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राजस्थान में है एशिया का सबसे बड़ा कच्चा बांध, अचानक इस बांध के पानी का बदल रहा है रंग, जानिए कौन है जिम्मेदार?

Rajasthan : राजस्थान में है एशिया का सबसे बड़ा कच्चा बांध। इस कच्चा बांध मोरेल का चमकता पानी अचानक बदलने लगा है। इस बड़े और खतरनाक बदलाव के लिए कौन है जिम्मेदार, जानिए।

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Asia largest earthen dam is in Rajasthan morel dam Dausa water color changing find out who is responsible

लालसोट. मोरेल बांध में रासायनिक प्रदूषण से हरा हुआ पानी। फोटो पत्रिका

Rajasthan : लालसोट (दौसा). प्रकृति की गोद में बसे मोरेल बांध का पानी अब जहरीले रंगों और दुर्गंध से भर गया है। कभी प्रवासी पक्षियों का स्वर्ग माना जाने वाला यह एशिया का सबसे बड़ा कच्चा बांध प्रदूषण की गिरफ्त में है। चमकते जल की जगह हरे काले रंग और सड़ांध ने ले ली है, जिससे न सिर्फ जलीय जीवन बल्कि मानव स्वास्थ्य भी खतरे में है।

जयपुर के सांगानेर में चल रहे रंगाई-छपाई कारखोनों से निकलने वाला रासायनिकयुक्त अपशिष्ट जल ढूंढ-मोरेल नदी के रास्ते बांध तक पहुंच रहा है, जिससे जल का प्राकृतिक स्वरूप नष्ट हो गया है। धूप में कांच की तरह चमकने वाला पानी अब हरे-काले रंग के साथ तीव्र दुर्गंध छोड़ रहा है। स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों का कहना है कि बीते कई वर्षों से इस समस्या को लेकर आवाज उठाई जाती रही है, लेकिन अब तक प्रभावी कार्रवाई नहीं होने से यह बांध भविष्य के लिए बड़ा पर्यावरणीय संकट बन सकता है।

मोरेल बांध प्रदेश के प्रमुख प्रवासी पक्षी स्थलों में गिना जाता है। यहां अक्टूबर से फरवरी तक ग्रेट व्हाइट पेलिकॉन, फ्लेमिंगो, कॉमन टील, पेंटेड स्टॉर्क, इंडियन स्कीमर, रिवर टर्न सहित कई दुर्लभ पक्षी हर वर्ष शीतकालीन प्रवास करते रहे हैं। हर साल औसतन 20 हजार पक्षी यहां आते थे, लेकिन इस वर्ष बांध में प्रदूषण और दुर्गंध के चलते अब तक करीब 10 प्रतिशत भी पक्षी नहीं पहुंचे हैं।

रसायनों से पानी हुआ हरा-काला

बांध के पानी का रंग पिछले कुछ महीनों में गहरा हरा और काला हो गया है। जलकुंभी और शैवाल तेजी से फैल गए हैं, मछलियां मरने लगी हैं और पानी से तेज सड़ांध आ रही है। जानकारों के अनुसार रंगाई में उपयोग किए जाने वाले रसायन, अमोनिया, आर्सेनिक, सीसा और भारी धातुएं पानी में घुल रही हैं, जो जलीय जीवों के साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा है। ग्रामीणों और पक्षी संरक्षण कार्यकर्ताओं ने सरकार से मांग की है कि सांगानेर की औद्योगिक इकाइयों को मोरेल नदी में अपशिष्ट डालने से रोका जाए। अपशिष्ट शोधन संयंत्र की अनिवार्यता और नियमों की अवहेलना करने वाली इकाइयों पर सख्त कार्रवाई की जाए।

बांध का निर्माण : वर्ष 1952
10 किमी बांध में पानी का फैलाव।
83 गांव दौसा और सवाईमाधोपुर जिलों में हैं, जहां सिंचाई होती है।
90 फीसदी तक घट गई बांध में प्रदूषण की वजह से पक्षियों की संख्या।

पर्यटन का प्रमुख केन्द्र रहा है मोरेल बांध

मोरेल बांध पर वन विभाग के सहयोग से पिछले छह वर्षों से प्रवासी पक्षियों की गणना करवाई जा रही है। पक्षी हर वर्ष यहां शीतकालीन प्रवास के लिए पहुंचते रहे हैं, लेकिन इस बार बांध में मौजूद दूषित और सड़ांधयुक्त पानी के कारण जलीय पक्षियों की संख्या में करीब 90 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। कई प्रजातियों के पक्षी यहां दिखाई ही नहीं दे रहे।

मोरेल बांध दौसा जिले की महत्वपूर्ण प्राकृतिक धरोहर और पक्षी पर्यटन का प्रमुख केंद्र रहा है। समय रहते समाधान नहीं खोजा गया, तो यह बांध प्रवासी पक्षियों के मानचित्र से हमेशा के लिए गायब हो सकता है। प्रोफेसर सुभाष पहाड़िया, पक्षी विशेषज्ञ

प्रदूषित जल को रोकने के लिए उठाए जा रहे विशेष कदम

मोरेल बांध में प्रदूषित जल को रोकने के लिए विभाग और सरकार के स्तर पर विशेष कदम उठाए जा रहे हैं। जयपुर क्षेत्र में कई स्थानों पर शोधन संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं और इस दिशा में मंत्री स्तर पर भी रुचि दिखाई गई है।
चेतराम मीणा, सहायक अभियंता, जल संसाधन विभाग