
CG High Court: बेटी के अधिकार पर हाईकोर्ट सख्त, गुजारा भत्ता व विवाह व्यय देने का निर्देश, जानें पूरा मामला...(photo-patrika)
CG High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बेटी के विवाह खर्च और भरण-पोषण की कानूनी व नैतिक जिम्मेदारी पिता पर है। पिता अपनी अविवाहित बेटी के भरण-पोषण और विवाह खर्च उठाने के लिए बाध्य है, भले ही बेटी बालिग क्यों न हो।
मामला एक 25 वर्षीय अविवाहित बेटी से संबंधित था, जिसने हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 और 3(बी) के तहत आवेदन दायर कर कहा कि वह स्वयं को संभालने और खर्च चलाने में असमर्थ है, जबकि उसका पिता सरकारी शिक्षक है और 44642 रुपए मासिक वेतन प्राप्त करता है।
बेटी ने मासिक भरण-पोषण और 15 लाख रुपए विवाह खर्च की मांग की। फैमिली कोर्ट, सुरजपुर ने पिता को 2,500 रुपए प्रति माह भरण-पोषण और पांच लाख रुपए विवाह व्यय देने का आदेश पारित किया।
पिता ने फैमिली कोर्ट के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई में जस्टिस संजय के. अग्रवाल, जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की खंडपीठ ने स्पष्ट पाया कि पिता-बेटी का संबंध निर्विवाद है। बेटी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है और विवाह जैसे महत्वपूर्ण खर्च के लिए उसे पिता की सहायता चाहिए।
कोर्ट ने धारा 3(बी) (द्बद्ब) का हवाला देते हुए कहा कि अविवाहित बेटी का विवाह खर्च भी मेंटनेंस की परिभाषा में आता है। जबकि धारा 20(3) पिता पर यह दायित्व अनिवार्य करती है कि यदि अविवाहित बेटी अपनी आय या संपत्ति से स्वयं का भरण-पोषण नहीं कर सकती, तो पिता उसका खर्च वहन करेगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि अविवाहित, असहाय बेटी को पिता से भरण-पोषण पाने का अधिकार पूर्ण और लागू करने योग्य है, चाहे वह बालिग ही क्यों न हो। बेटी, भले ही 25 वर्ष की है, लेकिन अधिनियम के तहत वह अपने पिता से विवाह खर्च और भरण-पोषण पाने की हकदार है।
अंतत: कोर्ट ने पिता की अपील खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और निर्देश दिया कि पिता नियमित मासिक भरण-पोषण देता रहे। साथ ही विवाह खर्च की राशि पांच लाख रुपए तीन महीने के भीतर जमा करे।
Updated on:
30 Nov 2025 09:11 am
Published on:
30 Nov 2025 09:10 am
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