
चंद्रयान-3 की सफलता के बाद वैज्ञानिकों को बधाई देने इसरो नियंत्रण केंद्र इसट्रैक पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेे लैंडिंग स्थल को शिव शक्ति प्वांइंट और 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस घोषित किया। इसरो के पूर्व अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने कहा कि यह आने वाली पीढिय़ों को तकनीकी रूप से एक सशक्त भारत के निर्माण के लिए प्रेरित करता रहेगा। अंतरिक्ष दिवस पर पत्रिका के साथ विशेष साक्षात्कार में सोमनाथ ने ऑपरेशन सिंदूर से लेकर भविष्य की जरूरतों पर विस्तार से बात की। प्रस्तुत है संक्षिप्त अंश:
सोमनाथ: चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग देश के लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि काफी कम लागत में ऐसा करने वाले हम पहले देश हैं। इस मिशन को हमने अपने ज्ञान और कौशल से साकार किया। यह हमारी प्रतिभा और आत्मनिर्भरता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। चंद्रयान-3 की लैंडिंग का प्रसारण देश भर में लाखों लोगों ने ऑनलाइन और टेलीविजन पर देखा। आज अंतरिक्ष दिवस पर करोडों लोग जश्न मना रहे हैं। यह युवा मन में प्रेरणा और सपने जगाता है।
सोमनाथ: राष्ट्रीय सुरक्षा और बचाव प्रणाली को लेकर वर्तमान में हमारे सामने कई चुनौतियां हैं। वैश्विक स्तर पर हमने संघर्षों की प्रकृति और युद्ध के मैदान में वर्चस्व हासिल करने के लिए तकनीक के अधिकतम उपयोग को देखा है। मानवीय हस्तक्षेप कम हो रहे हैं, ऑटोमेटिक प्रणालियां हावी हो रही हैं। इमेज इंटेलिजेंस, सिग्नल इंटेलिजेंस, लोकेशन और टाइमिंग सेवाएं निर्णायक साबित हो रही हैं। रक्षा उपकरणों और युद्ध कर्मियों के बीच निर्बाध समन्वय के लिए उपग्रह संचार, इमेजिंग, पोजिशनिंग एवं टाइमिंग सेवाएं अपरिहार्य हैं। इन्हीं की बदौलत ऑपरेशन सिंदूर में सफलता मिली, लेकिन इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है। अंतरिक्ष अवसंरचना के निर्माण और उद्योगों के सहयोग से उसके परिचालन के लिए कई स्वीकृतियां दी गई हैं। इसरो ऐसे राडार और ऑप्टिल उपग्रह तकनीक पर काम कर रहा है, जो बड़े भू-भाग की हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें मुहैया कराए। सिग्नल इंटेलिजेंस, किसी खास इलाके की निरंतर निगरानी, ऑप्टिकल संचार, सॉफ्टवेयर-डिफाइंड सैटेलाइट (एसडीएस), अभेद्य और क्वांटम एन्क्रिप्टेड संचार के साथ अंतरिक्ष स्थिति की जागरूकता पर काफी काम हो रहा है।
सोमनाथ: मुझे यकीन है कि अब कमी का एहसास हो रहा है। इसीलिए अधिक से अधिक उपग्रहों के निर्माण और प्रक्षेपण की मंजूरी दी जा रही है। अगले 5 वर्षों में हमारे पास लगभग 100 से 150 उपग्रह होने चाहिए। लचर उत्पादन पारिस्थितिकी तंत्र और उपग्रहों के लिए महत्वपूर्ण प्रणालियों की आपूर्ति पर निर्भरता एक बड़ी चुनौती है। इसके कारण हम बड़ी संख्या में उपग्रहों का उत्पादन और प्रक्षेपण करने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। स्पेस इलेक्ट्रॉनिक्स, सेंसर और कुछ उच्च-स्तरीय उपकरणों का स्वदेशी विकास, साथ ही बड़े पैमाने पर उत्पादन जरूरी है। हमें लगभग 