
अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे में लोगों ने आवारा मवेशी तहसील कार्यालय पहुंचा दिए। फोटो सोर्स पत्रिका
Unique News:आवारा मवेशियों ने लोगों का जीना हराम कर रखा है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे में आवारा पशुओं के आतंक से निजात दिलाने और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर पिछले 12 दिन से आंदोलन चल रहा है। बावजूद इसके लोगों की समस्या का समाधान नहीं निकल पा रहा है। लोगों का कहना है कि आवारा गाय-बैलों की वजह से उनकी फसलें चौपट हो चुकी हैं। आवारा मवेशियों को खदेड़ने में लोगों का दिन बीत रहा है। आवारा मवेशी बाजारों में भी समस्या का पर्याय बन चुके हैं। आंदोलन के बावजूद उनकी समस्या हल नहीं हो रही है। अफसर उनकी मांगों को अनसुना कर रहे हैं। इससे आक्रोशित सैकड़ों लोगों ने गुरुवार को स्याल्दे में आवारा पशुओं को साथ लेकर जुलूस निकाला। नारेबाजी करते हुए महिलाओं ने आवारा पशुओं की फौज को तहसील कार्यालय पहुंचा दिया। नजारा देख तहसील के अफसर और कर्मचारी दंग रह गए। तहसील पहुंची महिलाओं ने अफसरों को चेतावनी दी कि उनका अगला कदम इससे भी सख्त होगा।
स्याल्दे में बीते 12 दिनों से ग्रामीण सीएचसी की बदहाली, लावारिस जानवरों की समस्या के साथ ही हाईटेक शौचालय, गोसदन निर्माण की मांग को लेकर आंदोलित हैं। गुरुवार को एकाएक सैकड़ों की संख्या में महिलाएं आंदोलन स्थल पर पहुंचीं। जुलूस निकालते हुए महिलाओं ने कस्बे से लावारिस मवेशियों को एकत्र किए और तहसील की तरफ बढ़ चले। तहसील परिसर के खुले मैदान में लावारिस पशुओं को छोड़ दिया। इसके साथ ही धरना-प्रदर्शन करने लगे। इसके साथ ही ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि अगर समस्या का समाधान नहीं किया गया तो वह 26 नवंबर को लावारिस पशुओं को लाकर तहसील में बांध देंगे और यहीं घास और पानी की व्यवस्था करेंगे।
आवारा पशुओं के आतंक से न केवल किसान परेशान हैं बल्कि व्यापारी भी त्रस्त आ चुके हैं। उत्तराखंड जन कल्याण समिति के अध्यक्ष सुनील टम्टा के मुताबिक लावारिस जानवरों से स्थानीय व्यापारी भी परेशान हैं। नंदन सिंह मुक्चाड़ी, रमेश पपनोई, राजकुमार अग्रवाल, रमेश चक्रवर्ती का कहना है कि बाजार में लावारिस जानवरों का जमावड़ा लगा रहता है। ये दुकानों में घुसकर सब्जी खा जाते हैं। जाम की स्थिति पैदा होती है। कई बार आवारा मवेशियों की टक्कर से दोपहियां वाहन सवार भी घायल हो चुके हैं। आसरा नहीं मिलने से लावारिस पशुओं की भी दुर्दशा हो रही है। कुछ पशु आपसी संघर्ष तो कुछ बीमारी के कारण या हादसों में जान गंवा रहे हैं। गोवंशीय पशु खुले आसमान के नीचे बिना चारे के रहने को मजबूर हैं।
Published on:
21 Nov 2025 06:27 am
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