
अनुसूचित जातियों (एससी) के आंतरिक आरक्षण फार्मूले के खिलाफ हो रहे व्यापक विरोध के बावजूद राज्य सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने स्पष्ट कर दिया है कि आदेश में अब बदलाव संभव नहीं है, लेकिन जो समुदाय विरोध कर रहे हैं उनके लिए एक विशेष पैकेज पर विचार किया जा रहा है।
राज्य सरकार ने व्यापक विचार-विमर्श के बाद नागमोहन दास आयोग की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण का एक नया रोस्टर तैयार किया, जिसमें अनुसूचित जातियों के लिए 17 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित करते हुए उसे तीन प्रमुख समुदायों में विभाजित कर दिया। सरकार ने 6, 6, 5 का फार्मूला अपनाया और समूह ए में मडिगा और संबद्ध जातियों के लिए 6 प्रतिशत, समूह बी में होलेया और संबद्ध जातियों के लिए 6 प्रतिशत और समूह सी में 59 खानाबदोश और अर्ध-खानाबदोश समुदाय के साथ लम्बानी, भोवी, कोरमा और कोरचा समुदाय के लिए 5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की। आरक्षण के इस फार्मूले को तीन प्रमुख हितधारकों, होलेया, मडिगा और लम्बानी, भोवी, कोरमा एवं कोराचा सहित अनुसूचित जातियों के समूह ने स्वीकार कर लिया। चौथा बड़ा वर्ग, जिसमें 59 खानाबदोश, अर्ध-खानाबदोश और अति संवेदनशील अनुसूचित जाति समुदाय शामिल हैं, सरकार के फैसले से निराश हो गए।
नागमोहन दास आयोग ने अनुसूचित जातियों को पांच समूहों ए, बी, सी, डी और ई में विभाजित किया था। इसने 59 उपजातियों को समूह ए के अंतर्गत रखा और अति पिछड़ा की संज्ञा देते हुए 1 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की। आयोग के फार्मूले में समूह ए के लिए 1 फीसदी, बी के लिए 6 फीसदी, सी के लिए 5 फीसदी, डी के लिए 4 फीसदी और ई के लिए 1 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था थी। हालांकि, सरकार ने पांच वर्गों को तीन में विभाजित कर दिया और 59 समुदायों को लंबानी, भोवी, कोरमा और कोरचा समुदायों के साथ समूह डी में समायोजित कर दिया। जिन समुदायों के साथ उन्हें जोड़ा गया, उन्हें आयोग ने कम पिछड़ा वर्ग कहा था। फैसले के बाद से कई खानाबदोश समुदायों ने फ्रीडम पार्क में प्रदर्शन किया है। आर्थिक तंगी के बावजूद ये राज्य भर से आए। लगभग एक महीना बीत चुका है और सरकार के साथ बातचीत बेनतीजा रही है। इसके बावजूद समुदायों ने अपना संघर्ष जारी रखा है और सरकार से नागमोहन दास आयोग की रिपोर्ट को उसके मूल स्वरूप में लागू करने का आग्रह किया है। पिछले दिनों इन समुदायों ने बेंगलूरु चलो पदयात्रा निकाली और अब बेलगावी विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान व्यापक विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है।
दरअसल, राज्य की 6.33 लाख अनुसूचित जाति के स्नातकों में से 4.49 लाख (71 प्रतिशत) सिर्फ चार समुदायों होलेया, मडिगा, बंजारा और भोवी से हैं। इसी तरह, 7516 एमबीबीएस स्नातक में से 5229 (69.57 प्रतिशत) इन्हीं चार समूहों से हैं। इसके विपरीत, सबसे पिछड़े के रूप में वर्गीकृत 59 समुदायों में कई खानाबदोश समुदाय ऐसे हैं जो उच्च शिक्षा और पेशेवर अवसरों से लगभग पूरी तरह वंचित हैं। इनमें से चौदह समुदायों में कोई इंजीनियर नहीं है, 40 में एक भी एमबीबीएस स्नातक और 54 समुदायों में कोई पीएचडी धारक नहीं है।
राजनीतिक विश्लेेषकों का कहना है कि इन समुदायों की सबसे बड़ी बाधा अपेक्षाकृत कम आबादी (5.22 लाख) और राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अभाव है। इन समुदायों से एकमात्र विधायक कोलार के कांग्रेस नेता कोथुर मंजूनाथ हैं। मुख्य मुद्दा यह है कि इन समुदायों की एक तो संख्या बहुत कम है और वो भी बिखरे हुए हैं। छोटे समूहों में विभाजित होने के कारण ये चुनाव नहीं लड़ सकते और न ही जीत सकते हैं। आर्थिक रूप से गरीब और राजनीतिक रूप से कमजोर हैं। इन्हें बोर्ड और निगमों में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। इन समुदायों से उपयुक्त व्यक्तियों की पहचान करके उन्हें मनोनीत किया जाना चाहिए। आंतरिक आरक्षण का विरोध कर रहे कार्यकर्ताओं का दावा है कि मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया कि मौजूदा व्यवस्था सामाजिक अन्याय के बराबर है, लेकिन वे इसे बदलने में असहाय हैं।
इस बीच खानाबदोश समुदाय अपने प्रयास तेज कर रहे हैं। विरोध प्रदर्शनों और कानूनी कदमों के साथ, अछूत खानाबदोश समुदायों के परिसंघ ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को पत्र लिखा है। संगठन 2 अक्टूबर को राज्य से 1 हजार खानाबदोश दलितों का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली ले जाकर अपनी मांगें उनके सामने रखने की योजना बना रहा है।
Published on:
19 Sept 2025 07:12 pm

