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‘बसें नहीं, ‘टाइम बम’! ‘बारूद’ पर यात्रियों की जान, ‘लॉजिस्टिक्स हब’ बना लालच का ‘ओवरडोज’

पत्रिका टीम ने जयपुर से यूपी, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश सहित आठ राज्यों को जाने वाली बसों में सामान के ओवरलोडिंग की जांच की। इसमें चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई।

rajasthan patrika exclusive report
Rajasthan Patrika Exclusive Report

जयपुर: पिछले कुछ महीनों में हुए कई दर्दनाक हादसों में बसों के आग में जलने की खबरें सामने आई हैं। जैसलमेर में 27 जिंदगियां जलकर राख हो गईं। वहीं, आगरा एक्सप्रेसवे पर भी एक बस धू-धूकर जल उठी। इन हादसों में एक वजह समान थी। जाम, आग और बचने का कोई मौका नहीं।


इन हादसों ने एक और खतरनाक पहलू उजागर किया है, जो सड़कों पर दौड़ती बसों को ‘मौत का सामान’ बना रहा है, वो है ‘लॉजिस्टिक्स ओवरलोडिंग’।

सिंधी कैंप (कानपुर जाने वाली स्लीपर बस के ऊपर रखे सामानों के बॉक्स)

जहां नजर गई, वहीं मिला खतरा


जयपुर के सिंधी कैंप और नारायण सिंह सर्किल पर जाने वाली बसों का जायजा लिया, तो स्थिति बेहद खतरनाक थी। इन बसों की छतों पर बाइकें, बड़े पैकेट्स, फर्नीचर और अन्य सामान लदा हुआ था। यह सामान बस के ’सेंटर ऑफ ग्रेविटी’ को पूरी तरह से प्रभावित करता है, जिससे रफ्तार बढ़ने पर मोड़ लेते समय या ब्रेक लगाते वक्त पलटने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।


इसके अलावा, बसों के अंदर भी खतरनाक स्थिति थी। गलियारे पूरी तरह से सामान से भरे हुए थे। अगर कभी आग लगती है, तो यह गलियारे में रखा सामान आग को भड़काने का काम करेगा, जिससे यात्रियों को बचने का कोई मौका नहीं मिलेगा।

सिंधी कैंप (जैसलमेर जाने वाली बस के छत के ऊपर सीढ़ी लगाकर सामान लादते स्टॉफ)

गैस सिलेंडर और बाइक भी ले जाएंगे


पत्रिका संवाददाता ने पांच अलग-अलग लॉजिस्टिक्स बुकिंग एजेंट से ग्राहक बनकर बात की। सबने बेखौफ होकर खतरनाक और प्रतिबंधित सामान भी ले जाने पर हामी भर दी।


संवाददाता : लखनऊ और गोरखपुर, दस पैकेट की बुकिंग हो जाएगी, कैसे भेजेंगे?


एजेंट 1 (लखनऊ/गोरखपुर) : 50 किलो के एक बॉक्स का 400 लगेगा? 10 बॉक्स होगा तो कुछ डिस्काउंट कर दूंगा। गोरखपुर का 500 रुपए लगेगा। सामान बस के छत पर चला जाएगा, कोई दिक्कत नहीं होगी।


संवाददाता : घरेलू सामान है, उज्जैन भेजना है। 10 क्विंटल के आसपास होगा। खाली सिलेंडर भी है?


