World Rabies Day 2025 : क्या आपने कभी सोचा है कि एक छोटे से कुत्ते का काटना कितना खतरनाक हो सकता है? अक्सर लोग इसे हल्के में लेते हैं लेकिन यही लापरवाही जानलेवा बन सकती है। हम बात कर रहे हैं रेबीज की,एक ऐसी बीमारी जिसका नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन घबराइए नहीं सही जानकारी और समय पर इलाज से इसे आसानी से रोका जा सकता है।
रेबीज एक जानलेवा संक्रामक रोग है जो लायसावायरस (Lyssavirus) परिवार के एक वायरस से होता है। यह वायरस संक्रमित जानवरों की लार में मौजूद होता है और उनके काटने से सीधे इंसान के शरीर में प्रवेश कर जाता है। यह सिर्फ कुत्ते ही नहीं, बल्कि बिल्ली, बंदर, चमगादड़ और अन्य जंगली जानवरों से भी फैल सकता है। ये वायरस धीरे-धीरे रीढ़ की हड्डी से होते हुए मस्तिष्क तक पहुंचते हैं। इस प्रक्रिया में 3 से 12 सप्ताह या कभी-कभी सालों भी लग सकते हैं, जिसे ऊष्मायन अवधि (incubation period) कहते हैं। इस दौरान कोई लक्षण नहीं दिखते, लेकिन एक बार जब वायरस मस्तिष्क तक पहुंच जाता है, तो स्थिति तेजी से बिगड़ती है।
यह एक ऐसी बात है जिस पर लोग अक्सर ध्यान नहीं देते। यह जरूरी नहीं कि गहरा घाव ही हो, रेबीज का वायरस किसी छोटे से खरोंच या त्वचा पर मौजूद खुले घाव से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है। इतना ही नहीं, यह आंख, नाक या मुंह के श्लेष्म झिल्ली (mucous membranes) के संपर्क में आने से भी फैल सकता है।
रेबीज के लक्षण शुरुआती और गंभीर हो सकते हैं। सही समय पर इन्हें पहचानना बहुत जरूरी है।
अगर किसी पालतू या आवारा कुत्ते-बिल्ली ने काट लिया है तो तुरंत एंटी-रेबीज का टीका लगवाना जरूरी है। जानवर के काटने के 72 घंटे (3 दिन) के अंदर इंजेक्शन लगवाना सबसे फायदेमंद रहता है। अगर ज्यादा देर कर दी जाए तो वैक्सीन का असर कम हो जाता है।
सबसे पहले मरीज को रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन (यानी शरीर को तुरंत सुरक्षा देने वाली दवा) दी जाती है। इसके बाद करीब 4 हफ्तों में 5 इंजेक्शन का कोर्स पूरा करना पड़ता है, जिससे रेबीज से पूरी सुरक्षा मिलती है।
पहले रेबीज के लिए 14 से 16 दर्दनाक इंजेक्शन लगते थे, जिससे लोग कतराते थे। अब, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की नई गाइडलाइंस के अनुसार, केवल 5 वैक्सीन डोज ही पर्याप्त हैं, जो पहले से कहीं अधिक प्रभावी हैं। ये डोज 0, 3, 7, 14 और 28वें दिन दी जाती हैं। यह जानकारी बहुत से लोगों को नहीं है और वे आज भी पुरानी 14 इंजेक्शन वाली बात पर यकीन करते हैं, जिससे जागरूकता की कमी के कारण इलाज में देरी होती है।
Updated on:
25 Sept 2025 11:50 am
Published on:
25 Sept 2025 11:48 am