
MP News: भारतीय राजनीति में घटनाएं अक्सर योजनाबद्ध होती हैं, लेकिन कुछ किस्से ऐसे भी आते हैं जो ऐतिहासिक संयोग बनकर रह जाते हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनना भी एक ऐसा ही संयोग था। ये वाकया केवल सत्ता परिवर्तन की कहानी मात्र नहीं था, बल्कि उस दौर में कांग्रेस की राजनीति, केंद्र-राज्य समीकरणों और सत्ता की संवेदनशीलता का साफ आईना था।
5 नवंबर 1930 को सीधी जिले के चुरहट गांव में जन्में अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश की राजनीति के सबसे प्रभावशाली और करिश्माई नेताओँ में गिने जाते थे। वे कांग्रेस का कद्दावर चेहरा थे, जिन्होंने इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक के दौर में अपनी अलहदा और मजबूत पहचान बनाई थी।
1980 में वे पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और पूरे पांच साल तक पद पर बने रहे। उनके कार्यकार में शिक्षा, सिंचाई और ग्रामीण विकास के कई फैसले लिए गए जो चर्चा में रहे। 1985 में जब विधानसभा चुनाव हुए, कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत हासिल किया। जीत इतनी बड़ी थी कि अर्जुन सिंह को दोबारा मुख्यमंत्री बनना भी तय माना जा रहा था।
11 मार्च 1985 का दिन था। भोपाल राजभवन में अर्जुन सिंह ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह देखते बन रहा था। उनके समर्थक नारे लगा रहे थे, 'अर्जुन सिंह फिर लौटे हैं।' लेकिन तब तक कोई नहीं जानता था कि मुख्यमंत्री पद पर उनका ये पहला और आखिरी दिन होगा। शपथ लेने के बाद, वे तुरंत ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए। राजीव गांधी से मंत्रिमंडल की सूची पर चर्चा करने वे दिल्ली पहुंचे थे। यही यात्रा उनके राजनीतिक करियर का एक बड़ा और महत्वपूर्ण निर्णायक मोड़ बन गई।

अर्जुन सिंह जब दिल्ली पहुंचे तो उन्हें वहां वैसा माहौल नहीं मिला जैसा उन्हें लग रहा था। वे उम्मीद कर रहे थे कि अब वे मंत्रियों की सूची को अंतिम रूप देंगे, लेकिन प्रधानमंत्री ने उन्हें बताया कि पार्टी चाहती है कि वे पंजाब के राज्यपाल बनें।
प्रधानमंत्री की बात पर अर्जुन सिंह कुछ देर के लिए मौन रह गए, कुछ कह ही नहीं सके। दरअसल पंजाब उस समय आतंकवाद की भीषण लहर से जूझ रहा था, ऐसे में यह पद किसी राजनीतिक पदोन्नति से ज्यादा एक बेहद संवेदनशील जिम्मेदारी थी। लेकिन असल में यह फैसला मध्यप्रदेश की राजनीति के अंदरूनी समीकरणों और केंद्र की राजनीति का परिणाम था।
बिना किसी विरोध के अर्जुन सिंह ने प्रधानमंत्री के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। अगले ही दिन, 12 मार्च 1985 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस तरह अर्जुन सिंह ने सबसे कम समय 24 घंटे के मुख्यमंत्री बनकर ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया। तब उनके स्थान पर वित्त मंत्री मोतीलाल वोरा को सीएम बनाया गया। अर्जुन सिंह ने राज्यपाल का पद संभाला और पंजाब के लिए रवाना हो गए।
--राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अर्जुन सिंह की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। स्वतंत्र निर्णय शैली कांग्रेस हाईकमान को असहज कर रही थी। वहीं उनके खिलाफ चुरहट लॉटरी कांड और केरवा डेम की आलीशान कोठी का निर्माण जैसे विवाद भी पार्टी के लिए सिर दर्द बन चुके थे।

--वहीं राजीव गांधी के लिए उस समय पंजाब का संकट सबसे बड़ा राजनीतिक दबाव था। उन्हें वहां एक ऐसे शख्स की जरूरत थी जो मजबूत प्रशासनिक अनुभव रखता हो, जनता में उसकी साख हो। और इन सभी जरूरतों को देखते हुए अर्जुन सिंह को पंजाब के राज्यपाल पद की जिम्मेदारी सौंपी गई।
यह घटनाक्रम भारतीय राजनीति में अप्रत्याशित मोड़ था, जो केंद्रीय राजनीति की उस शैली को दर्शाता है, जिसमें निर्णय हमेशा दिल्ली से होते हैं।
अर्जुन सिंह ने न तो सार्वजनिक रूप से इसका विरोध किया और न ही कोई बयान दिया। उनका यह मौन उनकी राजनीतिक परिपक्वता का संकेत था। वे समझ चुके थे कि सत्ता में बने रहना राजनीति का अंतिम लक्ष्य नहीं, बल्कि अपनी साख और सम्मान को बचाना उससे भी ज्यादा जरूरी है।
राज्यपाल के पद पर कुछ समय बिताने के बाद अर्जुन सिंह एक बार फिर मध्य प्रदेशके मुख्यमंत्री बने। यह उनका तीसरा कार्यकाल था। उन्होंने साबित किया कि राजनीतिक जीवन में अस्थायी पराजय ही अंतिम सत्य नहीं होती। उनका राजनीतिक सफर यह भी दिखाता है कि राजनीति में गिरावट अस्थायी होती है, लेकिन चरित्र स्थायित्व लिए रहता है।

अर्जुन सिंह एक ऐसे राजनेता थे जिनके व्यक्तित्व में गंभीरता, गरिमा और सधी हुई खामोशी थी। उन्होंने सत्ता को कभी भी निजी संपत्ति नहीं माना। उनके एक दिन के मुख्यमंत्री बनने की घटना आज भी राजनीति में एक मिसाल मानी जाती है। जो बताती है कि राजनीति में ऊंचाई जितनी तेजी से मिलती है, उतनी ही तेजी से छिन भी सकती है।
Published on:
05 Nov 2025 05:03 pm

