
(Photo Source - Patrika)
MP News: मध्यप्रदेश में भूजल की गुणवत्ता की स्थिति काफी चिंतित करने वाली है। राज्य के 28 जिलों में भूजल में नाइट्रेट, आयरन और मैंगनीज की मात्रा सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक पाई गई है। यह जानकारी केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट-2025 में सामने आई है। प्री-मानसून 2024 के आंकड़ों के अनुसार, कई क्षेत्रों में भूजल अब पीने योग्य नहीं रह गया है जोकि सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है।
बोर्ड के आंकड़े मुताबिक नाइट्रेट का प्रदूषण राज्य में सबसे अधिक है। जहां इसकी अधिकतम सीमा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर मानी जाती है, वहीं कई जिलों में यह स्तर खतरनाक ऊंचाई पर पहुंच चुका है। नीमच के कुकड़ेश्वर में नाइट्रेट स्तर 287 मिलीग्राम प्रति लीटर मिला जो तय सीमा का छह गुना है।
पानी की गुणवत्ता खराब होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि नदियों, तालाबों और अन्य जल स्रोतों में मल-मूत्र और गंदा पानी सीधे प्रवाहित किया जा रहा है। मानव जनित गतिविधियां भी भूजल को तेजी से प्रदूषित कर रही हैं, लेकिन इनको खत्म करने की व्यवस्था अब तक नहीं दिखती। यह समस्या केवल गांवों तक सीमित नहीं है, शहर भी इससे जूझ रहे हैं। सरकार की सीवेज ट्रीटमेंट योजनाएं भी पूरी तरह लागू नहीं हो पा रही हैं, जिससे स्थिति और गंभीर होती जा रही है। -डॉ. एससी पांडेय, पर्यावरणविद
इसी तरह श्योपुर, बुरहानपुर, कटनी, सागर, खरगोन, मंडला, रतलाम, पन्ना, रीवा, छतरपुर, दतिया, सीहोर और इंदौर सहित कई जिलों में भी नाइट्रेट 150 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक पाया गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि नाइट्रेट की अधिकता बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम और गंभीर रक्त संबंधी समस्याएं पैदा कर सकती है।
इसी तरह आयरन और मैंगनीज की अधिकता भी कई जिलों में चिंताजनक बताई गई है। आयरन की सीमा 1 मिलीग्राम प्रति लीटर है। जबकि आगर मालवा में 2.341 मिलीग्राम प्रति लीटर और छिंदवाड़ा में 2.203 मिलीग्राम प्रति लीटर दर्ज किया गया। अशोकनगर और बुरहानपुर में भी मानकों से ऊपर मात्रा मिली है।
इसी तरह की मैंगनीज सीमा 0.3 मिलीग्राम प्रति लीटर है। जबकि छिंदवाड़ा में 1.572 मिलीग्राम प्रति लीटर, ग्वालियर में 0.746 मिलीग्राम प्रति लीटर और छतरपुर में 0.474 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, आयरन और मैंगनीज की अधिकता से पाचन खराब होना, त्वचा संबंधी रोग और लंबे समय में तंत्रिका तंत्र पर असर जैसे खतरे बढ़ जाते हैं।
यदि इन क्षेत्रों में समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो पेयजल से जुड़ा संकट और गंभीर हो सकता है। विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि सरकार को प्रदूषण वाले हॉटस्पॉट इलाकों की पहचान कर वहां सुरक्षित पेयजल की तत्काल व्यवस्था करनी चाहिए। साथ ही भूजल प्रदूषण के प्रमुख कारण जैसे खेतों में उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल, सीवेज का रिसाव और ठोस कचरे के गलत निस्तारण पर भी सत नियंत्रण जरूरी है। राज्य की बड़ी आबादी पेयजल के लिए भूजल पर निर्भर है।
Published on:
02 Dec 2025 10:46 am
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