नई दिल्ली. भारत अपनी उच्च शिक्षा के बजट का 20 प्रतिशत हिस्सा आइआइटी पर खर्च कर रहा है। और इन प्रीमियर तकनीकी संस्थानों से पास हुए टॉप 100 में से 62 इंजीनियर आगे बढ़ने या नौकरियां करने विदेश जा रहे हैं। टॉप 1000 में यह संख्या ३६ प्रतिशत है। अमरीका के एच1बी वीजा पर एक लाख डॉलर शुल्क लगने के बाद इन युवा प्रतिभाओं को देश में ही उपयोग करने के अवसर बढ़े हैं। बीते दशकों में चीन व सिंगापुर अपनी प्रतिभाओं को देश में ही रोकने के लिए सफल प्रयास कर चुके हैं। अब भारत की बारी है। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से जुड़े रिसर्चर पृथ्वीराज चौधरी ने 2010 के बाद से पास हुए 2500 आइआइटी छात्रों पर बनाई रिपोर्ट में बताया कि टॉप-5 आइआइटी से मेधावी छात्रों के विदेश जाने की संभावना ज्यादा है। इसके पीछे एक नेटवर्क है, जो इन आइआइटी के पूर्व छात्रों और फैकल्टी से मिलकर बना है। वे विद्यार्थियों को विदेशों में नौकरी या आगे पढ़ाई के लिए जाने में मददगार बनते हैं। हालांकि इस माइग्रेशन के प्रमुख आधार छात्रों के टॉप स्कोर व टॉप आइआइटी से होना है।
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बजट में 20 फीसदी हिस्सा
बजट 25-26 में उच्च शिक्षा को 50,078 करोड़ रुपए मिले। इसमें से 10,384 करोड़ अकेले आइआइटी को गए। यह कुल बजट का 20.73 प्रतिशत यानी पांचवां हिस्सा है। इसमें 723 करोड़ की वृद्धि भी हुई थी।
हर छात्र पर सालाना 7.69 लाख खर्च
2025 में 23 आइआइटी में 1.35 लाख छात्र थे। सरकार एक छात्र पर 7.69 लाख रुपए खर्च कर रही है। यह खर्च बजट के अनुपात में लगातार बढ़ा है। 10 वर्ष पहले छात्र संख्या 65 हजार ही थी और प्रति छात्र खर्च पांच लाख के करीब खर्च होता था।
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सामने आ रही नाराजगी
1. इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ ने आइआइटी ग्रेजुएट को भर्ती करने से जुड़ा अनुभव बताया कि आधे से ज्यादा इंजीनियर इंटरव्यू में शामिल नहीं होते। वे इसरो में ५६ हजार रुपए महीने की बेसिक सैलरी देखकर लौट जाते हैं। खुद चेयरमैन का वेतन ढाई लाख रुपए है।
2. एजूटेक स्टार्टअप बना चुके डॉ. दीपेश दिवाकरन के अनुसार तो आइआइटी ग्रेजुएट भारत नहीं अमरीका को बना रहे हैं। एक-तिहाई अमरीका जा रहे हैं, जो रुकते हैं, वे भी अमरीकी कंपनियों को प्राथमिकता देते हैं। उन्हें पता है कि डीआरडीओ, इसरो में सालाना वेतन १२ लाख है, अमरीका में डेढ़ करोड़।
3. कई शिक्षाविद इसके फायदे ब्रेन सर्कुलेशन में मानते हैं। यानी विदेश से लौटे छात्रों से भारत में तकनीकी विचारों और निवेश को बढ़ावा मिलता है, नए स्टार्टअप शुरू होते हैं। लेकिन नुकसान ज्यादा है। इनोवेशन और मौलिक विचारों की कमी बनी रहती है।
चीन-सिंगापुर से सीखना होगा
चीन : प्रतिभाओं को रोकने या विदेशों से लौटाने के लिए २०० तरह के कार्यक्रम बनाए। इनमें से थाउजेंड टैलेंट प्लान में स्टेम क्षेत्र के युवाओं को कॅरिअर की शुरुआत में भर्ती किया जाता है। विदेशों में कार्यरत युवाओं को चीन लौटने पर ६० लाख से ३.७५ करोड़ रुपए के अवार्ड, सरकारी संस्थानों में ऊंचे वेतन, टैक्स छूट, आवास, स्टार्टअप फंडिंग मिल रहे हैं। २०२३ में प्रेरित होकर १ लाख युवा चीन लौटे। वे अमेरिका, कनाडा, व ऑस्ट्रेलिया के संस्थानों में तैनात थे।
सिंगापुर : एक ही शहर के देश सिंगापुर ने १९९० में ब्रेन ड्रेन को समझा। सरकारी मदद पा रहे छात्रों को ३-६ साल के अनुबंध पर सिंगापुर की कंपनी के लिए काम करने की नीति बनाई। विदेशी छात्र और विदेशी संस्थानों में पढ़ रहे छात्र भी शामिल किए। अनुबंध न मानने पर सरकारी खर्च का दो से तीन गुना वसूला जाता है।
भारत में मेडिकल छात्रों के लिए बॉन्ड : कई राज्यों में मेडिकल छात्रों को सरकारी कॉलेज में पढ़ने पर एक से दो साल ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देनी होती है। उल्लंघन पर ५ से ५० लाख रुपए जुर्माने के प्रावधान। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हुआ, हालांकि अब भी ८० प्रतिशत विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी।
Published on:
13 Oct 2025 12:51 am