Patrika Logo
Switch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

प्लस

प्लस

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

जोधपुर से 52 ऊंटों के साथ पहुंचीं बीएसएफ की दो टुकड़ियां

एकता परेड में होंगी आकर्षण का केंद्र, कभी ‘गंगासिंह रिसाला’ के नाम से जाना जाता था एकता नगर. गुजरात के एकता नगर (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) में 31 अक्टूबर को आयोजित होने वाली एकता परेड में इस बार सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का ऊंट दस्ता विशेष आकर्षण का केंद्र बनेगा। जोधपुर से विशेष वाहनों में लाए […]

एकता परेड में होंगी आकर्षण का केंद्र, कभी ‘गंगासिंह रिसाला’ के नाम से जाना जाता था

एकता नगर. गुजरात के एकता नगर (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) में 31 अक्टूबर को आयोजित होने वाली एकता परेड में इस बार सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का ऊंट दस्ता विशेष आकर्षण का केंद्र बनेगा। जोधपुर से विशेष वाहनों में लाए गए 52 ऊंटों वाली दो टुकड़ियां अपने अनुशासन, पारंपरिक पोशाक और विशिष्ट साज-सज्जा के लिए प्रसिद्ध हैं।
इनका इतिहास शाही और गौरवशाली है। कभी बीकानेर राज्य की यह ऊंट टुकड़ियां ‘गंगासिंह रिसाला’ के नाम से जानी जाती थीं। बीकानेर के पूर्व महाराजा गंगासिंह ने 19वीं सदी में अपनी सेना के आधुनिकीकरण के दौरान ऊंटों की विशेष टुकड़ी बनाई थी। आज यह टुकड़ी बीएसएफ का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है।
आजादी के बाद ‘गंगासिंह रिसाला’ टुकड़ी को भारतीय सेना में शामिल किया गया और बाद में 1965 में बीएसएफ के गठन के साथ ऊंट रेजिमेंट की जिम्मेदारी बीएसएफ को सौंप दी गई। तब से आज तक यह ऊंट टुकड़ी देश की सीमाओं की रक्षा में तैनात है और राष्ट्रीय पर्वों पर दिल्ली में परेड का आकर्षण भी बनती है।
कंटिंजेंट में मुख्यतः जैसलमेरी और बीकानेरी नस्ल के ऊंट शामिल हैं। जैसलमेरी ऊंट दौड़ने में तेज होते हैं, जबकि बीकानेरी ऊंट वजन उठाने में सक्षम माने जाते हैं। चयन के दौरान ऊंटों की ऊंचाई, वजन, शरीर की बनावट और दांत की जांच होती है।
प्रत्येक ऊंट के साथ एक ही सवार होता है जो उसकी देखभाल, प्रशिक्षण और साज-सज्जा का जिम्मेदार होता है। परेड से पहले ऊंटों की पूंछ के बालों को सुंदर डिजाइन में काटा जाता है। इन्हें रोजाना लगभग 10 किलो चारा और 2 किलो चना-मिश्रित खुराक दी जाती है।
परंपरागत वेशभूषा - केसरिया साफा, लंबी मूंछें और राजस्थानी परिधान के कारण ऊंट टुकड़ी के जवान परेड के दौरान सबसे अलग नजर आते हैं। 1986 में बीएसएफ ने जोधपुर में ऊंट प्रशिक्षण स्कूल की स्थापना की और कैमल बैंड की शुरुआत की। 26 जनवरी 1990 को पहली बार ऊंट बैंड ने गणतंत्र दिवस परेड में भाग लिया था। हाथों में वाद्ययंत्र लिए ऊंट की पीठ पर बैठकर बीएसएफ के प्रशिक्षित जवान वादन करते हैं।