100 भू-अवलोकन उपग्रहों के समूह की आवश्यकता है जो हर 15 से 20 मिनट पर री-विजिट करे (एक ही स्थान के ऊपर से 15-20 मिनट में एक उपग्रह गुजरे) और राडार, ऑप्टिल, थर्मल इमेजिंग प्रदान करे। सुरक्षित संचार के लिए भी हमें उपग्रहों का एक बड़ा समूह होना चाहिए, जिसकी पहुंच वैश्विक हो और उसका संचालन निजी क्षेत्र करे। पृथ्वी की भू-स्थिर (जियो) और मध्यम कक्षा (एमईओ) में नाविक प्रणाली के उपग्रहों हों और उनकी पहुंच वैश्विक होनी चाहिए। अगर हमें अपने विशाल समुद्र और सीमाओं की रक्षा करनी है, तो सरकारी वित्त पोषण और वाणिज्यिक संचालन के साथ एक व्यवहारिक समाधान अवश्य निकालना होगा।
सोमनाथ: शक्ति का विकास, शांति के लिए जरूरी है। कमजोर राष्ट्रों में विकास और स्थिरता नहीं होती है। स्वदेशी अंतरिक्ष तकनीक एक सामरिक संपत्ति है, यह केवल व्यावसायिक उपयोग के लिए नहीं है। हमें तकनीक के मामले में या ऑपरेशनल स्केल पर किसी के साथ तुलना करने की जरूरत नहीं है। अंतरिक्ष में हमारी बढ़ती ताकत, आर्थिक प्रगति और अनुसंधान क्षमता से जुड़ी है। हमें आपूर्ति श्रृंखला को बेहतर बनाने के साथ ही मुख्य प्रौद्योगिकियों व प्रणालियों तक पहुंच कायम करनी होगी ताकि आवश्यकता पडऩे पर अपनी जरूरतों के आधार पर उत्पादन बढ़ा सकें। भारत को ऐसे अंतरिक्ष उद्योगों की आवश्यकता है, जो अंतरिक्ष प्रणालियों का बड़े पैमाने पर उत्पादन करें। राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता के समय यह एक बहुत काम आएगी।
सोमनाथ: रॉकेट और उपग्रह जैसी जटिल प्रणालियों के विकास में कुछ स्टार्टअप्स की प्रगति काफी संतोषजनक है। अनुभवी लोगों के मार्गदर्शन में एक बहुत युवा टीम काम कर रही है। स्काईरूट और अन्य कंपनियों के बनाए जा रहे रॉकेट भारत ही नहीं विश्व के छोटे उपग्रहों को किफायती दर और समय पर प्रक्षेपण सुविधा प्रदान करेंगे। भू-अवलोकन उपग्रहों का एक नक्षत्र तैयार करने के लिए इन-स्पेस ने पीपीपी मॉड्यूल की घोषणा की है। आगे चलकर यह राष्ट्रीय सुरक्षा के काम आएंगे। इसरो के समाने तकनीक, क्षमता, लागत या अभिव्यक्ति और आपूर्ति के मामले में परंपराओं से हटकर नई राह अपनाने की चुनौती है। उम्मीद है समय के साथ स्टार्टअप्स काफी कारगर साबित होंगे।
सोमनाथ: इसरो ने 60 से ज़्यादा देशों, संगठनों या अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) या सहयोग किया है। कुछ प्रमुख एजेंसियों के साथ बहुत सक्रिय सहयोग चल रहा है। इनमें रूस, अमरीका, जापान, फ्रांस, यूरोपीय संघ की अंतरिक्ष एजेंसियां शामिल हैं। चंद्रयान-5 मिशन जापानी अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा के साथ है। फ्रांस के साथ हम तृष्णा मिशन में सहयोग कर रहे हैं। यूरोपीय संघ, नासा और रोस्कोसमोस के साथ मानव मिशन और अनुप्रयोगों में सहयोग चल रहा है। मध्य पूर्व, अफ्रीका और लैटिन अमरीका में कई अन्य सहयोगी राष्ट्र हैं, जिनके साथ सहयोग हो रहा है। मुझे विश्वास है कि आने वाले दिनों में चंद्र मिशन और उसके उपयोग, संयुक्त मंगल मिशन, अंतरिक्ष स्टेशन पर सेवाएं भेजने, अंतरिक्ष स्टेशनों के लिए मानव मिशन, अंतरिक्ष पर्यटन के संयुक्त संचालन, क्षुद्रग्रहों से बचाव के लिए अंतरिक्ष रक्षा प्रणाली का संयुक्त विकास, खगोल जीव विज्ञान आदि में अग्रणी अंतरिक्ष संपन्न देशों के साथ सहयोग विकसित होगा।
