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मंदिर-जिनालय सब छाया के समान : आचार्य सुनील सागर

गुजरात यूनिवर्सिटी परिसर में चातुर्मास प्रवचन अहमदाबाद. दिंगबर जैन आचार्य सुनील सागर ने मंगलवार को कहा कि मंदिर-जिनालय सब छाया के समान हैं और यहां बैठकर हम सभी कल्पद्रुम विधान कर प्रभु की आराधना कर रहे हैं। गुजरात यूनिवर्सिटी परिसर में चातुर्मास प्रवचन में उन्होंने कहा कि तपस्वी सम्राट सम्मतिसागर से किसी ने पूछा, भगवान […]

गुजरात यूनिवर्सिटी परिसर में चातुर्मास प्रवचन

अहमदाबाद. दिंगबर जैन आचार्य सुनील सागर ने मंगलवार को कहा कि मंदिर-जिनालय सब छाया के समान हैं और यहां बैठकर हम सभी कल्पद्रुम विधान कर प्रभु की आराधना कर रहे हैं। गुजरात यूनिवर्सिटी परिसर में चातुर्मास प्रवचन में उन्होंने कहा कि तपस्वी सम्राट सम्मतिसागर से किसी ने पूछा, भगवान तो सिद्ध शिला पर हैं। कोई कहता है भगवान हर जगह है तो हम मंदिर में जाकर क्यों पूजते हैं। तपस्वी सम्राट ने कहा कि हवा और ऑक्सीजन तो हर जगह है पर छाया में बैठकर ऑक्सीजन का आनंद अद्भुत होता है।
आचार्य ने कहा कि पूजा के चार प्रकार है। नित्य पूजा यानी प्रतिदिन अर्चना करते हैं, अष्टानिका पूजा यानी पर्व के दिनों में पूजा, चतुर्मुख पूजा यानी मुकुटबद्ध राजा करते हैं, कल्पध्रुम पूजा यानी चक्रवर्ती करते हैं।
उन्होंने कहा कि कल्पवृक्ष जिस प्रकार सभी की इच्छाएं पूर्ण करता है। सबको मन मांगा देता है, वैसे ही चक्रवर्ती यह महा पूजा समवशरण में जाकर करते हैं और लोगों को मन मांगा दान देते हैं।
आचार्य ने कहा कि अच्छे विचार करें, बड़ा सोचो तो बड़ा मिलेगा। छोटी मछली को छोटे बॉक्स में रखते हैं तो छोटी ही बनती है, बड़े तालाब में रखते हैं तो बड़ी होती है, इसका मतलब है कि बड़ा सोचते हैं तो बडा मिलता है, बड़े बनते हैं।