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पानी से भी सस्ता हो जाएगा क्रूड ऑयल! लेकिन पेट्रोल-डीजल पर राहत मिलेगी क्या? देखिए दिमाग हिला देने वाली रिपोर्ट

जेपी मॉर्गन का अनुमान है कि सप्लाई बढ़ने की वजह से 2027 तक ब्रेंट क्रूड $30 प्रति बैरल तक लुढ़क जाएगा. यह गिरावट भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए एक बड़ी राहत होगी.

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क्रूड की कीमतें 30 डॉलर तक फिसलेंगी. (PC: Canva)

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव कुछ समय के बाद पानी की एक बोतल से भी कम हो जाएगा, और इस बात का ठोस आधार है. इन्वेस्टमेंट बैंक जेपी मॉर्गन ने अनुमान लगाया है कि ब्रेंट क्रूड की कीमतें वित्तीय वर्ष 2027 के अंत तक 30 डॉलर प्रति बैरल तक फिसल सकती हैं. इसका मुख्य कारण है एक गहराता हुआ ग्लोबल सप्लाई ग्लट, यानी डिमांड कम और सप्लाई ज्यादा होने का संकट. जेपी मॉर्गन के ताजा अनुमानों से पता चलता है कि अगले तीन वर्षों में तेल की खपत में लगातार बढ़ोतरी होने के बावजूद, सप्लाई में होने वाली बढ़ोतरी (खासतौर पर नॉन-ओपेक+ उत्पादकों से) बाज़ार पर हावी हो जाएगी और कीमतों पर भारी दबाव डालेगी. ऐसे में यह भारतीय बाज़ारों के लिए ये एक बड़ी राहत होगी, क्योंकि भारत तेल आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है.

पानी के भाव पर मिलेगा क्रूड!


अब जेपी मॉर्गन के अनुमानों पर जाएं और ये मानकर चलें कि क्रूड के भाव 30 डॉलर प्रति बैरल तक फिसल जाएंगे. अगर ये मान लिया जाए कि 3 साल बाद डॉलर-रुपये का एक्सचेंज रेट 95 होगा (जो कि अभी 89 है) तो, 30 डॉलर की रुपये में वैल्यू हुई 2,850 रुपये. अब 1 बैरल में होते हैं 158.987 लीटर या 159 लीटर. तो एक लीटर क्रूड का भाव हुआ 17.92 रुपये या करीब 18 रुपये. पानी की एक बोतल की कीमत होती है 20 रुपये. यानी एक लीटर क्रूड का भाव एक लीटर पानी के भाव से भी कम हो जाएगा.

भारत को होगा फायदा!


ये सुनकर तो आपको अच्छा लगा होगा, आप ये भी सोच रहे होंगे कि पेट्रोल और डीजल भी पानी के भाव पर मिलने लगेगा? इसका अभी हां या न में कोई जवाब नहीं हो सकता है, लेकिन परिस्थितियां इसके अनुकूल बन सकती हैं. देखिए- भारत अपनी तेल की जरूरतों का लगभग करीब 85 इंपोर्ट करता है. अगर कच्चे तेल की कीमतें गिरेंगी तो जाहिर है देश का इंपोर्ट बिल कम होगा. जिससे व्यापार घाटा कम होगा. लेकिन इससे क्या आम लोगों के लिए पेट्रोल डीजल के दाम कम हो जाएंगे, ये कहना अभी जल्दबाजी होगी. क्योंकि ये बहुत सारे फैक्टर्स पर निर्भर करता है. जैसे- तेल कंपनियां पहले अपना मुनाफा देखेंगी, सरकार इसका इस्तेमाल अपने घाटों को कम करने के लिए करेगी.

अभी भारत जो ब्रेंट क्रूड इंपोर्ट करता है, उसकी लागत 5,600 रुपये प्रति बैरल पड़ती है. तीन साल बाद 2027 में अगर रुपया डॉलर के मुकाबले 95 के स्तर पर होगा, तो भाव होगा 2,850 डॉलर प्रति बैरल यानी 2,750 रुपये प्रति बैरल की सीधी सीधी बचत या यूं कहें कि लागत करीब आधी हो जाएगी. तब ऐसे में पेट्रोल और डीजल के दाम घटने की गुंजाइश भी बन सकती है.

30 डॉलर क्यों हो जाएगा क्रूड


अब समझना ये है कि जेपी मॉर्गन को क्यों लगता है कि 2027 तक क्रूड का भाव 30 डॉलर तक गिर जाएगा, आखिर वो तर्क क्या हैं, इसको समझना बेहद जरूरी है.
जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट ये कहती है कि आने वाले तीन सालों में तेल की मांग तो बढ़ेगी, लेकिन तेल का उत्पादन उससे भी ज्यादा तेजी से बढ़ेगा.

  • साल 2025 में डिमांड ग्रोथ $0.9 मिलियन बैरल प्रति दिन (mbd) रहेगी, जिससे कुल खपत $105.5 mbd तक पहुंच जाएगी.
  • साल 2026 कच्चे तेल की मांग आगे भी बढ़ती रहेगी, 2027 में थोड़ा और तेजी से बढ़कर ये $1.2 mbd तक पहुंच जाएगी.
  • लेकिन मांग में ये बढ़ोतरी सप्लाई से मुकाबला नहीं कर पाएगी, उत्पादन मांग बढ़ने की रफ्तार से करीब तीन गुना तेज़ी से बढ़ेगा
  • 2027 में भले ही उत्पादन की रफ्तार थोड़ी कम हो जाएगी, फिर भी यह बाजार की क्षमता से काफी ज़्यादा रहेगा.

