वर्तमान में जिस स्थान पर मॉ कालीपाठ विराजमान हैं, पहले वहां जंगल हुआ करता था और गोवारी समाज के लोग वहां मवेशियों को चराने आया करते थे। घने जंगल के बीच मॉ काली की छोटी सी प्रतिमा होने से पूजा पाठ शुरू की गई। देखते ही देखते मॉ काली की प्रतिमा आकार लेने लगी और काली की प्रतिमा सात फिट से भी अधिक बड़ी हो गई है।
कुछ ऐसी ही क्विंदतियां शहर के बालाघाट दक्षिण सामान्य वन मंडल कार्यालय के समीप स्थापित कालीपाठ मंदिर से जुड़ी है। जिले ही नहीं आस-पास के अन्य जिलों में भी मां कालीपाठ का ऐसा विराट स्वरूप कहीं नहीं है। मां से भक्तों की आस्था कुछ ऐसी की वे मां के दर्शन को चले आते हैं। नवरात्र पर्व में श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ता है। मां का ऐसा स्वरुप कब से है, इसकी किसी को जानकारी तो नहीं है, लेकिन लोग प्रतिमा स्वयं प्रगट होने की बात कहते हैं। इस नवरात्र भी मंदिर परिसर और बाहर तक रंग बिरंगी लाइटिंग की गई है। मेला जैसी स्थिति रहती है। प्रात: से ही बड़ी संख्या में लोग मॉ काली के दर्शन करने कतार में नजर आ रहे हैं। विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान भी कराए जा रहे हैं।
मंदिर के पुजारी के अनुसार मां का स्वरूप हर साल बढ़ता ही जा रहा है। मां जिस मुद्रा में विराजमान है, ऐसा स्वरूप में अन्यत्र किसी भी स्थान पर नहीं है। उन्होंने बताया कि मां के पास बीमारी, नौकरी, बच्चे समेत अन्य समस्याओं को लेकर भक्त आते हंै और मां से प्रार्थना कर नारियल को बांधकर जाते हंै और जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है, तो वे अपनी श्रद्धानुसार मां को भेंट करते हैं।
Published on:
28 Sept 2025 11:23 am