गांधीनगर. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य महाश्रमण ने गुरुवार को कहा कि अच्छे कार्यों के प्रति समर्पण का भाव होना चाहिए। कोबा िस्थत प्रेक्षा विश्व भारती में वर्ष 2025 के चातुर्मास के दौरान प्रवचन में उन्होंने यह बात कही।
आचार्य ने आयारो आगम के माध्यम से पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन में ऐसा हो कि अध्यात्म दर्शन अथवा वीतराग दर्शन पर ही दृष्टि लग जाए। आध्यात्मिकता की तरफ रुझान है या भौतिकता की ओर आदमी जा रहा है। सम्यक दृष्टि को प्राप्त कर लेना बहुत बड़ी उपलब्धि होती है।
उन्होंने कहा कि सम्यक्त्व रत्न से बड़ा दूसरा कोई रत्न नहीं, सम्यक्त्व रूपी मित्र से बड़ा कोई मित्र नहीं, सम्यक्त्व रूपी भाई से बड़ा दूसरा कोई भाई नहीं है और सम्यक्त्व से बड़ा कोई लाभ नहीं है। सम्यक्त्व स्वतंत्र रह सकता है, जबकि चारित्र को सम्यक्त्व की आवश्यकता होती है। चारित्र के बिना भी सम्यक दर्शन रह सकता है। इसलिए सम्यक्त्व का ज्यादा महत्व है। आदमी को संसार में रहते हुए अनेक कार्य भी करने हो सकते हैं। आदमी को मोक्ष की प्राप्ति की भावना होनी चाहिए।
आचार्य ने कहा कि पौष कृष्णा पंचमी को आचार्य कालूगणी ने बालक तुलसी को मुनि दीक्षा प्रदान की थी। विक्रम संवत् 2082 चल रहा है। आगामी पौष कृष्णा पंचमी यानी 9 दिसम्बर को आचार्य तुलसी को दीक्षा लिए हुए सौ वर्ष पूर्ण होने वाले हैं। उस दिन साधु-साध्वियां, समणियां और भी श्रावक-श्राविकाएं मुमुक्षा का महत्व विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास करें। इसके साथ मुमुक्षु बनने की प्रेरणा भी दी जा सकती है।
Published on:
18 Sept 2025 10:23 pm