर बसों के नंबर नागालैंड और अरुणाचल के नजर आते हैं। दरअसल, ये टैक्स बचाने का पूरा खेल है, जिसमें बस ऑपरेटर हजारों रुपए की बचत कर रहे हैं।

Private Sleeper Bus in Rajasthan
फाइल फोटो- पत्रिका

Jaisalmer Bus Accident: जैसलमेर में हुए भीषण हादसे के बाद राजस्थान की स्लीपर बसें इन दिनों सुर्खियों में हैं। ऐसे में यात्रियों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन क्या आपने देखा है कि राजस्थान की सड़कों पर दौड़ने वाली कई निजी स्लीपर बसों के नंबर नार्थईस्ट के होते हैं। सवाल यह है कि जब बसें चलती राजस्थान में हैं, तो इन पर पूर्वोत्तर राज्यों का नंबर क्यों लिखा होता है। इसके पीछे की वजह चौंकाने वाली है।

दरअसल जैसलमेर बस हादसे ने प्रदेश में प्राइवेट बसों के संचालन से जुड़ी गड़बड़ियों की परतें खोल दी हैं। हादसे के बाद सामने आया है कि पूरे राजस्थान में सैकड़ों बसें ऐसी हैं, जिनका पंजीयन बाहरी राज्यों से बिना किसी भौतिक सत्यापन के कराया गया है। इन बसों में फिटनेस और सुरक्षा मापदंडों की खुलेआम अनदेखी की जा रही है।

एक दिन में पंजीयन, फिटनेस, परमिट

कई प्राइवेट बस ऑपरेटर अपने वाहनों को अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड जैसे दूरस्थ राज्यों के आरटीओ से पास करवाते हैं। यहां बिना भौतिक जांच के चार से पांच घंटे में ही बस का पंजीयन, फिटनेस सर्टिफिकेट और परमिट जारी कर दिया जाता है। इससे राजस्थान परिवहन विभाग की निगरानी से भी ये बसें बाहर हो जाती हैं।

सबसे बड़ा टैक्स का खेल

दरअसल बस ऑपरेटर टैक्स बचाने के लिए नया तरीका अपना रहे हैं। राजस्थान में चलने वाली कई निजी स्लीपर बसों के नंबर नागालैंड या नॉर्थ ईस्ट के अन्य राज्यों के होते हैं। दरअसल, ऑपरेटर वहां से बस का चेसिस खरीदते हैं और रजिस्ट्रेशन भी वहीं करवाते हैं। इसके बाद बस को नेशनल परमिट के जरिए राजस्थान या आसपास के राज्यों में चला लेते हैं।

इस तरीके से उन्हें टैक्स में मोटी बचत हो जाती है। अगर कोई बस राजस्थान से टूरिस्ट परमिट लेती है तो एक बस पर करीब 40 हजार रुपए महीने टैक्स देना पड़ता है। इसके अलावा जिस राज्य में बस जाती है, वहां का टैक्स अलग से देना होता है। जबकि नागालैंड जैसे राज्यों से बस खरीदने पर टैक्स कई गुना तक कम पड़ता है। वहां बस का रजिस्ट्रेशन कराने पर केवल 3 से 4 हजार रुपए का टैक्स देना होता है।

बस ऑपरेटर AITP 2023 के तहत बसों को रजिस्टर करवा लेते हैं, जिससे उन्हें अलग-अलग राज्यों का टैक्स नहीं देना पड़ता। AITP के तहत एक तिमाही में करीब 90 हजार रुपए टैक्स देना होता है, लेकिन यह एकमुश्त टैक्स कई राज्यों का टैक्स बचा देता है। ऐसे में करीब एक लाख रुपए का खर्च 20-25 हजार में सिमट जाता है। इसी कारण राजस्थान के कई ट्रेवल ऑपरेटर अब दूसरे राज्यों से बसें खरीदकर यहीं चलाते हैं।

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सितंबर में जोधपुर आरटीओ में आई थी बस

विभागीय सूत्रों के अनुसार जैसलमेर हादसे वाली बस सितंबर में जोधपुर के आरटीओ कार्यालय में आई थी, लेकिन तत्कालीन आरटीओ जेपी बैरवा ने बस को निर्धारित मानकों पर खरा नहीं पाए जाने पर पंजीयन करने से मना कर दिया था, लेकिन चित्तौड़गढ़ आरटीओ ने इसे पास कर दिया था।

एक्सपर्ट की राय

राजस्थान में बसों के बाहरी पंजीकरण और फर्जी फिटनेस सर्टिफिकेट एक बड़ा खतरा है। आरटीओ सिस्टम को डिजिटल लिंक किया जाए, ताकि किसी वाहन का फिटनेस या पंजीकरण दूसरे राज्य से बिना भौतिक जांच के जारी न हो सके।

- राजेन्द्र दवे, पूर्व डीटीओ जोधपुर