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बाड़मेर : राजस्थान का खजुराहो… किराडू मंदिर को संरक्षण की दरकार

विश्व विरासत सप्ताह के अवसर पर यह सवाल फिर उठता है कि इतना समृद्ध विरासत स्थल अब भी संरक्षण की कमी से जूझ क्यों रहा है और इसे अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए क्या किया जाना चाहिए।

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बाड़मेर. जिले का प्राचीन किराडू मंदिर राजस्थान की स्थापत्य कला, इतिहास और सांस्कृतिक विरासत का अनमोल खजाना है। 11वीं सदी में निर्मित यह मंदिर समूह आज भी अपनी भव्यता, बारीक नक्काशी और रहस्यमयी कथाओं की वजह से यात्रियों को आकर्षित करता है। विश्व विरासत सप्ताह के अवसर पर यह सवाल फिर उठता है कि इतना समृद्ध विरासत स्थल अब भी संरक्षण की कमी से जूझ क्यों रहा है और इसे अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए क्या किया जाना चाहिए।

किराडू मंदिर तक कैसे पहुंचे

किराडू मंदिर बाड़मेर मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बाड़मेर से तामलोर मार्ग पर आगे बढ़ते ही यह ऐतिहासिक स्थल सामने आता है। बाड़मेर शहर से टैक्सी, निजी वाहन और लोकल बसों के माध्यम से आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है। सडक़ मार्ग की स्थिति सामान्य है, लेकिन पर्यटक सुविधाओं के लिहाज से अभी काफी विकास की आवश्यकता है।

निर्माण और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

किराडू मंदिरों का निर्माण 11वीं-12वीं सदी के दौरान परमार वंश के शासनकाल में हुआ माना जाता है। यह क्षेत्र उसी समय पश्चिमी राजस्थान में कला, संस्कृति और व्यापार का मजबूत केंद्र था। मंदिर समूह में मुख्य रूप से पांच मंदिर थे, जिनमें सोमेश्वर मंदिर सबसे प्रमुख है। इसकी शिल्पकला खजुराहो शैली से मिलती-जुलती होने के कारण इसे राजस्थान का खजुराहो कहा जाता है।

स्थापत्य और कलात्मक विशेषताएं

किराडू मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी अद्भुत नक्काशी। स्तंभों, गर्भगृह और मंडप पर की गई कारीगरी बारीकी और सुंदरता का उत्कृष्ट उदाहरण है। पाषाण से बने देव-देवियों के चित्रण, नृत्य करती अप्सराएं, किन्नर और अन्य अलंकरण आज भी अपने समय की उच्च शिल्पकला का प्रमाण देते हैं। पत्थरों पर की गई उत्कीर्ण कलाकृतियां सूर्य की रोशनी में विशेष चमक बिखेरती हैं, जो इसे और भी मनमोहक बनाती हैं।

संरक्षण की चुनौतियां और आवश्यकता

इतिहास और स्थापत्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होने के बावजूद किराडू मंदिर आज भी संरक्षण के अभाव से जूझ रहा है। कई हिस्सों में पत्थर टूट रहे हैं, संरचना कमजोर हो रही है और परिसर में बुनियादी सुविधाओं की कमी स्पष्ट दिखती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से सीमित स्तर पर संरक्षण कार्य किए जाते हैं, लेकिन इस धरोहर को दीर्घकाल तक सुरक्षित रखने के लिए और व्यापक योजना की जरूरत है।

ये करना होगा

पर्यटन सुविधाओं के विस्तार, सुरक्षा व्यवस्थाओं, जानकारी पट्टों, प्रकाश व्यवस्था और गाइडेड टूर जैसी सुविधाओं का विकास होने पर किराडू मंदिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान पा सकता है। यह केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि बाड़मेर की सांस्कृतिक पहचान भी है, जिसकी सुरक्षा और संवर्धन समय की मांग है।