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जंगल में प्लास्टिक बैन, फिर भी सरकारी काम में धड़ल्ले से हो रहा इस्तेमाल

जंगल में प्लास्टिक पर सख्त पाबंदी है। नियम के अनुसार इसके उपयोग पर तीन साल तक की सजा या पांच लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। लेकिन खुद सरकारी महकमा ही इस नियम की अनदेखी करता दिखाई दे रहा है।

बाला किला मार्ग निर्माण में प्लास्टिक कट्टों का उपयोग

जंगल में प्लास्टिक पर सख्त पाबंदी है। नियम के अनुसार इसके उपयोग पर तीन साल तक की सजा या पांच लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। लेकिन खुद सरकारी महकमा ही इस नियम की अनदेखी करता दिखाई दे रहा है। कई बार वन विभाग आमजन पर कार्रवाई भी कर चुका है, लेकिन खुद सरकारी महकमा ही इस नियम की धज्जियां उड़ाता नजर आ रहा है, लेकिन विभाग मौन है। दरअसल, करणी माता मार्ग 15 जून को पर क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके मरम्मतीकरण का काम सार्वजनिक निर्माण विभाग कर रहा है।

यहां गड्ढों को भरने के लिए प्लास्टिक के कट्टों में मिट्टी भरकर लगाया जा रहा है। अब सवाल उठता है कि जब यह कट्टे फटकर हटेंगे तो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे ? इस काम का निरीक्षण खुद वनमंत्री संजय शर्मा भी कर चुके, लेकिन इन प्लास्टिक कट्टों का वन्यजीवों पर आगे क्या असर होगा, इस पर किसी का ध्यान नहीं गया। प्लास्टिक के कट्टों के प्रयोग पर पाबंदी लगाकर टाट की बोरियों के जरिए निर्माण करवाने की मांग पर्यावरण व वन्यजीव प्रेमियों ने की है। उन्होंने प्रशासन को पत्र लिखा है।

वन्यजीवों को नुकसान होगा

पर्यावरण प्रेमी लोकेश खंडेलवाल का कहना है कि इन कट्टों की उम्र बमुश्किल 10 माह से एक साल है, उसके बाद यह फट जाएंगे और जंगल में कट्टों के अवशेष उड़ेंगे। सांभर, चीतल से लेकर अन्य वन्यजीवों के पेट में जाकर बीमार करेंगे। ऐसे में टाट की बोरियों का प्रयोग निर्माण के दौरान पीडब्ल्यूडी को करना चाहिए।

कैसे मिली एनओसी या फिर बिना अनुमति के हो रहा निर्माण

जंगल में कोई भी निर्माण हो या फिर अन्य गतिविधियां। बिना एनओसी के नहीं हो सकता। ऐसे में क्षतिग्रस्त बाला किला मार्ग निर्माण के लिए वन विभाग ने कैसे एनओसी दी या फिर पीडब्ल्यूडी ने बिना एनओसी के ही काम शुरू कर दिया।

जंगल में प्लास्टिक बैन है। जब पीडब्ल्यूडी बाला किला मार्ग का निर्माण स्थायी रूप से करेगा तो इन कट्टों को हटाते समय बाहर करना जरूरी है। इसके लिए पीडब्ल्यूडी को कहा जाएगा - शंकर सिंह, रेंजर