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बुंदेलखंड की संस्कृति प्रकृति से ही प्रस्फुटित: पद्मश्री डॉ. अवध किशोर जड़िया

बुंदेलखंड के लोग प्रकृति की सुचिता को संस्कृति मानते हैं।नीम में भवानी, बरगद में शंकर हमारे लिए प्रकृति ही देवत्व का स्वरूप है।

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padm shri avadhkishore jadia

पद्मश्री डॉ. अवध किशोर जड़िया

महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में आयोजित पर्यावरण-संरक्षण आधारित संगोष्ठी में वक्ताओं ने प्रकृति, लोकसंस्कृति और मानवीय जिम्मेदारी के संबंधों पर विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में मुख्य रूप से यह संदेश उभरा कि प्रकृति केवल संसाधन नहीं, बल्कि संस्कृति और सभ्यता की मूल आत्मा है, जिसे बचाने की जिम्मेदारी मनुष्य पर ही है।

पेड़ मत काटो बाबा… लोकगीत से शुरू हुई चर्चा

प्रस्तावना देते हुए डॉ. विद्या बिंदु ने पिता-पुत्री के संवाद पर आधारित लोकगीत निमिया के पेड़ न काटो रे बाबा का उल्लेख करते हुए बताया कि लोकमानस में पर्यावरण के प्रति सहज संवेदना सदियों से विद्यमान है। उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति कृतज्ञता की संस्कृति है पेड़, जल, अन्न, गोधन… सभी की पूजा इसी कारण की जाती है। उन्होंने उपभोक्तावादी जीवनशैली पर टिप्पणी करते हुए कहा कि गाय का आधा दूध बछड़े के लिए छोड़ने जैसी परंपराएं आज तेजी से भुलाई जा रही हैं।

मानव की उत्पत्ति जंगलों में हुई

दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. जेपी शाक्य ने अपने उद्बोधन की शुरुआत उपनिषद के एक आख्यान से की। उन्होंने कहा कि मानव जीवन, शिक्षा और संस्कृति का प्रारंभ वन और प्रकृति की गोद में हुआ,आरण्यक जंगलों में लिखे गए, गुरु–शिष्य परंपरा वन में विकसित हुई और मानव पंचतत्वों से निर्मित है, जिनके संरक्षण का उत्तरदायित्व भी उसी पर है। उन्होंने टैगोर का उद्धरण देते हुए कहा ईश्वर प्रकृति के माध्यम से स्वयं को व्यक्त करता है।डॉ. शाक्य ने बताया कि पांचवीं–छठीं सदी के बौद्ध, जैन और चार्वाक विचार भी प्रकृति को सर्वोपरि मानते थे। उन्होंने लोक परंपराओं का उल्लेख करते हुए कहा कि बेटी बिदाई के समय नीम का पेड़ और बेटा आम का पेड़ लगाता है यह परंपरा प्रकृति के प्रति हमारी श्रद्धा को दर्शाती है।

प्रदूषण और लालच प्रकृति का संकट

विशिष्ट अतिथि डॉ. आरएस सिसोदिया ने कहा कि आज प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है और मनुष्य अब प्रकृति और पर्यावरण में कोई भेद नहीं रखता। हमने व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते प्रकृति का विनाश शुरू कर दिया है। विशिष्ट अतिथि डॉ. ओपी अरजरिया ने स्वच्छता को पर्यावरण संरक्षण का मूल आधार बताया और स्वच्छ परिवेश के प्रति जागरूकता पर विशेष बल दिया।पर्यावरण आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है

कुलसचिव डॉ. यशवंत सिंह पटेल ने कहा कि विश्वविद्यालय में पीएम–उषा के अंतर्गत सॉफ्ट कंपोनेंट में ऐसी संगोष्ठियां आयोजित की जा रही हैं। उन्होंने गांधीजी के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा प्रकृति मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है, लेकिन उसके लालच की नहीं।

बुंदेलखंड प्रकृति का संरक्षक

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पद्मश्री डॉ. अवध किशोर जड़िया ने बुंदेली भाषा, संस्कृति और पर्यावरण को एक-दूसरे से अविभाज्य बताया। उन्होंने कहा बुंदेलखंड के लोग प्रकृति की सुचिता को संस्कृति मानते हैं।नीम में भवानी, बरगद में शंकर हमारे लिए प्रकृति ही देवत्व का स्वरूप है।डॉ. जड़िया ने कहा कि बुंदेलखंड की पर्यावरणीय चेतना सनातन परंपरा का जीवित उदाहरण है।