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अब जानवरों से गुफ्तगू करने के मिशन पर एआइ

तकनीक: इंसानों के साथ जानवरों के संवाद के खोज रहे तरीके

भारत

ANUJ SHARMA

Sep 18, 2025

लंदन. यह मुमकिन है कि आने वाले दशकों में हम डॉल्फिन से मौसम पर बात करें या पक्षियों से जंगल की खबर पूछें? अभी यह सपना है, पर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एआइ जिस रफ्तार से आगे बढ़ रही है, वह दिन शायद बहुत दूर नहीं जब इंसान और जानवर सचमुच बातचीत करेंगे। यूनिवर्सिटी ऑफ रेन, बर्कले स्थित अर्थ स्पीशीज प्रोजेक्ट और कई संस्थान अब एआइ की मदद से जानवरों की बोलियों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे एआइ मॉडल्स बनाए जा रहे हैं जो लाखों घंटों की रिकॉर्डिंग से सीखकर जानवरों की भाषा को 'रेस्पॉन्स' देने में जुटे हुए हैं। नया मॉडल नैचरएलएम ऑडियो तो पक्षियों के गीत, व्हेल की क्लिक और इंसानी ध्वनियों के बीच फर्क पहचानने की क्षमता दिखा रहा है। वहीं, कई अन्य एआइ मॉडल्स पहले इंसानी भाषा सीखते हैं, फिर उन्हें जानवरों की आवाजों पर आजमाया जा रहा है।

पक्षियों से व्हेल तक फैला संवाद संसार

डॉल्फिन्स अपने साथियों को वर्षों बाद भी नाम से पुकार सकती हैं। कौवे जटिल पैटर्न पहचानने में माहिर हैं। बोनोबो बंदरों पर की गई रिसर्च बताती है कि वे अलग-अलग ध्वनियों को जोड़कर वाक्य जैसी संरचना बना सकते हैं। जापानी पक्षी ‘टिट्स’ भी आवाजों के क्रम से अर्थ बदलते हैं, जो भाषा के नियमों की ओर इशारा करता है। वहीं, कैरिबियाई समुद्र में स्पर्म व्हेल की ‘क्लिक’ ध्वनियां ‘कोडा’ बनाती हैं, जो ध्वन्यात्मक वर्णमाला जैसी लगती हैं।

डिकोडिंग में एआइ की ले रहे भरपूर मदद

भाषावैज्ञानिक और जीवविज्ञानी अब एआइ की मदद से खोज रहे हैं कि क्या जानवरों की बोलियां केवल संकेत या चेतावनी तक सीमित हैं, या उनमें कोई तारतम्य भी है, यानी जहां अलग-अलग भाग मिलकर नया अर्थ बनाते हैं। एआइ ध्वनि के पैटर्न, आवृत्ति, समय-क्रम और अन्य सूक्ष्म बदलावों का विश्लेषण कर रहा है जिन्हें मानव कान शायद न पकड़ पाते हों। कुछ एआइ मॉडल 'टांसफर लर्निंग' का इस्तेमाल करते हुए मानव भाषाओं के लिए बनाए गए मॉडल जानवरों की आवाजों पर लागू कर रहे हैं।

जानवरों की भाषा के लगातार मिल रहे संकेत

भाषा विशेषज्ञ चार्ल्स हॉकिट का मानना है कि संपूर्ण भाषा की पहचान तीन गुणों से होती है, डिस्प्लेसमेंट (अतीत या भविष्य की बातें), प्रोडक्टिविटी (नए विचार गढ़ना) और डुअलिटी (छोटी इकाइयों से बड़े अर्थ बनाना)। इन तीनों पैमानों के आधार पर इंसानों के अलावा किसी और प्रजाति में 'भाषा' का पक्का सबूत अभी तक नहीं मिला, लेकिन संकेत लगातार मिल रहे हैं।