एजेंट 2 (उज्जैन/एमपी) : 10 क्विंटल सामान डिग्गी और छत मिलाकर एडजस्ट हो जाएगा। सब सेट है, आप बस सामान लाना, गैस सिलेंडर है तो संडे का दिन ठीक रहता। अधिकारी छुट्टी पर होते हैं, सब पहुंच जाएगा। एक नग का 250 रुपए लगेगा।

कुछ देर बाद वह बाइक की तरफ इशारा करते हुए पूछता है कि यह कैसे जाएगा? मैंने कहा चलाकर जाऊंगा लांग ड्राइव करके। एजेंट बोला, 2500 दे दीजिएगा, सेफ बस के छत के ऊपर रखकर पहुंचा दूंगा।


एजेंट 3 (पुणे) : सामान क्या है? गैस सिलेंडर? चला जाएगा, लेकिन चार्ज ज्यादा लगेगा।

बस के ऊपर रखे सामान और बाइक, संवाददाता ने बस में रखे पैकेट को टटोलकर देखा तो उसमें भारी मशीनरी के सामान मिले

आमजन और सरकार को चेताने वाली रिपोर्ट


पत्रिका टीम ने जयपुर से यूपी, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश सहित 8 राज्यों को जाने वाली बसों में सामान के ओवरलोडिंग की जांच की। इसमें चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई कि सवारी बसों को मालवाहक ट्रकों में तŽब्दील किया जा रहा था। बस की छतों पर बाइक, फर्नीचर, भारी गठ्ठर और यहां तक कि गैस सिलेंडर तक ढोना सामने आया।


एक ओर चौंकाने वाली जानकारी यह मिली कि बस ऑपरेटर चंद रुपए के लालच में यात्री बसों को लॉजिस्टिक्स कंपनियों के लिए मालवाहक के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। ये बसें, जो यात्रियों को मंजिल तक पहुंचाने के लिए बनाई गई हैं, ’टाइम बम’ बन चुकी हैं, जो कभी भी एक बड़े हादसे का कारण बन सकती हैं।

बस में बैठे यात्री

ओवरलोड बस…पर मुकदमा नहीं


जब ओवरलोडिंग से हादसा होता है, तो पुलिस रिपोर्ट में दुर्घटना की वजह ‘तेज रफ्तार’ या ‘लापरवाही से ड्राइविंग’ होती है, जबकि असली कारण ओवरलोडिंग का दबाव होता है। इससे आधिकारिक आंकड़ों में ओवरलोडिंग के प्रभाव को ठीक से नहीं दिखाया जाता। हालांकि, कई रिपोर्ट बताती हैं कि भारत में हर साल बस दुर्घटनाओं में लगभग 10,000 लोगों की मौत होती है।


ओवरलोड लालच…अंडरलोड सिस्टम


यह पूरा अवैध खेल सिस्टम की शह से चल रहा है। बस ऑपरेटर अवैध कमाई के लिए यात्रियों की जान की कीमत पर ओवरलोडिंग कर रहे हैं। विभाग का अमला इस पूरे मामले में नजरअंदाज कर रहा है। न तो चेकिंग प्वाइंट्स पर और न ही सड़कों पर किसी बस को रोका जा रहा है।


क्या कहता है परिवहन विभाग?


वहीं, परिवहन विभाग के अतिरिक्त आयुक्त ओपी बुनकर का कहना है कि बस की डिजाइनिंग यात्रियों के वजन के हिसाब से होती है, न कि माल ढोने के लिए। छत पर कैरियर प्रतिबंधित है। अतिरिक्त कार्गो वजन बस का संतुलन बिगाड़ सकता है। हम अभियान चलाकर कार्रवाई करते रहे हैं।


यात्रियों का दर्द : खटारा बसों में फंसी जिंदगियां


विशंभर ने बताया, वह ग्वालियर जा रहे थे, लेकिन बस के गलियारे में बोरियों और पार्सल का ढेर था। हमने पूरा किराया दिया, लेकिन सीट तक पहुंचना मुश्किल था। अगर हादसा हो जाए तो निकलना मुश्किल है।


गौतम ने बताया कि उन्हें स्लीपर बस में दो लोगों के लिए तीन सीटें दी गईं और सामान का अंबार लगा था। उन्होंने बताया, बस वाले ने हमें नई चमचमाती बस बताई थी, लेकिन अंदर की स्थिति कुछ और ही थी।