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जयपुर: JDA की इन वीरान कॉलोनियों में कोई नहीं बनाना चाह रहा घर, बिल्डर और डेवलपर्स हुए मालामाल

राजधानी जयपुर में जेडीए शहर की सीमाएं तो लगातार बढ़ा रहा है, लेकिन सुविधाओं पर ध्यान नहीं दे रहा। दूर-दूर तक नई कॉलोनियां बसाईं, जहां अब तक लोग नहीं पहुंचे। 15 साल पहले शुरू हुई हरित वाटिका कॉलोनी में आज तक मकान नहीं बन पाए। विकास के नाम पर बदहाली हावी है।

जयपुर

Arvind Rao

Oct 10, 2025

JDA Colony
JDA की इन कॉलोनियों में कोई नहीं बनाना चाह रहा घर (फोटो- पत्रिका)

जयपुर: जेडीए का दायरा बढ़ने से लोगों को कम और बिल्डर-डेवलपर्स लॉबी को ज्यादा फायदा होता नजर आ रहा है। पिछले दो दशक के विकास पर नजर डालें तो लोगों के लिए जेडीए ने जो कॉलोनियां लांच की, उनमें से ज्यादातर में विकास नहीं हो पाए हैं।


जेडीए की योजना का फायदा उठाकर बिल्डर्स और डेवलपर्स ने आसपास कॉलोनी और टाउनशिप विकसित की। आगरा रोड, सीकर रोड, कालवाड़ रोड से लेकर अन्य जगहों पर जेडीए ने कॉलोनियां सृजित की हैं, उनमें से ज्यादातर का बुरा हाल है।


माना जा रहा है कि दायरा बढ़ने के साथ ही जेडीए के पास खासा लैंड बैंक होगा। ऐसे में जेडीए कॉलोनियां सृजित करेगा। जेडीए की कॉलोनियों के नाम पर निजी डेवलपर्स और बिल्डर आ जाते हैं और अपने प्रोजेक्ट लांच कर करोड़ों कमा लेते हैं। जबकि, जेडीए में प्लॉट खरीदने वाले लोग मूलभूत सुविधाओं का इंतजार करते रह जाते हैं।


सुनने में लग रहा अच्छा


तीन हजार वर्ग किमी से छह हजार वर्ग किमी का दायरा सुनने में बड़ा अच्छा लगता है। लेकिन हकीकत यह है कि पुराने क्षेत्रों की हालत अब भी पतली है। जहां जेडीए ने पहले योजनाएं बसाई थीं, वहां आज भी बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं। लोग अब तक वहां बस नहीं पाए और जो बस गए वे सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं।


रिपोर्ट में भी किया जिक्र


भारतीय नगर नियोजक संस्थान, जयपुर की एक रिपोर्ट में बताया गया कि करीब 20 साल पहले जेडीए ने रोहिणी प्रथम, द्वितीय और तृतीय सहित अन्य योजनाएं दूरदराज के इलाकों में विकसित कर दीं। इन कॉलोनियों में सड़कें, बिजली और पानी की लाइनें भी बिछाई गईं, लेकिन जेडीए का पूरा पैसा बेकार चला गया। क्यों€कि शहर से दूर स्थित इन जगहों पर मकान नहीं बने।


इन योजनाओं और शहर के बीच के इलाके बेतरतीब निजी विकास के लिए खुले थे। क्षेत्र विस्तार के साथ यही कहानी दोहराए जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। आगे चलकर जब सरकारी जमीन की जरूरत होगी तो ये उपलब्ध नहीं होंगी।


नहीं बना पाए घर


सीमांकन और सुविधाओं के अभाव में जेडीए विकसित या स्वीकृत कॉलोनियों में प्लॉट खरीदने वाले कई लोग अब तक अपने घरों का निर्माण नहीं कर पाए हैं। जेडीए रिकॉर्ड के अनुसार, वर्ष 2013 के बाद से प्राधिकरण ने जिन कॉलोनियों को विकसित और सृजित किया है, उनमें 40,000 प्लॉट सृजित किए हैं। इनमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और निम्न आय वर्ग के लिए भी प्लॉट शामिल हैं।


उठा रहे फायदा


जेडीए की अधूरी योजनाओं का फायदा निजी डेवलपर्स उठा रहे हैं। जेडीए जहां जमीन आवंटित कर अपनी जिम्मेदारी खत्म कर देता है, वहीं निजी बिल्डर्स उन्हीं इलाकों में ऊंची दरों पर कॉलोनियां लांच कर देते हैं। जेडीए योजना से इलाके को नाम तो मिल जाता है, लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ नहीं मिल पाता। नतीजा यह कि खरीदार ऊंची कीमत देकर प्लॉट तो ले लेते हैं, पर बाद में सुविधाओं के अभाव में फंस जाते हैं।


…विस्तार का जाल


जेडीए विकास के नाम पर विस्तार कर रहा है। शहर का फैलाव तो बढ़ गया, लेकिन असली विकास पीछे छूट गया है। जो काम मौजूदा सीमाओं के भीतर पूरे होने चाहिए थे, लेकिन जेडीए चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए विस्तार देने में जुटा है।