
अदरीस खान @ हनुमानगढ़. अब गीगलिया माने छोटे बच्चे मायड़ बोली के शब्दों की समझ के मामले में लुडगर मतलब नासमझ नहीं रहेंगे। हर जिले में वहां के विद्यार्थी अपनी मायड़ बोली से और गहराई से परिचित हो सकेंगे। क्योंकि इस दिशा में राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, उदयपुर ने कवायद शुरू कर रखी है। इसके तहत ही राजस्थानी भाषा के जानकारों ने हनुमानगढ़ जिले की प्रमुख बोली बागड़ी के शब्दों का चयन कर उनकी सूची बनाई है।
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) हनुमानगढ़ के सहयोग से मायड़ भाषा के 10 जानकारों ने इस कार्य को अंजाम दिया है। शब्दों की सूची राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद को भेजी जा चुकी है। अब परिषद स्तर पर उनका उपयोग कर पाठ्यक्रम में इस तरह शामिल किया जाना है कि प्रदेश के सभी जिलों के विद्यार्थी अपने ठेठ देशी शब्दकोश के ज्ञान में इजाफा कर सकें।
जानकारी के अनुसार भाषा के जानकारों ने जिले से कुल 1102 शब्दों का चयन कर उनकी सूची बनाकर परिषद को भिजवाई है। आसपास के कई जिलों में हजारों मायड़ बोली के शब्द समान होने के कारण, यह ध्यान रखा गया है कि दोहराव ना हो। सूची में बागड़ी शब्द के साथ उसका हिन्दी और अंग्रेजी में अर्थ बताया गया है ताकि शिक्षा विभाग और परिषद के हिन्दी और अंग्रेजी भाषी अफसर आसानी से समझ सकें।
जल्दी ही जिले के टाबर समझ सकेंगे कि परगै (पिछले साल), परारगै (पिछले से पिछले साल) और भाभड़ाभूत (उतावला होना) का क्या मतलब होता है। यह शब्द घरों में अधिकांश ने बुजुर्गों से सुने हैं। मगर अंग्रेजी शिक्षा के दौर में मां बोली के शब्द कहीं खोते जा रहे हैं। उदाहरण के लिए मेणियो-प्लास्टिक, कावळ-अनुचित, अटकळ-तरकीब, डांफर-शीतलहर, धकड़बोझ-तेज आग, अचपळो-चंचल, भचीड़-झटका आदि शब्द।
हिन्दी से एकदम भिन्न भाषा है राजस्थानी। इसका प्रमाण लघु शब्दकोश है जो हमने तैयार कर परिषद को भिजवाया है। बागड़ी भी राजस्थानी की एक प्रमुख बोली है और इसका शब्द भंडार बहुत विशाल है। - डॉ. सत्यनारायण सोनी, लेखक समूह के सदस्य।
Published on:
16 Sept 2025 09:39 am

