
1961 से लगातार निभाई जा रही परंपरा का इस वर्ष भी दशहरा पर्व पर निर्वहन किया जाएगा। बालाघाट शहर का दशहरा उत्सव, चल समारोह के कारण जिले में ही नहीं बल्कि देश, प्रदेश में प्रसिद्ध है। हनुमान साधक 40 दिनों के ब्रम्हचर्य धर्म का पालन कर कठिन व्रत को पूरा करते हैं। दशहरा के दिन एक मन (40 किलो) वजनी हनुमान स्वरूप मुकुट को सिर पर धारण कर पूरे शहर का भ्रमण कर दशहरा मैदान पहुंचकर रावण दहन किया जाता है।
2025 में महावीर सेवा दल समिति अपना 63 वॉ दशहरा चल समारोह का आयोजन करने जा रही है। इस बार शहर के शहर तुषार उपाध्याय हनुमान बनेंगे। समिति पदाधिकारियों के अनुसार तुषार पहले से ही श्रीराम मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हैं। बीते कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने अपना नाम हनुमान जी के पाठ के लिए लिखवाया था। इस वर्ष उनका नंबर लगा है। तुषार और उनके परिवारजनों की अनुमति के बाद ही दशहरा से 40 दिन पूर्व ही हनुमान साधक बनने का पाठ शुरू हो चुका है। इस दौरान एक टाइम भोजन दो टाइम फलाहारी और नवरात्रि के दौरान पूरी तरह उपवास फलाहारी पर रहना पड़ता है। इस बीच रोजाना सुबह शाम 8 से 10 किमी. पैदल चलना और शरीर को इस लायक बना लेना की वह सिर पर 40 किलों का मुकुट पहनकर श्रीराम मंदिर से दशहरा चल समारोह रावण दहन स्थल उत्कृष्ट स्कूल मैदान तक करीब 4-5 किमी पैदल चलकर पहुंचने के लिए पूर्णता सक्षम हो जाए। हनुमान साधन ने पंचमी को हनुमान मंदिर में चोला भी चढ़ाया। वहीं 01 अक्टूबर को चल समारोह का अंतिम अभ्यास होगा।
समिति पदाधिकारियों के अनुसार 63 वर्ष होने की वजह से इस बार दशहरा चल समारोह भव्य और आकर्षक रहेगा। महानगरों से आतिशबाजी व विभिन्न कलाकार आ रहे हैं। जिलेभर से पहुंचने वालों के लिए अलग-अलग सुविधाएं की जा रही है। उन्होंने बताया कि जिले के साथ-साथ मप्र, छत्तीसगढ़, सिवनी, छिंदवाड़ा, मंडला, डिंडोरी, गोंदिया, दुर्ग, भिलाई सहित अन्य सभी जिलों के राम और हनुमान भक्त से इस दशहरा चल समारोह में पहुंचकर भव्य कार्यक्रम में शामिल होने की अपील की है।
जानकारी के अनुसार महावीर सेवा दल समिति द्वारा हरियाणा पानीपत की तर्ज पर बालाघाट में भी बीते 63 वर्षों से दशहरा चल समारोह के दौरान हनुमान साधक बनाए जाने की परंपरा चली आ रही हैं। इस दौरान हनुमान साधक बनने वाले युवाओं को 40 दिन का उपवास मंदिर में रहकर ही करना पड़ता है। दशहरा चल समारोह जो कि नए राम मंदिर से प्रारंभ होकर शहर के मुख्य मार्गो से होता हुआ दशहरा स्थल पर पहुंचता है। इस दौरान हनुमान साधक को करीब 40 किलो वजनी का मुकुट सिर पर धारण करना होता है। कठिन उपवास, तपस्या के बाद चल समारोह में हनुमान बनने का अवसर प्राप्त होता है।
समारोह में प्रतिवर्ष शामिल होने वाले भक्त नवीन यादव ने बताया कि दशहरा चल समारोह जिसने एक बार देखा वह बार-बार देखने आता है। नए राम मंदिर से जब हनुमान बने साधक के सिर पर कमर से लेकर करीब 9 फीट ऊंचा 40 किलो वजनी मुकुट पहना दिया जाता है, उसके बाद चल समारोह का रेला निकल पड़ता है। जय वीर महावीर के उद्घोष के बीच सैकड़ों युवाओं के घेरे में हनुमान साधक सचमुच ऐसा लगता है कुछ पल के लिए जैसे धरती पर हनुमान जी उतर आए हो।
जैसे-जैसे जय वीर महावीर की जय घोष बढ़ते जाते हैं, चल समारोह आगे बढ़ता चलता है। शहर की सडक़ों के दोनों किनारों के उपर जुलूस में हजारों की संख्या में लोग हनुमान जी के दर्शन पाने लालायीत नजर आते हैं। प्रतिवर्ष सैकड़ों युवा हनुमान बनने समिति के पास नाम लिखवाते हैं। लेकिन इस कठिन तपस्या उपवास के लिए किसी एक का चयन होता है। इस बार तुषार उपाध्याय को यह मौका मिला है और वे तन्मयता से इस तपस्या में लगे हुए हैं।
Published on:
28 Sept 2025 11:27 am

