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Anta By Election: अंता में क्यों हुई भाजपा की हार, जानें कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया की जीत के 5 बड़े फैक्टर

Rajasthan Anta By Election Result: अंता विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया ने भाजपा के मोरपाल सुमन को हराकर चौंका दिया। जानें कांग्रेस की जीत के 5 बड़े फैक्टर-

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महिला BLO ने BJP पार्षद पर धमकी और बदतमीजी का आरोप लगाया, कांग्रेस ने कार्रवाई की मांग की...(photo-patrika)

महिला BLO ने BJP पार्षद पर धमकी और बदतमीजी का आरोप लगाया, कांग्रेस ने कार्रवाई की मांग की...(photo-patrika)

Rajasthan Anta By Election Result: अंता विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को हराकर चौंका दिया। कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद जैन भाया ने 15,612 वोटों से शानदार जीत दर्ज की। प्रमोद जैन भाया को 69,571 वोट मिले। भाजपा प्रत्याशी मोरपाल सुमन को 53,959 मत मिले। वहीं निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा के खाते में 53,800 वोट आए। 925 मतदाताओं ने नोटा विकल्प का प्रयोग किया।

अंता विधानसभा उपचुनाव का नतीजा बताता है कि राजस्थान की भाजपा सरकार जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने में अब तक कितनी सफल रही है। इस उपचुनाव को राज्य की भाजपा सरकार के लिए बड़ी परीक्षा माना जा रहा था। भाजपा ने भी इसे प्रतिष्ठा का सवाल बनाते हुए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और कई बड़े नेताओं की फौज चुनाव प्रचार में उतारी, लेकिन रणनीति काम नहीं आई और हार का मुंह देखना पड़ा।

Anta Bypoll Result 2025: कांग्रेस की जीत के 5 प्रमुख कारण

1. संगठन एकता

पिछली गलतियों से सबक लेते हुए कांग्रेस ने इस चुनाव में बेहद सूझबूझ से रणनीति बनाई। कांग्रेस का संगठन पूरी तरह एक्टिव रहा। बूथ स्तर पर टीमों का गठन, घर-घर पहुंचकर मतदान अपील और मतदान के दिन मतदाताओं को बूथ तक लाने की बेहतर रणनीति ने तस्वीर बदल दी। पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार कांग्रेस का ग्राउंड नेटवर्क बहुत मजबूत दिखा। कार्यकर्ताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। यही माइक्रो मैनेजमेंट भाजपा की रणनीति पर भारी पड़ा।

2. उम्मीदवार का चयन

कांग्रेस की जीत में उम्मीदवार के चयन का सबसे अहम रोल रहा। कांग्रेस ने सबसे पहले उम्मीदवार प्रमोद जैन भाया के नाम का एलान किया। वहीं भाजपा को उम्मीदवार का नाम तय करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके प्रमोद जैन भाया हाड़ौती क्षेत्र के दिग्गज कांग्रेस नेताओं में आते हैं।

3. बूथ स्तर तक रणनीति

कांग्रेस ने अंता के लिए ऐसी रणनीति बनाई की उसका तोड़ भाजपा के पास नहीं था। पार्टी ने क्षेत्र के हर गांव में अपने कार्यकर्ताओं को संदेश देकर मतदाताओं को अपने पक्ष में किया। प्रमोद जैन भाया ने भी अपने व्यक्तिगत संपर्क को प्राथमिकता दी, गांव-गांव जाकर मतदाताओं से संवाद किया और चुनावी प्रबंधन को एक संगठित अभियान की तरह चलाया।

4. स्थानीय मुद्दों पर पकड़

कांग्रेस ने अंता सीट पर चुनाव प्रचार के लिए 56 नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी, जिन्होंने जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी। पार्टी चुनावी अभियान को गांव-गांव तक पहुंचाने की रणनीति के तहत इन नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी। प्रत्येक नेता को तीन-तीन गांव का प्रभारी बनाया गया। इस टीम का मुख्य लक्ष्य ग्रामीण वोट बैंक पर फोकस करना और चुनावी मैनेजमेंट को मजबूत बनाना था।

सभी प्रभारियों को निर्देश दिए थे वे गांवों में जनसंपर्क करें और स्थानीय मुद्दों पर बातचीत करें। गांवों में किसानों ने सरकारी योजनाओं के लाभ नहीं मिलना, फसल खराब होने पर उचित मुआवजा न मिलना, सड़क और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और खाद की किल्लत जैसी समस्याएं सामने रखीं। कांग्रेस ने चुनाव अभियान में इन स्थानीय समस्याओं को प्राथमिकता दी और गांव-गांव जाकर समाधान का भरोसा दिलाया। इन मुद्दों ने ग्रामीण वोट कांग्रेस के खाते में पहुंचा दिए।

5. भाजपा की गुटबाजी

कांग्रेस ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाते हुए पूरी ताकत लगा दी। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और अशोक चांदना समेत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने एकजुटता के साथ प्रचार किया। बड़े नेताओं के सक्रिय रोड शो और लगातार सभाओं ने पार्टी कार्यकर्ताओं को ऊर्जा दी और जनता तक मजबूत संदेश पहुंचाया।

वहीं भाजपा की आंतरिक खींचतान ने अंता में पार्टी की नैया डुबो दी। भाजपा में टिकट वितरण को लेकर भी नाराजगी सामने आई। कुछ नेता चुनाव में सक्रिय नहीं रहे, जिससे कार्यकर्ताओं के बीच मनोबल प्रभावित हुआ। कई क्षेत्रों में भाजपा में स्थानीय स्तर पर समन्वय की कमी दिखी। इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला।

सियासी गलियारों में चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थक गुट और वर्तमान सीएम भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाले गुट के बीच खींचतान ने संगठन को कमजोर कर दिया। बीजेपी प्रत्याशी मोरपाल सुमन को राजे गुट का पूर्ण समर्थन नहीं मिला, जबकि निर्दलीय नरेश मीणा (कांग्रेस बागी) ने मीणा वोटों को बांट दिया। प्रचार में दिग्गजों की एकजुटता नहीं दिखी, जिससे वोटर नाराज हुए।