सोमनाथ: भारत में साइंस मिशनों को आगे बढ़ाना बेहद जरूरी है। कई लोग कहते हैं कि साइंस मिशन पर हमें इतना पैसा क्यों खर्च करना चाहिए। वैसे भी अमेरिका और अन्य देश ऐसा कर रहे हैं, नतीजे बाद में पता चल ही जाएंगे। यह पराधीनता की मानसिकता है। अगर हमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपना स्थान बनाना है, तो सभी क्षेत्रों में प्रतिभाओं का एक समूह तैयार करना होगा। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और विज्ञान भी एक ऐसा ही क्षेत्र है। ब्रह्मांड के रहस्यों को समझना और वैश्विक ज्ञान में योगदान देना एक पहलू है। इन मिशनों को पूरा करने के दौरान प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए कौशल सृजन, विश्व स्तरीय वैज्ञानिक उपकरणों का निर्माण, विश्लेषण क्षमताएं विकसित होती हैं जो अंतत: ऑपरेशनल और वाणिज्यिक मिशनों के लिए भी उपयोगी होती हैं। देश के अन्य वैज्ञानिक संस्थान, पश्चिम का रूख करने के बजाय इसरो से लाभ उठा सकते हैं। हमें यह भी समझना होगा कि चंद्र मिशन या मानव मिशन एक राष्ट्र के रूप में हमारी तकनीकी श्रेष्ठता को परिभाषित करेंगे, जिससे हम दूसरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकेंगे।
सोमनाथ: मैं जहां भी जाता हूं और युवाओं से मिलता हूं, उनके उत्साह, आकांक्षाओं और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रति प्रेम देखकर रोमांचित हो जाता हूं। गांव के स्कूलों और संस्थानों में यह उत्साह अधिक दिखाई देता है। मैं ईमानदारी से यह बताने की कोशिश करता हूं कि आर्थिक प्रगति और हमारे राष्ट्र का भविष्य प्रौद्योगिकी को अपनाने में ही निहित है। हमें ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में उत्साह और अवसर पैदा करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम (शैक्षिक, आउटरीच, प्रशिक्षण, छात्रवृत्ति, प्रतियोगिताएं, यात्राएं, दौरे) आयोजित होने चाहिए ताकि बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचा सके। उन्हें राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रति उत्साह, भारत और विदेशों में अध्ययन व अनुसंधान के अवसरों से अवगत कराना जरूरी है। चंद्रयान-3 की सफलता उन भारतीयों की सफलता है जिन्होंने इसका निर्माण भारत में किया। यह कहानी हर किसी तक पहुंचनी चाहिए ताकि उनमें आत्मविश्वास और गर्व का संचार हो। मुझे विश्वास है कि ऐसे आयोजनों में हमारे राष्ट्र का भाग्य बदलने की क्षमता है।
सोमनाथ: राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस केवल उत्सव मनाने के लिए नहीं है। यह राष्ट्र के लिए सपने संजोने का दिन है। राष्ट्र निर्माण के ये सपने हम सभी के प्रयासों से साकार होंगे। हमें अंतरिक्ष क्षेत्र को एक ऐसी सफलता की कहानी बनाना होगा, जिसने मानव जीवन की आकांक्षाओं और गौरव को छुआ हो। ऐसी ही सफलता हम अन्य क्षेत्रों में भी दोहराएं। सीखें, सपने देखें, पूरा करें।
Published on:
22 Aug 2025 08:46 pm

