
Anta By-election: बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर उपचुनाव में 15 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन असली टक्कर BJP के मोरपाल सुमन, कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया और निर्दलीय नरेश मीणा के बीच है। यह सीट 2008 में बनी और अब तक चार चुनाव हो चुके हैं, लेकिन पहली बार उपचुनाव हो रहा है।
परंपरागत रूप से यहां BJP और कांग्रेस का दबदबा रहा है। 2008 को छोड़कर थर्ड फ्रंट को कभी ज्यादा जगह नहीं मिली। 2023 में थर्ड फ्रंट को महज 3.3%, 2018 और 2013 में 3.4% वोट मिले। 2008 में निर्दलीय मोहन लाल ने 18% से ज्यादा वोट लेकर सबको चौंकाया था, थर्ड फ्रंट कुल 24.5% तक पहुंचा। इस बार उपचुनाव की वजह से समीकरण बदले हुए हैं।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि आम चुनावों में घोषणा पत्र, एंटी-इनकंबेंसी और बड़े मुद्दे हावी होते हैं, लेकिन उपचुनाव में प्रत्याशी की व्यक्तिगत पकड़, समर्थन और विरोध ज्यादा मायने रखते हैं। अंता अब प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी है।
उपचुनाव में स्थानीय उम्मीदवार, जातिगत वोट, भ्रष्टाचार, किसान नाराजगी, रोजगार, सड़क, स्वास्थ्य, फसल खराबा जैसे मुद्दे अहम हैं। दो नए प्रत्याशी (BJP और निर्दलीय), प्रदेश में BJP सरकार, वसुंधरा राजे की भूमिका, माली-मीणा-SC/ST-धाकड़ वोटर्स का मिजाज, इन्फ्लुएंसरों का रुख, चुनाव मैनेजमेंट और बारिश से फसल नुकसान पर मुआवजा जैसे फैक्टर निर्णायक होंगे।
स्थानीय और निर्विवाद छवि: सुमन स्थानीय हैं और सामान्य कार्यकर्ता की साफ-सुथरी इमेज रखते हैं।
कमजोर बेल्ट में मजबूती: जिस क्षेत्र से आते हैं, वहां BJP पारंपरिक रूप से कमजोर रही, लेकिन इस बार वहां से वोट मिलने की उम्मीद।
जातिगत समर्थन: माली और ब्राह्मण वोट कन्फर्म माने जा रहे।
सत्ता का लाभ: प्रदेश में BJP की पूर्ण बहुमत वाली सरकार और संगठन की सक्रियता फायदेमंद।
BJP की चुनौतियां
बाहरी नेता सिर्फ चेहरा दिखाकर चले जा रहे, स्थानीय स्तर पर जुड़ाव कम।
सरकार बनने के बाद कोई बड़ा काम नहीं हुआ, फसल मुआवजा और खाद-बीज आपूर्ति में ढिलाई।
निवर्तमान विधायक के समाज से बाहर उम्मीदवार उतारना; मीणा समाज को साधने में नाकामी, नरेश मीणा से वोट दूरी।
वसुंधरा राजे प्रचार से दूर।
गुर्जर, ब्राह्मण, SC/ST, धाकड़ वोटर्स को साधने की योजना अधर में।
जिला अधिकारियों का पूरा सपोर्ट नहीं; भाया पर सिर्फ आरोप, एक्शन शून्य।
चुनाव मैनेजमेंट में बिखराव; पिछली बार मीणा वोट एकतरफा थे, इस बार माली वोट पूरे मिलें, गहलोत फैक्टर न काम करे—योजना धरातल पर कमजोर।
राजनीतिक कद और अनुभव: दो बार जीते चुके, मजबूत चुनावी मैनेजमेंट और कार्यकर्ताओं की फौज।
एकजुटता और कार्य: पार्टी एकजुट नजर आ रही; पहले किए काम, पत्नी का जिला प्रमुख होना।
त्रिकोणीय फायदा: स्थायी वोटर्स और मुकाबले का लाभ; जातीय समीकरण व किसान मुद्दों पर फोकस।
कांग्रेस की चुनौतियां
प्रदेश नेतृत्व बिहार चुनाव में व्यस्त, अंता में कम सक्रियता।
भाया पर भ्रष्टाचार आरोप।
नए उम्मीदवारों से मुकाबला; सत्ता में BJP का बहुमत।
जातिगत रूप से कमजोर; SC/ST, धाकड़, मुस्लिम वोट में निर्दलीय की सेंध।
गहलोत फैक्टर से माली वोट में टूट।
खोने को कुछ नहीं: दो हार के बाद सहानुभूति बढ़ी।
समाजिक समर्थन: मीणा समाज का पूरा सहयोग; SC/ST, धाकड़, युवा, कुछ मुस्लिम, किसान-मजदूर का अघोषित बैकिंग।
कांग्रेस धड़े का गुप्त सपोर्ट: एग्रेसिव प्रचार, भाया पर खुली बयानबाजी।
नए उम्मीदवार का लाभ: BJP उम्मीदवार से ज्यादा फायदा; भरपूर आर्थिक मदद।
निर्दलीय की चुनौतियां
बड़बोला और झगड़ालू इमेज; आपराधिक छवि।
पार्टी वोटबैंक नहीं; मीणा समाज के अलावा गारंटी शून्य।
बूथ मैनेजमेंट कमजोर; सिर्फ युवा जोश।
बाहरी लोगों का कैंपेन ज्यादा, समय व संसाधन सीमित।
तीसरे मोर्चे की बात, लेकिन राजकुमार रौत, हनुमान बेनीवाल जैसी शक्तियां खुलकर नहीं आईं।
अंता में इस बार रिकॉर्ड 15 उम्मीदवार हैं, जो पिछले चुनावों से ज्यादा है। नतीजे 23 नवंबर को आएंगे। उपचुनाव की अनिश्चितता में स्थानीय मुद्दे और प्रत्याशी पकड़ फैसला करेंगे। BJP सत्ता बचाने, कांग्रेस वापसी और नरेश मीणा उलटफेर की कोशिश में हैं।
Published on:
04 Nov 2025 04:26 pm