नॉन-ओपेक+ देशों का बड़ा रोल


अब सवाल ये उठता है कि इस असंतुलन की वजह क्या है, आखिर क्यों मार्केट में जरूरत से ज्यादा क्रूड सप्लाई होगी. इसका सीधा जवाब ये है कि नॉन-ओपेक+ देशों से तेल उत्पादन तेजी से बढ़ेगा. जेपी मॉर्गन का कहना है कि 2027 तक क्रूड सप्लाई में जितनी भी बढ़ोतरी होगी, उसमें से आधी बढ़ोतरी इन्हीं नॉन-ओपेक+ देशों से आएगी. नॉन-ओपेक+ देश वो होते हैं जो OPEC (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) के सदस्य नहीं हैं, और न ही OPEC+ गठबंधन (OPEC और रूस के नेतृत्व में अन्य सहयोगी) का हिस्सा हैं. ये वे देश हैं जो स्वतंत्र रूप से तेल का उत्पादन करते हैं और कीमतों को नियंत्रित करने के लिए किसी बड़े समूह का हिस्सा नहीं होते हैं.

ये नॉन-ओपेक+ अपतटीय विकास (Offshore Developments) के जरिए यानी समुद्र के अंदर गहरे कुओं से तेल निकालकर उत्पादन बढ़ाएंगे, साथ ही ग्लोबल शेल के जरिए भी क्रूड का उत्पादन करना जारी रखेंगे. पहले अपतटीय तेल उत्पादन को काफी महंगा और अस्थिर माना जाता था, लेकिन अब ये काफी सस्ता और भरोसेमंद हो चुका है. इसलिए जेपी मॉर्गन के अनुमान के मुताबिक

  • 2025: उत्पादन में 0.5 mbd अतिरिक्त क्रूड जोड़ेगा
  • 2026: उत्पादन में $0.9 mbd और जोड़ेगा
  • 2027: उत्पादन में $0.4mbd और जोड़ेगा

जेपी मॉर्गन का कहना है कि 2029 तक के लगभग सभी FPSO (Floating Production Storage and Offloading) प्रोजेक्ट्स को पहले ही मंज़ूरी मिल चुकी है. इसका मतलब है कि आने वाले सालों में नया तेल आना लगभग तय है.

शेल ऑयल का खेल भी समझिए


इस क्रूड उत्पादन बढ़ने की इस पूरी कहानी में शेल ऑयल का किरदार काफी बड़ा है. शेल ऑयल चट्टानों के बीछ फंसे हुए शेल होते हैं, उनसे तेल निकाला जाता है. इसके लिए काफी एडवांस्ड टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है. शेल अब भी ग्लोबल सप्लाई का सबसे फ्लेक्सिबल जरिया है, यानी जब भी तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो शेल उत्पादन को तुरंत बढ़ाकर कीमतों को काबू किया जा सकता है, या जब कीमतें कीमतें गिरती हैं तो शेल उत्पादन को घटाया भी जा सकता है.

शेल ऑयल में अमेरिका दबदबा रहा है, लेकिन बीते कुछ समय में अमेरिकी शेल ऑयल की ग्रोथ सुस्त पड़ी है. अर्जेंटीना का वाका मुएर्ता एक बड़े और सस्ते विकल्प के रूप में उभरा है. यहां से तेल निर्यात करने के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर भी बेहतर हो रहा है. साल 2025 में ग्लोबल शेल सप्लाई 0.8 mbd बढ़ी है, यह मानते हुए कि तेल की कीमतें 50-60 डॉलर प्रति बैरल के बीच बनी रहती हैं तो शेल उत्पादन अगले सालों में भी बढ़ेगा - 2026 में ये 0.4 mbd और 2027 में 0.5 mbd बढ़ने का अनुमान है.

कुल मिलाकर मोटे तौर पर ये समझ लें कि शेल तेल, खासकर अमेरिका और अर्जेंटीना से, इतना ज़्यादा और कुशलता से उत्पादित हो रहा है कि यह वैश्विक तेल की सप्लाई को और बढ़ाएगा, जिससे कीमतों पर दबाव बना रहेगा.

तेल भंडारण तेजी से बढ़ा


सप्लाई बढ़ने की वजह से तेल का भंडारण काफी हो चुका है. इस साल अब तक दुनिया भर में $1.5 मिलियन बैरल प्रतिदिन (mbd) ज़्यादा तेल जमा हो चुका है. इस बढ़े हुए स्टॉक का लगभग $1 mbd तेल दो जगहों पर है. पहला Oil-on-Water यानी टैंकरों में भरा हुआ तेल जो अभी अपनी मंज़िल पर नहीं पहुंचा है. दूसरा है चीनी भंडार यानी चीन के पास जो तेल का भंडार इकट्ठा है. जेपी मॉर्गन का मानना है कि स्टॉक में जमा यह सारा तेल अतिरिक्त आपूर्ति की तरह है जो 2026 में बाज़ार में आएगा.

ऐसे असंतुलन का मतलब है कि ब्रेंट 2026 में 60 डॉलर से नीचे गिर सकता है और अंतिम तिमाही तक 50 डॉलर के निचले स्तर तक पहुंच सकता है, जिससे साल के अंत में ये 40 के स्तर पर होगा. 2027 तक, औसत कीमतें गिरकर 42 डॉलर हो सकती हैं, और वर्ष के अंत तक 30 के स्तर तक फिसल सकती हैं. हालांकि, पूरी गिरावट शायद न हो.