
MP Electricity: बिजली चोरी रोकने में वर्षों से असफल रही बिजली कंपनियों ने इस बार एक ऐसा प्रयोग शुरू किया है, जिसने इंजीनियरों विशेष रूप से जेई और एई में भारी नाराजगी पैदा कर दी है। पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के विवादित आदेश के अनुसार, अब बिजली चोरी पकड़वाने वाले बाहरी लोगों को मिलने वाला इनाम कंपनी के बजट से नहीं, बल्कि संबंधित क्षेत्र के जूनियर इंजीनियर और असिस्टेंट इंजीनियर के वेतन से काटकर दिया जाएगा। अगस्त में जारी हुए इस आदेश से कई जिलों के इंजीनियर परेशान हैं और कई पर वेतन कटौती की तलवार लटक गई है।
आश्चर्य की बात यह है कि ऊर्जा विभाग से लेकर शीर्ष अधिकारियों तक, हर स्तर पर उपलब्धियों का श्रेय साझा किया जाता है, लेकिन बिजली चोरी रोकने की जिम्मेदारी तय करते समय केवल मैदानी इंजीनियरों को निशाना बनाया गया है। इसी वजह से यह मामला गरमा गया है और इसे अन्यायपूर्ण बताया जा रहा है। जल्द ही इस आदेश को अब पश्चिम और मध्य क्षेत्र की बिजली कंपनियों में लागू करने की तैयारी है, जिससे विवाद और बढ़ने की संभावना है।
एमपी की बिजली कंपनियां बीते कई वर्षों में चोरी रोकने के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी हैं, लेकिन हालात नहीं बदले। इस असफलता के बाद अब डिफॉल्टर क्षेत्रों की जिमेदारी सीधे जेई और एई पर डाल दी है। कई इंजीनियरों का कहना है कि स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि वे नौकरी छोड़ने तक को मजबूर हो सकते हैं। इससे पहले भी कंपनियां इसी तरह के विवादित आदेशों के कारण बैकफुट पर आ चुकी हैं। कुछ दिन पहले विभाग ने आदेश जारी किया था कि 10 घंटे से अधिक बिजली सप्लाई पर कर्मचारियों का वेतन कटेगा। तीखी आलोचना के बाद बिजली कंपनी को आदेश वापस लेना पड़ा था।
वी-मित्र ऐप पर शिकायतकर्ता को अपना नाम, नंबर और अकाउंट नंबर की जानकारी के साथ शिकायत दर्ज करनी होती है। यदि शिकायत जांच में सही पाई जाती है तो शिकायतकर्ता को जेई और एई की तनवाह से पैसे काटकर शिकायतकर्ता के खाते में सात दिन के भीतर इनाम की राशि का भुगतान किया जाता है।
कंपनी के वी-मित्र ऐप पर कोई भी व्यक्ति बिजली चोरी की शिकायत दर्ज कर सकता है। शिकायत सही पाए जाने पर शिकायतकर्ता को 50 रुपए से 50 हजार रुपए तक इनाम देने का प्रावधान है। लेकिन इनाम की यह राशि कंपनी नहीं देगी, इसे उसी क्षेत्र में तैनात जेई और एई के वेतन से काटने का नियम बनाया गया है। इसका सर्वाधिक असर जेई पर पड़ रहा है, क्योंकि वे ही मैदान में मौजूद रहते हैं। एई, डीई या अन्य अधिकारियों पर जिमेदारी तो तय है, लेकिन वे चोरी वाले क्षेत्रों में तैनात नहीं होते हैं, इसलिए उन पर कटौती का खतरा कम है। एचटी यानी बड़े कंज्यूमर कनेक्शनों में चोरी की शिकायतें बेहद कम आती हैं, इसलिए डीई पर पेनाल्टी का सवाल भी लगभग न के बराबर है।
Updated on:
22 Nov 2025 11:08 am
Published on:
22 Nov 2025 11:04 am

