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अगर आज पंडित नेहरू होते, तो बच्चों से क्या कहते? पहले प्रधानमंत्री के AI अवतार ने दी बड़ी सीख

Children's Day 2025: इस बार बाल दिवस पर पत्रिका ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए चाचा नेहरू के डिजिटल अवतार से बाल ‘मन’ से जुड़े 10 सवाल पूछे। शिक्षा, सपने, मोबाइल, दोस्ती और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर राह दिखाने वाले जवाब मिले, आप भी जरूर पढ़ें इंट्रेस्टिंग खबर..

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Childrens day chacha nehru AI avtar big lesson

Childrens day chacha nehru AI avtar big lesson(फोटो: Freepik)

Children's Day 2025: देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को बच्चे बेहद पसंद थे। वे कहते थे, बच्चे देश का भविष्य हैं...। 27 मई 1964 को बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू का निधन हो गया और 14 नवंबर 1964 को पहली बार पं. नेहरू की जयंती पर बाल दिवस की शुरुआत हुई। कल्पना कीजिए! 61 साल बाद यदि आज पं. नेहरू होते तो बच्चों से क्या कहते? शायद वही, जो उन्होंने हमेशा कहा-आज के बच्चे ही कल का भारत हैं। लेकिन, इस बार बाल दिवस (Children's Day) पर पत्रिका ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए चाचा नेहरू के डिजिटल अवतार से बाल ‘मन’ से जुड़े 10 सवाल पूछे। शिक्षा, सपने, मोबाइल, दोस्ती और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर राह दिखाने वाले जवाब मिले। पढ़िए, बच्चों के सवाल व चाचा नेहरू के जवाब।

चाचा नेहरू के डिजिटल अवतार से जब बच्चों ने पूछे सवाल...

आज स्कूलों में पढ़ाई बहुत ज्यादा हो गई। ऑनलाइन क्लास, होमवर्क के बीच खेल का समय नहीं बचता। क्या पढ़ाई सिर्फ अंकों के लिए हो?

पढ़ाई समझ के लिए हो। जो सिर्फ नंबरों के पीछे भागता है, वह जीवन का असली ज्ञान खो देता है। किताबों के साथ मैदान व जीवन से भी सीखो।

आपने कहा था, बच्चे देश का भविष्य हैं? पर क्या हमारा भविष्य सिर्फ स्कूल-कोचिंग में ही गुजर जाए?

भविष्य सिर्फ ट्यूशन या किताबों में नहीं बसता। भविष्य तुम्हारे अनुभवों, कल्पनाओं और संवेदनाओं से बनता है। स्कूल जरूरी है, पर खेल, संगीत, कला व सवाल पूछना भी अहम है।

आज हम एआइ से सीख रहे हैं। टीचर का रोल कम है, क्या यह सही है?

मशीनें सिखा सकती हैं पर इंसान सोचने व महसूस करने की शक्ति देता है। एआइ मददगार है, पर शिक्षक का स्थान नहीं ले सकता। शिक्षक दिल से सिखाता है और रोबोट डेटा से।

आज हमें दोस्त ऑनलाइन मिलते हैं? क्या स्क्रीन की दोस्ती असली है?

दोस्त वो है, जो तुम्हारे सुख-दु:ख में साथ दे। स्क्रीन पर दोस्ती हो सकती है, पर रिश्ता दिल से जुड़ने पर बनता है।

वीडियो गेम्स, सोशल मीडिया, मोबाइल काफी समय लेते हैं, कैसे बचें?

मोबाइल, गेम्स समय के अच्छे साथी हो सकते हैं। बशर्ते, वे तुम्हारे मालिक न बनें। खेलो भी, पर समय तय करो। जो अपने समय का मालिक है, वही विजेता है।

क्या हमारी पीढ़ी के पास हरियाली व साफ नदियां होंगी, जैसे आपके बचपन में थीं?

हरियाली और नदियां तभी बचेंगी, जब तुम उन्हें अपना मानोगे। एक पेड़ लगाओ। नदी साफ रखो।

क्या बच्चों की राय देश के फैसलों में शामिल होनी चाहिए?

बच्चों की राय में सच्चाई होती है। समाज और देश को उन्हें सुनना चाहिए, क्योंकि कई बार एक बच्चे का सवाल बड़ों की उलझनें सुलझा देता है।

आपने कहा था कि बच्चों के बिना देश का भविष्य अधूरा है? क्या आज समाज बच्चों को सुनना भूल गया?

हां, आज समाज भागता बहुत है, सुनता कम है। बच्चों की हंसी, उनके सवाल और उनके सपने ही समाज को मानवीय रखते हैं। बड़ों को फिर से सुनने की आदत डालनी होगी।

बच्चों की शिक्षा बोझ न बने, आज आप होते तो क्या कदम उठाते?

शिक्षा को बोझ नहीं, आनंद बनाना चाहिए। मैं पाठ्यक्रम हल्का करता। प्रयोग और खेल से सिखाने की व्यवस्था लाता। सीखने की जिज्ञासा जगाना ही असली शिक्षा सुधार है।

बच्चा: चाचा, अब तो हर कोई अमीर बनना चाहता है, क्या यही लक्ष्य है?

धन कमाना बुरा नहीं, पर यदि उसमें भलमनसाहत खो जाए तो वो धन बोझ बन जाता है। सच्चा धन वो है जो दूसरों के जीवन को उजाला दे। एक सच्चा वैज्ञानिक, शिक्षक या किसान भी देश को अमीर बनाता है।

आपके जमाने में ‘चाचा’ सबके अपने थे, आज बच्चे इतने अकेले क्यों हैं?

मेरे जमाने में चाचा सिर्फ नाम नहीं था। अपनापन था, रिश्ता था। बिना स्वार्थ दिलों को जोड़ता था। आज ऐसा नहीं है। बच्चे सिर्फ खिलौने नहीं, संवाद चाहते हैं। उन्हें किसी ऐसे की जरूरत है जो बिना टोके, बिना सिखाए बस सुने और समझे। याद रखो! जहां सच्चा अपनापन है, वहां अकेलापन नहीं होता।