
Anta By-election Results: राजस्थान की अंता विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद जैन भाया ने 15,612 मतों से धमाकेदार जीत हासिल की। होम वोटिंग समेत 20 राउंड की मतगणना के बाद भाया को 69,571 वोट मिले, जबकि भाजपा के मोरपाल सुमन 53,959 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर सिमट गए। निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा को 53,800 वोट मिले। 925 मतदाताओं ने 'NOTA' विकल्प का इस्तेमाल किया।
यह हार भाजपा के लिए बड़ा झटका है, खासकर हाड़ौती क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिशों को देखते हुए। उपचुनाव पूर्व भाजपा विधायक कंवर लाल मीणा की आपराधिक सजा के कारण अयोग्यता से रिक्त हुई सीट पर हुआ था। यहां 80% से अधिक मतदान दर्ज किया गया, जो मतदाताओं की सक्रियता को दर्शाता है।
भाजपा ने भजनलाल सरकार के कामकाज पर वोट मांगे, लेकिन पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की सक्रियता के बावजूद पार्टी फ्रंटफुट पर नहीं खेल पाई। अब सवाल उठ रहा है कि जनता ने भाजपा को क्यों नकारा और वोटों की शिफ्टिंग की बड़ी वजह क्या रही?मोरपाल सुमन की हार के पीछे पांच मुख्य वजहें प्रमुखता से सामने आ रही हैं, जो भाजपा की रणनीति और स्थानीय मुद्दों की कमजोरी को उजागर करती हैं।
कांग्रेस के बागी निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा ने मीणा समुदाय के वोटों को बुरी तरह बांट दिया। एग्जिट पोल में मीणा को 33% समर्थन मिलने का अनुमान था, जिसने भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक को चूर-चूर कर दिया। पहले यह सीट कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर की थी, लेकिन नरेश मीणा ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया। मीणा के वोटों ने भाजपा को सीधे नुकसान पहुंचाया, क्योंकि मीणा समुदाय हाड़ौती में प्रभावशाली है। इससे भाजपा की जीत की राह अवरुद्ध हो गई।
कंवर लाल मीणा की 2005 के आपराधिक मामले में सजा और अयोग्यता ने भाजपा की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया। मतदाताओं में गुस्सा था कि पार्टी ने ऐसे उम्मीदवार को टिकट दिया, जिसके कारण सीट खाली हुई। इससे स्थानीय विकास कार्य ठप हो गए। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाकर हमला बोला, आरोप लगाया कि भाजपा ने जनता की अनदेखी की। यह दाग भाजपा के प्रचार को कमजोर करता रहा और वोटरों में नकारात्मक भावना पैदा की।
भाजपा ने वसुंधरा राजे के करीबी मोरपाल सुमन को स्थानीय चेहरा बताकर मैदान में उतारा। सुमन ने खुद को किराना दुकानदार की सादगी से पेश किया और भाया व मीणा को 'बाहरी' कहा। लेकिन उनकी अपील मतदाताओं तक नहीं पहुंच पाई। वहीं, तीन बार विधायक रह चुके भाया के विकास कार्य- सड़कें, सिंचाई परियोजनायों ने उन्हें मजबूत बनाया। सुमन की स्थानीय जुड़ाव की कमी ने भाजपा को बैकफुट पर धकेल दिया।
कांग्रेस ने अंतिम चरण में जोरदार प्रचार किया। पूर्व सीएम अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा, टीकाराम जूली और अशोक चांदना जैसे नेताओं ने रैलियां कीं। उन्होंने भाया के खिलाफ भाजपा के 'राजनीतिक मामलों' को खारिज किया और जातिगत समीकरण (गुर्जर-माली) को संतुलित रखा। भाजपा का फोकस माइक्रो-मैनेजमेंट पर फिसल गया, जबकि हाड़ौती में वोटर सेंटिमेंट कांग्रेस के पक्ष में शिफ्ट हो गया। वसुंधरा राजे की जमीन पर मेहनत के बावजूद कांग्रेस की एकजुटता भारी पड़ी
बता दें, 80% मतदान के बावजूद बेरोजगारी, पानी की कमी और किसान समस्याओं पर भजनलाल सरकार की विफलता ने असंतोष बढ़ाया। नरेश मीणा की 2024 देवली उपचुनाव में SDM पर थप्पड़ मारने की घटना और गिरफ्तारी ने उन्हें 'लड़ाकू' नेता की संज्ञा दी, जो युवाओं को आकर्षित किया।
भाजपा की आंतरिक कलह भी वोटरों तक पहुंची। भाया के भ्रष्टाचार मामलों को भाजपा ने उठाया, लेकिन जनता ने इसे नजरअंदाज कर दिया। कुल मिलाकर, यह हार भाजपा को हाड़ौती में सबक देती है। पार्टी को स्थानीय मुद्दों, उम्मीदवार चयन और एकता पर फोकस करना होगा। कांग्रेस की जीत भाया की मजबूती और भाजपा की कमजोरियों का प्रमाण है।
Updated on:
14 Nov 2025 04:25 pm
Published on:
14 Nov 2025 01:10 pm

