केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने घोषणा की है कि अब डीजल में एथेनॉल की बजाय आइसोब्यूटेनॉल मिलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि डीजल में एथेनॉल मिश्रण का प्रयोग सफल नहीं रहा, लेकिन आइसोब्यूटेनॉल बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। डीजल में एथेनॉल मिलाने से तकनीकी और इंजन संबंधी समस्याएं आईं हैं। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का बड़ा कूड ऑयल आयातक है। बायोफ्यूल मिश्रण से विदेशी मुद्रा की बचत होगी। यह ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में अहम कदम है।
गडकरी की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने को लेकर बहस जारी है। आलोचकों का कहना है कि यह मिश्रण वाहनों की माइलेज पर नकारात्मक असर डालता है और इंजनों को भी नुकसान पहुंचाता है।
गडकरी ने कहा, ई20 ईंधन जिसमें 80% पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिलाया जाता है, इसकी सोशल मीडिया पर आलोचना 'पेट्रोल लॉबी' की ओर से प्रायोजित 'दुष्प्रचार' है। यह लॉबी 'अमीर और मजबूत' है। उन्होंने कहा, ई20 ईंधन के खिलाफ चलाया गया अभियान राजनीति से प्रेरित और एक पेड कैंपेन था, जो उनके खिलाफ चलाया जा रहा था। गडकरी ने कहा, यह ईंधन सुरक्षित है और नियामकों और ऑटोमोबाइल निर्माताओं, दोनों की ओर से समर्थित है। इससे इंजन में खराबी आने का आरोप तथ्यहीन और अवैज्ञानिक है। इससे देश के करोड़ों डॉलर बच रहे हैं।
कुछ एक्सपर्ट्स ने कहा, अगर गाड़ी में ई20 पेट्रोल को लेकर बदलाव नहीं किए गए तो वाहन में कई समस्याएं आ सकती हैं। बिना ई20 के प्रावधान वाली गाड़ियों में (2023 से पहले की ज्यादातर गाड़ियों में) 20% ब्लेंडेड पेट्रोल के इस्तेमाल से इंजन में जंग लग सकती है। रबर- प्लास्टिक पार्ट खराब हो सकते हैं। गाड़ी का माइलेज भी घट सकता है। कुछ मामलों में इंजन फेल होने का रिस्क भी बताया गया है।
भारत में 90,000 ईंधन स्टेशनों पर 20% एथेनॉल मिश्रित ईंधन (ई20) की उपलब्धता के बीच ऑटोमोबाइल कंपनी महिंद्रा ने गुरुवार को कहा कि यह ईंधन इस्तेमाल के लिए सुरक्षित है। हालांकि, इससे गाड़ियों की माइलेज और एक्सेलेरेशन में कमी आ सकती है।
आइसोब्यूटेनॉल की ऊर्जा क्षमता एथेनॉल से अधिक है। यह पानी में कम घुलता है, इसलिए स्टोरेज आसान है। डीजल में इसे मिलाने पर इंजन की परफॉर्मेंस बेहतर रहती हैं। प्रदूषण भी कम होता है, जिससे ग्रीन एनर्जी मिशन को बढ़ावा मिलेगा।
आइसोब्यूटेनॉल का उत्पादन भी एथेनॉल की तरह गन्ना और मक्का जैसी फसलों से होता है। किसानों की उपज का इस्तेमाल बढ़ेगा। एमएसपी पर खरीद व नई खपत का रास्ता खुलेगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में बायो-फ्यूल आधारित उद्योगों का विकास होगा।
अमेरिका और ब्राजील पहले से ही बायोफ्यूल आधारित मिश्रण में अग्रणी हैं। यूरोप में भी आइसोब्यूटेनॉल को डीजल और जेट फ्यूल के विकल्प के रूप में अपनाया जा रहा है।
आइसोब्यूटेनॉल का बड़े पैमाने पर उत्पादन और सप्लाई चेन तैयार करना बड़ी चुनौती है। रिफाइनरी को नई तकनीक अपनानी होगी। शुरुआत में लागत पारंपरिक डीजल से ज्यादा हो सकती है।
Published on:
12 Sept 2025 12:37 pm